Wednesday, June 26, 2013

जीवन काव्य- कुछ मिलन गीत,कुछ विरह गीत

जो क्षण मिलता सो जी लेता,
जो मन दिखता,सो लिख देता।



हँस देते कुछ गाते गाते,
ही याद किये कुछ रो देते।
जीवन काव्य स्मृतियाँ संचित,
कुछ मिलन गीत कुछ विरह गीत।१।

गिरें अचानक चलते चलते, 
गिरकर और सँभल उठ जाते।
उठ-गिर चलना  जीवन यात्रा 
कुछ तेज कदम,कुछ शांत कदम।२।

शब्द अनेकों अर्थ हीन से,
शांत अधर अभिव्यक्ति पूर्णता।
कथा श्रृंखला जीवन गाथा,
कुछ कहते कुछ रहे अनकहे।३।

कितना कुछ बिन माँगे देता ,
लेता छीन  झपकती पलकों।
खुली तिजोरी जीवन थाती, 
कुछ खो देते कुछ पा जाते।४।

जीवन  मौन साधना अक्षम,
निज दुख कितने गाते फिरता।
बरसें उर पीड़ा के बादल,
कुछ जज्ब हृदय कुछ नीर बहे।५।

दिन कटता पर मुश्किल राते,
अँधियारे को साथ भला क्या?
बिस्तर भी चुभता काँटों सा,
कुछ जागे कुछ करवट बदले।६।

जो क्षण मिलता सो जी लेता,
जो मन दिखता,सो कह देता।
जो कलम थमा दी हाथों में,
कुछ गद्य लिखे कुछ पद्य लिखे।७।

Sunday, June 23, 2013

जब तक पथ,यात्रा है तबतक……

पथिक अंतगति राह समाहित

पथिक मिलेगा पथ पर अपने 
और भला क्या उसका ठौर ?
चलना ही उसका जीवन है ,
दिवस, रात्रि, संध्या क्या भोर।1

पथिक नियति है बँधी राह से
साझा पदचापों का जोर 
साक्षी बन पथ स्थिर रहता ,
पथिक पग बढ़े मंजिल ओर ।2

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जीवन बहता नदी सदृश है 
धारा मध्य किनारे छोर ।
कर्म गति बन बहे निरंतर,
बंधन बाँधे रिश्तों की डोर3

जीवन प्राण,हृदय स्पंदित 
रंध्र नासिका श्वास की डोर ।
दोनों  की गति में  स्थिर है,
परमतत्व परमात्म विहोर4 

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पथ से क्या मैं आँख चुराता
पथिक अंतगति धूल राह की।
पथ व पथिक एकनिष्ठ जब 
पूर्ण ध्येय जीवन  यात्रा की ।5


जीवन लक्ष्य बदलते रहते, 
अपनी राह बदलता कब तक।          
ध्येय सिद्ध यात्रा  क्या संभव 
जब तक पथ , यात्रा है तबतक।6

Thursday, June 20, 2013

गति ही नहीं चपलता भी.....

