आज टाइम्स ऑफ इंडिया समाचार पत्र में श्री अमृत ढिल्लन , जो दिल्ली में स्वतंत्र पत्रकार हैं और हाल ही में ही भूकम्प की दैवीय आपदा से जूझ रहे जापान से वापस लौटे हैं, का लेख “ Japan take a bow for grace under fire” पढ़ने को मिला। यह लेख जापानी लोगों का जीवन के कठिन क्षणों में भी उनकी शालीनता,अनुशासनप्रियता , समय की पाबंदी सार्वजनिक जीवन में सदाचार के पालन का बड़ा ही भावपूर्ण व प्रभावी विवरण देता है ।
लेख पढ़कर मुझे अपने एक पूर्व जापनी सहकर्मी श्री सैतो , जो बंगलौर मेट्रो रेल प्रोजेक्ट में मेरे कार्यकाल की अवधि में एक जापानी कम्पनी की और से मुख्य संविदा एवं करार विशेषज्ञ के रूप में काम करते थे, का स्मरण हो आया। श्री सैतो की उम्र तो सरसठ वर्ष से ज्यादा थी , किन्तु उनकी कार्य की फुर्ती, तत्परता, तल्लीनता एवं उत्साह किसी भी युवा से कम नहीं था । शांत मुखमंडल, उद्वेगरहित नपी-तुली संतुलित भाषा, एवं सधी हुई चाल-ढाल में उनका व्यक्तित्व अति गरिमापूर्ण लगता था । श्री सैतो प्रोजेक्ट में अति महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी , लगभग पचास से अधिक संविदाओं और करारों का डाकुमेंटेसन, उनकी लीगल और स्टैचुअरी प्रोविजन्स की स्ट्रक्चरिंग, और उनका तयसुदा समय में फाइनलाइजेसन और इम्प्लीमेंटेसन ,में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्बहन करते थे , किन्तु स्वयं उनके कार्य अथवा उनके केबिन में रंचमात्र भी कोई अव्यवस्था कभी भी दिखाई नहीं पड़ती थी । उनके चैम्बर में सभी पत्र, कागजाद्, फाइलें उनकी मेज और आलमारी में करीने से एवं सटीक मार्किंग के साथ सुव्यवस्थित रखे रहते थे, और किसी भी चर्चा के दौरान आवश्यक कागजाद या फाइल वे चटपट बिना कोई वक्त गँवाये और बिना किसी सहाय़क की सहायता के वे तुरत व चमत्कारिक रूप से उपलब्ध कर लेते थे । वे चर्चा के दौरान, दूसरों की बात ध्यान से सुनते, खुद बस जरूरत के मुताबिक और बिलकुल नपा-तुला ही बोलते, और जितना भी बोलते वह सटीक व तथ्यों-जानकारियों पर पूरी तरह आधारित होता ।
मीटिंग्स के प्रति वे बड़े ही समय-पाबन्द थे, खुद ठीक समय से उपस्थित होते, और किसी भी कारण से यदि बड़ा से बड़ा अधिकारी भी, चाहे प्रबंध निदेशक ही क्यों न हों, बिलम्ब से आता, वे मीटिंग में दो मिनट से ज्यादा प्रतीक्षा कतई नहीं करते थे और बिना वक्त जाया किये वापस अपने केबिन में आकर अपने काम में व्यस्त हो जाते ।वे मीटिंग में वापस उस अधिकारी के व्यक्तिगत खेद प्रकट करने और अनुरोध करने पर ही आते। इस तरह वे बडे ही विनम्र और दृढ तरीके से अपनी समय की पाबंदी और अनुशासनप्रियता का संदेश दे देते थे ।
