tag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post6170563144326303179..comments2024-02-04T21:56:30.492+05:30Comments on चरैवेति-चरैवेति: Life is name of a perpetual journey : ...लोकतंत्र सी आत्मा को।देवेंद्रhttp://www.blogger.com/profile/13104592240962901742noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-54277586225504204302011-05-07T12:24:06.565+05:302011-05-07T12:24:06.565+05:30पर-उपदेश देना बाद में
प्रथम स्वयं को निर्देश दो।
घ...पर-उपदेश देना बाद में<br />प्रथम स्वयं को निर्देश दो।<br />घृणा से बचकर रहो तुम<br />अब प्रेम का संदेश दो।<br />bahut achchhe bhavon se bhari kavita badhai.Shalini kaushikhttps://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-60472468077368480982011-05-05T07:38:58.373+05:302011-05-05T07:38:58.373+05:30स्वयं जब क्षलमयी जीवन
दूसरे से भरोष कैसा? 4।
मुझ...स्वयं जब क्षलमयी जीवन<br /><br />दूसरे से भरोष कैसा? 4।<br /><br />मुझे आपके इस रचना की सबसे बेजोड़ पंक्ति यही लगी ..मेरा भी मानना है की क्षलमयी<br /> <br />व्यवहार व जीवन निरर्थक है किसी एक के भी भड़ोसे लायक बन सके तभी जीवन सार्थक है ..<br />हर एक के भड़ोसे लायक बन्ने का तो प्रयास ही किया जा सकता है ..honesty project democracyhttps://www.blogger.com/profile/02935419766380607042noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-90587358955673798862011-05-03T17:26:32.980+05:302011-05-03T17:26:32.980+05:30स्वयं मिथ्याचार पर दूजा
सची हो , यह बडा पाखंड है।
...स्वयं मिथ्याचार पर दूजा<br />सची हो , यह बडा पाखंड है।<br />सुविधानुसार नियमविग्रह<br />यह बडा ही प्रवंच है।5।<br /> <br />विसंगति बहुत प्रभावशाली ढंग से विवेचित किया आपने...<br />सार्थक , बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर रचना...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-44329707807904864492011-05-03T09:45:24.681+05:302011-05-03T09:45:24.681+05:30लोकतन्त्र का यही मन्त्र हो,
नहीं कहीं पर व्यथित तन...लोकतन्त्र का यही मन्त्र हो,<br />नहीं कहीं पर व्यथित तन्त्र हो,प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-2776432266865794032011-05-03T07:41:01.908+05:302011-05-03T07:41:01.908+05:30"पर-उपदेश देना बाद में
प्रथम स्वयं को निर्दे..."पर-उपदेश देना बाद में<br /> प्रथम स्वयं को निर्देश दो।<br /> घृणा से बचकर रहो तुम<br /> अब प्रेम का संदेश दो "<br /><br /><br />शानदार अनुपम अभिव्यक्ति जो सुन्दर प्रेरणा दे रही है.<br />बहुत बहुत आभार.Rakesh Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03472849635889430725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-70359829631584730112011-05-03T06:44:18.238+05:302011-05-03T06:44:18.238+05:30बढ़िया कविता.. ऐसी कविता से ही लोकतंत्र जीवित रहेग...बढ़िया कविता.. ऐसी कविता से ही लोकतंत्र जीवित रहेगा...अरुण चन्द्र रॉयhttps://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.com