गति का प्रतीक-दौड़ता चीता

यदि इस पृथ्वी पर सबसे तेज दौड़ने की बात आती है, तो जेहन में प्रथम नाम चीता का आता है,चीता यानी तेज रफ्तार,चीता प्रतीक है तेज गति का।परंतु हाल ही में एक बड़ी रोचक रिपोर्ट यह पढ़ने को मिली कि चीता की ताकत व खासियत सिर्फ तेज गति नहीं अपितु उसकी खासियत है चपलता, उसका पलक झपकते ही दायें,बायें पीछे या किसी भी दिशा में मुड़ने,तेज दौड़ने की गति के दौरान ही अपनी गति व दिशा परिवर्तित कर सकने की अद्भुत क्षमता।अध्ययन कहता है कि चालीस पैंतालीस किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से तेज दौड़ता चीता क्षण में ही अपनी रफ्तार दस से पंद्रह किलोमीटर प्रतिघंटा की गति तक धीमी कर सकता है और सहजता से ही पलक झपकते दायें बायें अथवा पीछे मुड़ सकता है।इस प्रकार अपनी गति पर अद्भुत नियंत्रण न सिर्फ उसे दिशा परिवर्तन की सहजता प्रदान करता है,अपितु उसकी मांसपेसियों व अस्थियों को किसी प्रकार की गंभीर चोट से भी बचाता है।यही कारण है कि जहाँ अन्य हिंसक जीव जैसे सिंह, बाघ इत्यादि अपनी वृद्धावस्था आने तक अति कमजोर,चोटिल,जर्जर व शिकार करने में अक्षम व लाचार हो जाते हैं, जबकि चीता अपनी वृद्धावस्था में भी लगभग अपनी युवावस्था की ही तरह चपल व शिकार का दमखम रखता है।
प्रौढ़ावस्था परंतु दमखम युवाओं का ही


मनुष्य के भी जीवन व व्यवसाय में भी यह सिद्धांत समान रूप से ही लागू होता है।खेल की ही बात करें , विशेषकर ऐसे खेल जो तेज रफ्तार के लिये जाने जाते हैं जैसे फुटबाल,बास्केटबाल,लॉनटेनिस, क्रिकेट में तेजरफ्तार बॉलिंग इत्यादि, इन खेलों में भी तेज रफ्तार के साथ-साथ उससे भी अधिक महत्वपूर्ण आवश्यकता होती है खिलाड़ी की चपलता यानि तेज गति के साथ-साथ आवश्यकता के अनुरूप अपनी गति व दिशा पर कुशल नियंत्रण की क्षमता।यहाँ कुशल का तात्पर्य है कि बिना संतुलन खोये व बिना स्वयं को किसी भी प्रकार की शारीरिक क्षति पहुँचाये  अपनी गति व दिशा पर नियंत्रण करने की क्षमता।मेरा खेल के बारे में ज्ञान तो अल्प है, थोड़ी बहुत जो जानकारी है वह भी क्रिकेट की ही है, उसके आधार पर भी यही निष्कर्ष निकलता है,और जिससे आप भी निश्चय ही सहमत होंगे कि जहाँ कुछ तेज रफ्तार गेंदबाज,जैसे रिचर्ड हेडली,कपिलदेव,मैकग्रा,वाल्स,वसीम अकरम ज्यादा सफल रहे जिनके पास तेज गति के साथ साथ गति व दिशा नियंत्रण की भी अद्भुत कुशलता थी, वहीं कुछ ऐसे बहुत तेज गेंदबाज जैसे डोनाल्ड, ब्रेट ली,शोएब अख्तर व कुछ अन्य जो इतिहास में कहीं खो गये,जिनके पास रफ्तार तो जबरदस्त थी,तेज रफ्तार उनकी नैसर्गिक प्रतिभा थी, परंतु उनका  गति व दिशा पर नियंत्रण उतना लाजबाब नहीं था,फलस्वरूप वे अपनी प्रतिभा के अनुरूप सफलता हासिल करने में असफल रहे।अमूमन गति व दिशापर कुशल नियंत्रण वहीं कर सकता है जो अपने शरीर,शारीरिक क्षमता व कमजोरी एवं समय व परिस्थिति की माँग के प्रति चौकन्ना व सजग है , इस सजगता के फलस्वरूप वह न सिर्फ ज्यादा प्रभावी व सफल होता है बल्कि अपने शरीर की क्षमता व कमजोरी के प्रति सजगता के कारण उन्हें खेल में चोट लगने व घायल होने की संभावना भी न्यूनतम हो जाती है।यही कारण है कि जहाँ रिचर्ड हेडली,कपिलदेव,मैकग्रा,वाल्स,वसीम अकरम जैसे खिलाड़ी अपने खेल जीवन में बहुत कम ही किसी शारीरिक चोट अथवा क्षति के शिकार हुये व उनका खेल कैरियर भी दीर्घ रहा जबकि ब्रेट ली,शोएब अख्तर जैसे अति प्रतिभाशील व अद्भुत तेजरफ्तार के धनी खिलाड़ी का अधिकाँश खेल कैरियर गंभीर शारीरिक चोटों,व क्षतियों के शिकार रहा व वे अपेक्षित सफलता हासिल करने से वंचित रहे व खेल कैरियर भी अधूरे में समाप्त हो गया।
महान तेज गेंदबाज ग्लेन मैकग्रा
-तेज गति के साथ-साथ गैंद की दिशा व लंबाई पर सटीक नियंत्रण