श्री सैतो सचमुच ही शालीनता, अनुशासन-प्रियता,समय की पाबंदी, और सार्वजनिक जीवन में सदाचरण और गरिमामय व्यवहार के प्रतिमूर्ति थे। श्री सैतो के अलावा भी कुछ अन्य जापानी सहकर्मियों के साथ मुझे दिल्ली मेट्रो प्रोजेक्ट में काम करने का अवसर मिला, और उन सज्जनों में भी मुझे ये सद्गुण कमोवेश दिखाई पड़ता था । इसलिये यह कहना सर्वथा उचित ही है, और जैसा श्री अमृत ढिल्लन जी ने भी अपने लेख में बताया है, कि जापानी संस्कृति व जीवन-शैली में शालीनता, अनुशासन-प्रियता, समय की पाबंदी, और सार्वजनिक जीवन में सदाचरण और गरिमामय व्यवहार की स्पष्ट झलक मिलती है ।
दस दिन पूर्व जापान में आये भारी भूकम्प और सुनामी के भयंकर प्राकृतिक आपदा और उससे हुई भयंकर तबाही ने जापानियों के प्रकृति के प्रति प्रेम और सम्मान के स्वभाव व मूल्यों, उनकी स्वच्छता, शुचिता, सुकोमलता और शालीनतापूर्ण जीवन-पद्दति के साथ क्रूर मजाक किया है । प्रकृति के प्रति प्रेम जापानियों का मौलिक स्वभाव है । ‘सकूरा’ आगमन पर जापानी चेरी वृक्ष के साथ उनका उत्सव समारोह, उनके चरम प्रकृति प्रेम को ही दर्शाता है । उनके लकड़ी के हल्के , सुन्दर-सुगढ़ मकान व उनकी दीवारों पर उकेरे गये सादगी भरे प्राकृतिक दृश्यों की पेंटिंग्स,इन घरों को प्रकृति से अलग-थलग किसी किले का रूप देने के बजाय, इन्हें प्रकृति और परिवेश की हरियाली से आत्मसात सी कर देती हैं । जापानी जीवन-शैली प्रकृति के ऊपर आधिपत्य ज़माने के विपरीत उसके साथ समाचरण व साहचर्य की है ।उनकी स्याही व वाटर कलर पेंटिंग्स में भी इसी प्रकृति-प्रेम व इसकी प्रधानता की गहरी छाप दिखाई पड़ती है ।
श्री ढिल्लन ने अपने लेख में जापानियों की अनुशासन प्रियता,कर्तव्यपरायणता और सार्वजनिक जीवन में सदाचरण व गरिमामय व्यवहार की कुछ रोचक और प्रभावशाली घटनाओं की चर्चा की है । सार्वजनिक जीवन में शायद ही कोई चीखते, चिल्लाते, थूकते, जम्भाई लेते,अस्तव्यस्त दिखते, भीड़ में धक्का-मुक्की करते, कुहनी मारते,( जो कि हमारे देश में तो आम रूप से दिखायी पड़ जाता है ।) दिखायी पडे । जापानी अपने सार्वजनिक जीवन में सदा ही शान्त, सुव्यवस्थित,सहिष्णु और सदा नियमानुकूल व्यवहार करते हैं। भीड़भाड़ की जगहों में वे बडी ही नम्रता व सावधानी के साथ, दूसरों को बिना अवरोध और असुविधा दिये चलने का प्रयास करते हैं । उनका आम जीवन में नियमानुकूल व संयमित आचरण निश्चय ही अनुकरणीय है ।विश्व के सबसे घनी आबादी में से एक देश होने के बावजूद भी उनके सार्वजनिक स्थान हमेशा शान्तिपूर्ण, बिना किसी हंगामा या झगडा-फसाद से रहित होते हैं। औद्योगिक देशों में जापान न्यूनतम् अपराध दर वाला देश है ।
