tag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post5295943444105074620..comments2024-02-04T21:56:30.492+05:30Comments on चरैवेति-चरैवेति: Life is name of a perpetual journey : …. किन्तु अपरिचित हृदय वेदना।देवेंद्रhttp://www.blogger.com/profile/13104592240962901742noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-87375779726415613812011-04-28T22:39:32.826+05:302011-04-28T22:39:32.826+05:30अहा, बस यही हो जाये।अहा, बस यही हो जाये।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-73113649551876011782011-04-26T14:50:52.513+05:302011-04-26T14:50:52.513+05:30अभिव्यक्ति में बाधा थी तो,
नयन इशारे से ही कह देते...अभिव्यक्ति में बाधा थी तो,<br />नयन इशारे से ही कह देते।<br />प्रेम-विकल राधा गोकुल में,<br />मोहन प्राण शक्ति दे आते ।<br /><br />हर पंक्ति अंतस को छू जाती है. बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..लाजवाब!Kailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-78143249856198765712011-04-26T09:03:49.161+05:302011-04-26T09:03:49.161+05:30गूढ़ रहस्य को अपने आप में छिपाये हुए है इस कविता की...गूढ़ रहस्य को अपने आप में छिपाये हुए है इस कविता की हर पंक्तियाँ...समझना बरा ही मुश्किल है क्योकि इन्ही रहस्यों के बीच मानव स्वभाव विचरित है...honesty project democracyhttps://www.blogger.com/profile/02935419766380607042noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-14052439400047997482011-04-26T08:07:35.496+05:302011-04-26T08:07:35.496+05:30दृश्य में पश्य-अभाव की वेदना.दृश्य में पश्य-अभाव की वेदना.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-69276456829719149942011-04-25T23:45:45.924+05:302011-04-25T23:45:45.924+05:30किसलय का कोमल स्पर्श लिया तो,
कांटो की थोडी चुभन भ...किसलय का कोमल स्पर्श लिया तो,<br />कांटो की थोडी चुभन भी लेते।<br />जलधारा स्वयं जब हुए तिरोहित,<br />तो औरों की नैया भी खे देते।<br />बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-15126483358018066202011-04-25T23:28:16.578+05:302011-04-25T23:28:16.578+05:30किस लोक में विचरण करने लगें है देवेन्द्र भाई,हम तो...किस लोक में विचरण करने लगें है देवेन्द्र भाई,हम तो आपके एक एक शब्द से बेहोश होते जा रहे हैं.<br /><br />"दिया न जो दो शब्द प्रेम के,<br /> विषबाणों के प्रहार न करते।<br /> जो हृदय वेदना हर न सके तो<br /> मन-कटुता की पीर न भरते।"<br /><br />इतना ऊपर जाओगे ,तो इस लोक में कैसे आओगे.<br />कृपया, इस लोक में आ जाईये .मेरे ब्लॉग पर भी <br />इंतजार हो रहा है आपका.Rakesh Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03472849635889430725noreply@blogger.com