यही बात व्यवसायों में भी लागू होती है।कई बार कुछ व्यवसाय अपने तेज विकास व सफलता की धुन में भविष्य की परिवर्तित परिस्थितियों व माँग के बदलते स्वरूप के प्रति सजगता खो देते हैं, जिसके फलस्वरूप अपने व्यवसाय की दौड़ मेंवे  ऐसे क्लिफ पर आ जाते हैं जहाँ उनको पलट कर वापस लौटने का भी अवसर नहीं होता और तेज गति होने से रुकना भी संभव नहीं होता, और नतीजतन वे गहरी खाँईं में औंधे गिरकर विनष्ट हो जाते हैं।ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जहाँ किसी समय में चोटी पर व निरंतर विकसित हो रहे व्यवसाय एकाएक धराशायी हो गये व ऐसे औधे मुँह गिरे कि उनका दुबारा उठना भी संभव नहीं रहा व मात्र इतिहास बन कर रह गये।देखें तो नोकिया फोन इसका सटीक उदाहरण है,करीब एक दशक पहले नोकिया का मोबाइल फोन में 97 प्रतिशत बाजार पर कब्जा था, और एक दो वर्षों तक उसकी यह सफलता बेजोड़ व लगातार बनी रही। किंतु स्मार्टफोन तकनीकि ,व अति परिवर्तनीय संचारप्रणाली के साथ सामंजस्य के अभाव में व अपने व्यवसाय प्रतियोगियों की तेज प्रगति व तेज विकसित तकनीकि प्रणाली व बाजार की बदलती माँग की अनदेखी से उन्हें मोबाइल सेट व्यवसाय में औंधे मुँह गिरना पड़ा, और देखते-देखते नोकिया नंबर एक से कहीं पीछे छूटकर फिसड्डियों की जमात में पहुँच गया है।

व्यवसाय की बात छोड़ भी दें तो हमारे व्यक्तिगत जीवन में भी यही सिद्धांत कमोवेस लागू होता है।जीवन में यह अवश्य महत्वपूर्ण है कि हम कितने तेजी व दमखम से अपना कार्य करते हैं, चाहे वह हमारा छात्र जीवन हो अथवा नौकरी,उद्यम का जीवन, किंतु हमारे कार्य करने की तेजी व दमखम से भी ज्यादा आवश्यक है हमारी जीवन में निर्णय लेने की चपलता,यानि परिवर्तित समय व परिस्तिथि के अनुरूप स्वयं को ढालकर , उचित व संतुलित निर्णय क्षमता ।हमारी कड़ी मेहनत व लगन के साथसाथ अति आवश्यक है कि हमें समय के साथ परिवर्तित अवसरों व दिशाओं का सही भान हो और साथ ही साथ हमें अपनी क्षमता व कमजोरी का भी सही व ठोस आकलन हो, ताकि हमारा प्रयास, स्वयं को न्यूनतम शारीरिक अथवा मानसिक क्षति किये सार्थक दिशा व लक्ष्य हेतु सिद्ध हो।इसी में ही हमारे जीवन का सुख व शांति निहित है। 
जोश में भी होश के प्रतीक- स्वामी विवेकानंद