इस प्राकृतिक आपदा के विषम समय में भी , जबकि बहुत से लोग भोजन-पानी जैसी मूल-भूत सुविधाओं और अपने रहने के ठौर-ठिकानों से भी वंचित हो गये हैं, शायद ही कोई लूट-पाट, वेंडिंग मसीनों की तोड़फोड़ की घटना ( जो कि अमरीका में भी पिछले वर्ष कैटरीना चक्रवाती तूफान के दौरान अनेकों की संख्या में हुईं।) हुई हो ।जबकि देश में अधिकांश सब्जी फल-फूल, दूध व अन्य खाद्य व पेय पदार्थ रैडियेसन प्रभावित हैं, और जापान सरकार सावधानी के तौर पर नागरिकों से केवल विशेष सरकारी दुकानों पर उपलब्ध पूरे जाँचे-परखे सब्जी फल-फूल, दूध व अन्य खाद्य व पेय पदार्थ ही उपयोग में लाने को लगातार अनुरोध कर रही है, लोग कई दिनों से भूखे-प्यासे रहकर भी अपने छोटे-छोटे मासूम बच्चों को साथ लिए, अनुशासन से कतार में लगकर पूरे संयम और शांति से पूरा सहयोग कर रहे हैं।
सामान्यतया भी जापानी सार्वजनिक स्थानों पर पूरा ध्यान रखने और उनको स्वच्छ व व्यवस्थित रखने में पूरा सहयोग करते हैं।सड़क पर चलते राहगीर एक कागज का टुकड़ा भी इधर-उधर भी फिंका देखते हैं, तो चुपचाप उठाकर उसे पास के कूडेदान में डाल देते हैं।यदि आपने टैक्सीवाले को गलती से ज्यादा रकम दे दी, तो वे उल्टा आपसे क्षमा माँगते हुए, ज्यादा राशि आपको वापस कर देंगे।ट्रेनों, बसों एवं अन्य सार्वजनिक वाहनों में लोग अनुशासन के साथ पंक्तिबद्ध चढते उतरते हैं व पूरी शान्ति से यात्रा करते हैं। इन सार्वजनिक परिवहनों के कर्मचारी भी यात्रियों के साथ पूर्ण शालीनता और विनम्रता से पेश आते हैं।
जापानियों का सार्वजनिक स्थानों में सदाचरण का एक अच्छा उदाहरण श्री ढिल्लन ने भूकम्प वाले दिन हुई एक रोचक घटना से दिया है। उस दिन टोक्यो के एक भीड-भाड वाले रेस्तरॉ में काफी लोग अच्छे भोजन का आनन्द ले रहे थे जब अचानक भूकम्प आया। सभी लोग सुरक्षा के लिए बाहर सड़क पर निकल आये। किन्तु जैसे ही भूकम्प शान्त हुआ सभी लोग शान्तिपूर्वक रेस्तरॉ में वापस आ गये और वाकायदा लाइन में लगकर अपने भोजन की बिल का भुगतान करने लगे । भला ऐसा सदाचरण कहाँ देखने को मिलेगा ?
इतने कठिन और आपदा के क्षणों में भी जापानी लोगों द्वारा किसी भी प्रकार की दीनता अथवा लाचारी दिखाये बिना , पूरी बहादुरी और धीरज से परिस्थितियों का मुकाबला कर रहे हैं। न दैन्यम् न पलायनम् की इससे अच्छी मिसाल क्या हो सकती है ?
बौद्ध दर्शन के मतानुरूप ही , जापानी जीवन संस्कृति व परम्परा भी, जीवन व सभी पदार्थों की नश्वरता को स्वीकार करते हुए, साक्षी भाव से पूर्ण सहनशीलता व धैर्य के साथ सदाचरण व सहिष्णुतापूर्ण जीवन जीने की कला पर आधारित है । दुर्भाग्य से इस प्राकृतिक प्रकोप ने उनके इस जीवन दर्शन को सर्वथा सत्य ही सिद्ध किया है ।सच कहें तो आधुनिक सभ्यताओं में, जहाँ जीवन नये-नये उपकरणों, मसीनी यंत्रों,और आधुनिक सुविधाओं पर केन्द्रित व निर्भर है, जापानी जीवन दर्शन सबसे उत्कृष्ट है ।
हम सब यही प्रार्थना ईश्वर से करें कि जापानी लोगों की यह विनम्रता,सहिष्णुता,सज्जनता,शांतिप्रियता,सार्वजनिक जीवन में अनुशासन व सदाचरण एवम् उनका धीरज व संयम उन्हे इस आपदापूर्ण प्राकृतिक प्रकोप के विषम काल से गरिमापूर्ण ढंग से सामना करने हेतु शक्ति व आत्मबल प्रदान करे।