Friday, December 23, 2011

वर्ष 2011 तुम्हें शतशत नमन.....




संघर्षशील,क्राति के जज्बे
व हिम्मत बहादुरी से परिपूर्ण,
वर्ष 2011 तुम्हे शतशत नमन।

चाहे काहिरा का तहरीर चौक हो,
या न्यूयोर्क का जुकोटी पार्क,
बने तुम  हजारों लाखों आमजनों की
उभरी भावनाओं की अभिव्यक्ति,
एथेस से लेकर मैड्रिड तक,
नई दिल्ली से लेकर मास्को तक
उभरे तुम अन्याय के खिलाफ आवाज बनकर ।
2011 तुमको शत-शत नमन।1।

अरब दुनिया में फैली मनमानी ,
ट्यूनिसिया,मिस्र,लीबिया और यमन की तानाशाही,
प्रस्तुत हुये जनाक्रोश बनकर,
उखाड़ फेंखने इन क्रूर शासकों की
निरंतर जारी क्रूरता व जनतबाही
जनता के विद्रोह बनकर
वर्ष 2011 तुम्हे शतशत नमन।2।

अन्याय के असुर फैले विश्व में
हैं अनेको अनगिनत रूप इनके,
कहीं आर्थिक व भौतिक अव्यवस्था
तो कहीं राजनीतिक कुव्यवस्था,
कहीं है घोर सामाजिक विषमता
तो कहीं हैं शून्य न्याय-समता
कहीं धर्म का है फैलता आतंक,
तो है कहीँ शक्ति का अतिदंभ।
कही मुद्रास्फीति की विकट मार,
तो कहीं घनघोर भ्रष्टाचार,
संत्रप्त है यह धरा जब यत्रतत्र फैलते परिताप से,
तब तुम उठे जनरूप में चहुँओर ही,
न्याय की गुहार बनकर ।
वर्ष 2011 तुमको शतशत नमन ।3।

जब जूझता है देश भ्रष्टाचार से ,
दिखती हुई हर दिशा विकाश की धूमिलमयी ,
और तुम तो जा रहे हो,
हो प्रस्थानमय, अस्ताचल में अवस्थित,
किंतु अवसान के पूर्व तुम आशीर्वाद देना,
इस उभरते,आकांक्षा भरे,
युवाशक्ति से भरे भारत देश को
जो कि आज असहाय सा है
किसी कुशल नेतृत्व के अभाव में
कि यह जयी हो,
हो विजय इसके जनाकांक्षाओं की ,
मुक्त हो अन्याय,भ्रष्टाचार से,
यह समृद्ध हो,गौरवमयी हो
विकसित देश बनकर।
वर्ष 2011 तुमको शतशत नमन।4।

Wednesday, December 21, 2011

सूरज, वाह ! ऊर्जा का क्या अद्भुत श्रोत है...




सूरज, वाह ! ऊर्जा का क्या अद्भुत श्रोत है-  जी हाँ यह अभूतपूर्व उद्गार किसी और के नहीं बल्कि अब से तकरीबन अस्सी वर्षों पूर्व ही अमरीकी महान अन्वेषक व अद्भुत उद्यमी थॉमस अल्वा इडिसन के थे।सन् 1930 में ही अपने अभिन्न मित्रों व सहयोगियों हेनरी फोर्ड व हार्वे फायरस्टोन से उन्होने यह बात कही थी कि ' मैं तो अपना सारा धन सूरज व सौर-ऊर्जा पर लगा सकता हूँ। वाह! यह क्या अद्भुत ऊर्जा का श्रोत है?मैं उम्मीद करता हूँ कि सौर ऊर्जा के प्रभावी व्यावसायिक उपयोग हेतु हमें प्रथम अपने हाइड्रोकार्बन ऊर्जा श्रोतों के चुक जाने का इंतजार नहीं करना होगा।'

हालाँकि इडिसन ने जब यह भविष्य के ऊर्जाश्रोत के रूप में सौर-उर्जा की प्रधानता के प्रति घोषणा की थी ,उसके एक दशक पूर्व ही आइंस्टीन ने फोटोवोल्टेयिक सेल की खोज कर दी थी जिससे की प्रकाशऊर्जा को विद्युतऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है, परंतु उस समय सौर ऊर्जा के किसी व्यावसायिक उपयोग या इसका बिजली के उत्पादन हेतु हाइड्रोकार्बन श्रोतों के विकल्प के रूप में देखना एक सामान्य विचारधारा के व्यक्ति के लिये तो कल्पना के परे व हास्यास्पद ही था।