Sunday, June 16, 2013

अलविदा टेलीग्राम

अलविदा टेलीग्राम

दो दिन पहले खबर पढ़ा कि भारतीय पोष्ट विभाग ने अपनी 163 वर्ष पुरानी टेलाग्राम सेवा को हमेशा के लिये बंद करने का निर्णय लिया है।इस समाचार को पढ़कर एक अजीबोगरीब उदासी के अतिरिक्त मन में कितनी ही पुरानी यादों दृश्यों की श्रृंखला चलचित्र की भाँति गतिमान हो गयी।

बचपन की स्मृतियाँ ताजा हो गयीं कि  गाँव  में देखता था कि किसी के घर  टेलीग्राम का आना किसी जलजले  के आने से कम नहीं होता था, विशेषकर उनके लिये जिनके घर के सदस्य नौकरी अथवा पढ़ाई के सिलसिले में कहीं दूरदराज शहर में निवास करते थे अथवा किसी  घर  का  सदस्य अरसे से गुमशुदा हो या कोई बुजुर्ग सदस्य तिर्थाटन हेतु निकला हो।मेरा अनुभव है किगाँववालों हेतु टेलीग्राम  के आने का बस दो ही अर्थ होता था या तो कोई दुर्घटना हादसा अथवा कोई सरकारी -पुलिसिया झंझट।जिसके घर टेलीग्राम आता उस घर मानों सबको बिजली का झटका लग जाता और सारे गाँव में टेलीग्राम के आने की खबर सनसनी की तरह फैल जाती ।सब सभी यही चर्चा करते होते कि लाँ के घर तो टेलीग्राम आ गया है व अपने अनुमान व जानकारी के हिसाब से खबर बनाते व दूसरों से चर्चा करते टेलीग्राम द्वारा यदा कदा कोई अच्छा समाचार भी जाता जैसे किसी की सरकारी सेवा में नियुक्ति अथवा किसी के प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने का नतीजा व नौकरी हेतु ईंटरव्यू काल,तो यह उस घर में खुशी व उत्साह व पड़ोसी के घर में ईर्ष्या व उदासी का कारण बन जाता

मेरे गाँव के पड़ोस के गाँव में जहाँ हमारा स्कूल स्थित था , वहाँ एक छोटे बाज़ार जैसी मौलिक मामूली सुविधा उपलब्ध  थी, वही एक पोष्ट ऑफिस भी था जो कि पोष्ट मास्टर के कच्चे मकान से ही संचालित होता था ।चूँकि गाँव में तब टेलीफोन बिजली की सुविधा  नही थी. अत:टेलीग्राम की सीधी सुविधा संभव नहीं थी, अपितु किसी का टेलीग्रा शहर के मुख्य डाकघर में ही आता जहां से सामान्य डेली डाक से गाँव के डाकघर पहुँचता ,फिर स्थानीय  डाकिया महोदय उसे प्रापक के घर पहुँचाते।

चूँकि पड़ोस के गाँव थोड़े दूदराज पर स्थित थे डाकिया महोदय को प्रत्येक गाँव में स्वयं जाकर डाक सुपुर्द करने में कठिनाई होती अत: वे प्राय:हमारे स्कूल आकर संबंधित गाँव के किसी  बच्चे को उस गाँव की डाक सुपुर्द कर देते बच्चे की जिम्मेदारी होती कि वह पत्र संबंधित घर जाकर सुपुर्द करे । इस प्रकार हमारा स्कूल व इसके छात्र भारतीय डाकविभाग की निःशुल्क किंतु महत्वपूर्ण सेवा करते थे जिसकी शायद ही भारतीय डाक विभाग प्रशासन को कोई इल्म व अहमियत रही होगी ।

