tag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post1587877251117811099..comments2024-02-04T21:56:30.492+05:30Comments on चरैवेति-चरैवेति: Life is name of a perpetual journey : -जानत तुम्हहि तुम्हहि होइ जायी.देवेंद्रhttp://www.blogger.com/profile/13104592240962901742noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-81360200218844962112015-07-06T08:54:40.937+05:302015-07-06T08:54:40.937+05:30जय हो. बहुत सुन्दर प्रयासजय हो. बहुत सुन्दर प्रयासAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/12398391527377186622noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-71486812644219133922015-07-06T08:54:39.676+05:302015-07-06T08:54:39.676+05:30जय हो. बहुत सुन्दर प्रयासजय हो. बहुत सुन्दर प्रयासAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/12398391527377186622noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-50994190098918140422015-07-06T08:52:55.456+05:302015-07-06T08:52:55.456+05:30जय हो. बहुत सुन्दर प्रयासजय हो. बहुत सुन्दर प्रयासAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/12398391527377186622noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-59291008317769395122011-10-01T09:21:50.036+05:302011-10-01T09:21:50.036+05:30@प्रिय प्रवीण जी, टिप्पड़ी हेतु आपका आभार।
@प्रिय...@प्रिय प्रवीण जी, टिप्पड़ी हेतु आपका आभार।<br /><br />@प्रिय देवेन्द्र जी,टिप्पड़ी एवं स्वयं की अनुभूति को साझा करने हेतु आपका आभार।मेरी शुभकामना है कि तैलंग महाराज जी के बारे में आप लिखें व उनके बारे में और जानकारी से हमें अनुगृहीत करें।देवेंद्रhttps://www.blogger.com/profile/13104592240962901742noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-26611684557526496952011-10-01T09:06:12.077+05:302011-10-01T09:06:12.077+05:30तैलंग स्वामी काशी में पंचगंगा घाट में निवास करते थ...तैलंग स्वामी काशी में पंचगंगा घाट में निवास करते थे। वहीं उन्होंने समाधी लिया। आज भी उनका समाधी स्थल और उनकी भव्य मूर्ती सुशोभित है। बचपन में जब हम खेलते-खेलते तैलंग स्वामी की मूर्ती को देखते तो हमारी सारी शरारतों को सांप सूंघ जाता। ऐसा आभास होता कि स्वामी जी ध्यान की अवस्था में बैठे हैं और हमें शांत रहना है। हम उन्हें श्रद्धा से प्रणाम कर चुपके से निकल लेते थे। <br /><br />उनके बारे में लिखने की मेरी भी बहुत दिनो से इच्छा रही है लेकिन लिख नहीं पाया। कुछ सामग्री जुटा भी ली, लेकिन समय नहीं मिला। देखें भगवान ने चाहा तो इस पर जरूर लिखूंगा।<br /><br />....इस पोस्ट का इसलिए भी आभारी हुआ कि आपने मुझे तैलंग स्वामी का संस्मरण करा दिया।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-75661951665037157522011-10-01T08:59:13.376+05:302011-10-01T08:59:13.376+05:30@राहुल जी, वर्तनी की त्रुटियों की ओर ध्यान आकर्षित...@राहुल जी, वर्तनी की त्रुटियों की ओर ध्यान आकर्षित करने व भाषा के मार्ग-दर्शन के लिये हार्दिक आभार। कुछ टाइपोग्राफिकल त्रुटियाँ भी हैं,जिनके लिये मैं अपने सभी पाठकों से क्षमाप्रार्थी हूँ।<br /><br />@प्रिय रामपुरिया जी, सुंदर टिप्पड़ी हेतु आपका हार्दिक आभार।देवेंद्रhttps://www.blogger.com/profile/13104592240962901742noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-26958407710882060752011-10-01T08:49:40.803+05:302011-10-01T08:49:40.803+05:30यह कथा पढ़ी थी, कब किसके माध्यम से किस पर क्या प्र...यह कथा पढ़ी थी, कब किसके माध्यम से किस पर क्या प्रभाव पड़ जाये, एक अचिन्त्य रहस्य है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-4200047728403290272011-10-01T08:28:05.421+05:302011-10-01T08:28:05.421+05:30मेरा स्वयं का शरीर अथवा उसका शरीर या कोई अन्य का श...<b>मेरा स्वयं का शरीर अथवा उसका शरीर या कोई अन्य का शरीर सब एक समान हैं,मैं और वह दोनों और सब का शरीर, सम्पूर्ण प्रकृति ही इस प्रभु में समाहित हैं, और प्रभु भी हम सबमें , हम सबके शरीर में, रोम-रोम में, कण-कण में, अणु-अणु में समाहित हैं।</b><br /><br />आज सुबह की प्रथम पोस्ट ही बाबा तेलंग जी की पढी, इनके बारे में प्रथम बार ही मालूम हुआ, आपका किन शब्दों में आभार प्रकट करूं? बहुत बहुत धन्यवाद आपका.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773433501963473717.post-74322580316743304242011-10-01T07:22:51.498+05:302011-10-01T07:22:51.498+05:30किस्से कहानी सी लगती हैं कई बातें और हकीकत मान ली...किस्से कहानी सी लगती हैं कई बातें और हकीकत मान ली जाएं तो एक स्तर पर (शायद) श्रद्धा व दूसरे स्तर पर अंधविश्वास की ओर प्रेरित करती हैं.<br />घ्यानिस्थ की वर्तनी शायद समाधिस्थ से प्रभावित हो गई है, मैंने अब तक ध्यानस्थ ही पढ़ा है.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.com