किंतु इडिसन जैसे विलक्षण प्रतिभाशील व्यक्ति भविष्य के क्षितिज पर लिखी इबारत को पढ़ने में सक्षम होते हैं।आज इक्कीसवीं की शुरुआत और इसके मात्र एक दशक बीतते ही हाइड्रोकार्बन श्रोतों के निकट भविष्य में ही चुक जाने की भयाबह आशंका के मद्देनजर जब वैकल्पिक ऊर्जा श्रोतों पर हमारी निर्भरता बढ़ाने की बात चल रही है, तो उसमें सौरऊर्जा प्रमुख विकल्प के रूप में उभर रहा है।

जहाँ दो दशकों पूर्व हमारी उर्जा-आवश्यकताओं की आपूर्ति  में सौरऊर्जा का योगदान नगण्य,1.5 प्रतिशत से भी कम था,वहीं आज इसका योगदान बढ़कर पाँच प्रतिशत हो गया है।ऊर्जा विश्लेषकों का मानना है कि यदि सौरऊर्जा की वर्तमान उल्लेखनीय वृद्धि जारी रही तो वर्ष 2025 तक विश्व की सभी ऊर्जा आवश्यकताओं के लगभग चौथाई हिस्से की आपूर्ति सौरउर्जा से ही होगी।

सोलर पैनल
 हमारे देश में भी सौर ऊर्जा के अधिकतम वैकल्पिक उपयोग हेतु जवाहरलाल नेहरू सौर अभियान शुरू किया गया है जिसके अंतर्गत 20000 मेगावाट ग्रिडपावर बिजली,2000 मेगावाट ग्रिड के इतर घरेलू उपयोग की बिजली,गरम पानी हेतु 20 मिलियन वर्गमी.सोलरताप पैनल व ग्रामीण क्षेत्रों में प्रकाश हेतु 20 मिलियन वर्गमी. सोलर पैनल लगाने की योजना है।

सोलर हीटर
भविष्य में हमें अपनी अधिकांश दैनिक उर्जा आवश्यकता- जैसे घर में रोशनी,गरम पानी,वातानुकूलन,खाने पकाने हेतु ईंधन,घर व कार्यालय में उपयोग आने वाले इलेक्टॉनिक उपकरणों हेतु बिजली,व्यक्तिगत वाहन इत्यादि, की आपूर्ति हेतु सौरउर्जा पर ही निर्भर रहना होगा। शहरों में बिजली की भारी समस्या को देखते हुये लोग बिजली के गीजर के बजाय सोलर वाटर का अधिकांशत: उपयोग पहले ही करना शुरू कर दिये हैं।इसी तरह बड़े सामूहिक भोजनगृहों,बड़े-बड़े होटलों रेस्तराँ में भी भोजन पकाने ,पानी गरम करने ,भवन प्रकाश व वातानुकूलन में सौरऊर्जा का भारी स्तर पर उपयोग पहले ही हो रहा है।

आपको यह जानकर सुखद आश्यर्य होगा कि बंगलौर जैसे शहरों की ट्रैफिक लाइटिंग प्रणाली शत्-प्रतिशत् सौर ऊर्जा पर ही आधारित है।इसी तरह हाईवेज व स्ट्रीट लाइटिंग में सौर ऊर्जा का वृहत् स्तर पर शुरू हो गया है।एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे शहर की स़ड़के शीघ्र ही सोलर स्ट्रीट लाइट से ही जगमग दिखाई देंगे।


सोलर पावर्ड सैटेलाइट

जैसा हमें पता ही है कि हमारे अंतरिक्ष यान व संचार-उपग्रह पूर्णरूपेण और आजीवन सौर ऊर्जा से ही संचालित होते हैं।

एक तरफ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बढ़ती ऊर्जा दक्षता और दूसरी ओर सौर उर्जा उपकरणों में निरंतर तेजी से हो रहे विकाश व उन्नति के कारण अब यह संभव दिखता है कि हमारी दैनंदिन ऊर्जा की अधिकांश आवश्यकतायें सूरज के प्रकाश से ही पूरी हो सकती हैं और हमारे मन से यही उद्गार निकलेगा कि- सूरज, वाह ! ऊर्जा का क्या अद्भुत श्रोत है ।


सोलर स्ट्रीट लाइट

Tuesday, December 20, 2011

मंगलमूरति मारुति नंदन.....