परंतु रजिस्ट्री अथवा टेलीग्राफ आने पर डाकिया महोदय स्वयं ही प्रापक के घर जाते उससे प्राप्ति का हस्ताक्षर लेते ।टेलीग्रा लाने पर उनके चेहरे की मुद्रा  खास गंभीर होती गाँव में घुसने पर हर मिलने वाले को इस बात का आभास हो जाता कि कोई गंभीर बात है,व डाकिया महोदय यह खबर देते कि  फलाँ का टेलीग्रा आया है जल्दी कदमों से अपने लक्ष्य पते  की ओर बढ़ जाते ।जब तक वे प्रापक तक टेलीग्रा की प्रति सुपुर्द करते , तबतक लगभग पूरे गांव में यह समाचार सनसनी की तरह फैल चुका होता कि फलों का टेलीग्रा आया है और उस व्यक्ति के खास शुभचिंतक,साथ ही साथ डाह रखने वाले भी,उसके घर नये समाचार की तहकीकात में मँडराने लगते

गाँव में अमूनन लोगों की अंग्रेजी भाषा की अनभिज्ञता डाकिया महोदय का भी अंग्रेजी भाषा के अति अल्प समझ के कारण टेलीग्रा के संदेश को सही सही समझने हेतु गाँव के कुछ शिक्षित व्यक्ति के पास दौड़े घबराये से जाते संदेश की गंभीरता के समझते ।मैं अपने पिताजी को प्रायः यह जिम्मेदारी गंभीर मुद्रा में निभाते देखता ।किसी के घर का कोई सदस्य जो कई वर्ष पूर्व नाराजगी वश अथवा बेरोजगारी की निराशा वश या तीर्थाटन या यायावरी हेतु घरबार छोड़ लापता होता उसके कहीं दूर दराज के शहर में बीमारी अथवा किसी हादसा का समाचार टेलीग्रा द्वारा आता  तो उस परिवार में दुख वेदना छा जाती।इसी प्रकार जिनके घर के सदस्य रोजगार वश कहीं दूर शहर  कलकत्ता या. मुंबई में अस्थाई रूप से निवास करते रहते तो उनकी बीमारी अथवा किसी दुर्घटना के समाचार के टेलीग्रा से सिर्फ उस घर में बल्कि पास पड़ोस के घर भी जिनके भी सदस्य दूर शहर में गुजरवसर हेतु सालों से घरवालों  से बिछड़े रह रहे होते उनके समाचार का माध्यम मात्र पत्र होता ,वे भी अति उदास घबरा जाते जब यदाकदा टेलीग्रा किसी की नौकरी लगने अथवा किसी परीक्षा के नतीजा में पास होने इंटरव्यू की काल का समाचार लाता तो उस घर के लोग बड़े प्रफुल्लित हो उठते उस घर के लोग उत्साहित होकर गाँवभर में टेलीग्रा का कागज दिखाते, इस खुशी में गाँव के मंदिर में पूजा किर्तन करते

पिछले बाईस सालों से रेलवे की नौकरी के सिलसिले में दूर शहरों में निवास इधर-उधर स्थानांतरण के क्रम में गाँव से मेरा संपर्क वहाँ  आना-जाना लगभग के बराबर रह गया अत: वहाँ के अपने परिजनों ,गाँववालों के सुख दुःख की सजीवता से बचपन की भाँति साक्षात्कार तो  अब नहीं रहा।किंतु विगत दो दसकों में सूचना क्रांति  ने हमारे परिवेश व जीवनशैली में बहुत कुछ बदलाव लाया है जिससे मात्र शहर ही नहीं अपितु गाँव भी बराबर तौर पर बदले प्रभावित हुये हैं ।गाँव में भी अब घर-घर में मोबाइल फोन की सुविधा दूर दराज शहरों में रहने वाले परिजनों से सुगम संवाद की सुविधा से इस दिशा में उल्लेखनीय राहत सहूलियत आयी है ।नतीजतन पुराने तौरतरीकों में बदलाव उनकी विदाई अपरिहार्य ही है



किंतु विगत की विशिष्टता सदैव जीवन में विशेष अहमियत रखती है ।टेलीग्राम को अलविदा कहने का समय तो आ गया है  परंतु इसकी विशिष्टता हमारे विगत की स्मृतियों में विशेष व महत्वपूर्ण स्थान सदैव रखेगी।