tag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post5982757433134863474..comments2024-02-04T21:56:30.492+05:30Comments on चरैवेति-चरैवेति: Life is name of a perpetual journey : रे मन क्यों तुम होये दु:खी…..देवेंद्रhttp://www.blogger.com/profile/13104592240962901742noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-49107885242587621772012-01-08T22:49:08.885+05:302012-01-08T22:49:08.885+05:30Very analytical post.Very analytical post.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-17630082780081844172012-01-08T11:21:08.714+05:302012-01-08T11:21:08.714+05:30यह सत्य है कि जन्मना स्वभाव परिवर्तित नहीं होता...यह सत्य है कि जन्मना स्वभाव परिवर्तित नहीं होता है। आप विचार कितना भी कर लें लेकिन हम स्वभाव से बंधे होते हैं। लेकिन फिर भी अधिक से अधिक संवाद मौन की अपेक्षा उचित होता है। लेकिन कभी-कभी मौन भी सार्थक होता है। ऐसी परिस्थिति शायद सभी के जीवन में आती है। कोई ना बोलने से दुखी है तो कोई ज्यादा बोलने से। यही जीवन है।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-88925415423842835462012-01-08T07:10:37.598+05:302012-01-08T07:10:37.598+05:30जब हम अपने लिये नहीं सबके लिए सोचते हैं --
"आ...जब हम अपने लिये नहीं सबके लिए सोचते हैं --<br />"आप वास्तव में क्या कहते हैं या करते हैं उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि आपका कहना व करना दूसरों को ..कैसे प्रभावित करता है?" <br />दूसरे कोई दूसरे नहीं होते जब सब अपने होते हैं यानि जब हम सबको अपना समझते हैं ..तभी मन को कहते है ---रे मन ...<br />मानसिक स्तर पर उलझन भरे कितने ही दिन बड़ी आसानी से गुजर जाते हैं ...आपको भी नये वर्ष की शुभकामनाएं और यही कामना कि ऐसी मानसिक उलझन में न फ़ँसे....चित्त स्थाई बना रहे ....Archana Chaojihttps://www.blogger.com/profile/16725177194204665316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-53628042801431279972012-01-08T07:07:39.515+05:302012-01-08T07:07:39.515+05:30दहला देने वाला तटस्थ आत्म-चिंतन.दहला देने वाला तटस्थ आत्म-चिंतन.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-66167419232925452352012-01-07T22:24:02.431+05:302012-01-07T22:24:02.431+05:30जब आप अपने निर्णय लेना स्वयं प्रारम्भ कर देते हैं,...जब आप अपने निर्णय लेना स्वयं प्रारम्भ कर देते हैं, तो बहुत मौन घिर आता है संवादों में। सब कर्तव्य मानकर निभाना होता है, समय को सारे संवाद करने दें, आपके लिये।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com