यदि आप वाराणसी के संकटमोचन मंदिर का दर्शन किये होंगे,तो मुख्यमंदिर में संकटमोचन जी की मूर्ति के पार्श्व दीवार पर अपना माथा टेकते समय दीवार पर उकेरित निम्न चौपाइयों को अवश्य पढ़े होंगे-

मंगलमूरति मारुति नंदन।
सकल अमंगल मूल निकंदन।1।
पवन तनय संतन हितकारी।
हृदय विराजत अवध विहारी।2।
मातपिता गुरु गणपति शारद।
शिवा समेत शंभु शुक नारद।3।
चरणकमल बंदहु सब काहू।
देहु रामपद नेह निबाहू।4।
जयजयजय हनुमान गुसाईं।
कृपा करहुँ गुरुदेव की नाईं।5।
बंदहुँ रामलखन वैदेही।
यह तुलसी के परम सनेही।6।

जब मैं बी.एच.यू. में पढ़ता था तो संकटमोचन मंदिर में होने वाले वार्षिक संगीत उत्सव को एक बार देखने व सुनने का अवसर मिला, जिसे मैं अपने जीवन के परम सौभाग्यों में मानता हूँ।इस समारोह में भारतीय संगीत की मूर्धन्य विभूतियाँ- पंडित भीमसेन जोशी,पंडित जसराज,पंडित राजन साजन मिश्र जी वहाँ पधारे थे व उनके अमृतगान को सुन श्रोतागण धन्य हो रहे थे व अपने जीवन में अलौकिक सुख को प्राप्त कर रहे थे।

कुछ वर्षों उपरांत जब मैं संकटमोचन की दीवार पर उकेरित इन पवित्र चौपाइयों के गाने की रिकार्डिंग, जो इन चारों महान विभूतियों के द्वारा सामूहिक गायन है,पहली बार सुना तो मन भाव विभोर हो उठा।तब से मेरा यह प्रियतम भक्तिगीत है,और इसे मैं नियमित ही सुनता रहा हूँ

विगत कुछ वर्षों - जब से मोबाइल पर ही गानों के स्टोरेज व सुनने की सहूलियत मिली है, तब से तो प्रतिदिन ही इसे सुनता हूँ।जितना ही इसे सुनता हूँ,इसे सुनने की मन में प्यास बढ़ती ही जाती है,और इसे सुनकर मन व हृदय को एक अलौकिक शांति की अनुभूति होती है।

जो मुझे प्रिय है उसे आपसे भी यहाँ साझा करता हूँ, और आशा करता हूँ आप भी इसे सुन अवश्य मन-हृदय से अति आनंदित अनुभव करेंगे।


Thursday, December 15, 2011

विकाश की पहली कुल्हाड़ी हरे-भरे पेड़ों पर.....


मैं बंगलौर में विगत लगभग साढ़े चार वर्षों से, जुलाई 2007 में मेरे बंगलौर मेट्रो प्रोजैक्ट में पोस्टिंग के पश्चात् से, रह रहा हूँ।तब से, और विगत एक वर्ष से मेरे वापस रेलवे में पोस्टिंग के बाद से, प्रतिदिन ही मेरे ऑफिस आने-जाने का रास्ता जयनगर के बीच से गुजरने वाली आर.वी. रोड से है जो साउथ इंड सर्किल पर समाप्त होती है।

शुरु के सालों में आते जाते इस सड़क के दोनों ओर इसकी लम्बाई के साथ फैले हरेभरे गार्डेन बड़े ही सुंदर, मनमोहक व सुखदायक लगते थे।फिर पिछले दो साल से मेट्रो रेल,जिसका अलाइनमेंट आर वी रोड के सेन्टर लाइन के साथ है, का काम शुरू हुआ और धीरे धीरे मेट्रो स्टेशन के निर्माण कार्य हेतु निर्माण सामग्री व बड़ी बड़ी मसीनों के भंडारण के लिये इन गार्डेन का उपयोग व बैरिकेडिंग शुरु हुई, और देखते देखते सड़क के किनारे फैला पूरा हरा-भरा सुंदर स्ट्रेच विलुप्त हो गया व उनकी जगह आ गये बदरूप तितरबितर बिखरे निर्माण-सामग्री के ढेर, लोहालक्क्ड़,मसीन,औजार व बदसूरत बैरिकेडिंग्स।

अभी तक तो सड़क के किनारे फैली गंदगी व बदसूरती बैरीकेडिंग के पीछे कुछ हद तक ढकी हुई थी किंतु इधर कुछ दिनों से हटायी जा रही बैरिकेडिंग के पीछे छुपी विद्रूपता नजर आने लगी है कि इन गार्डेन्स के ज्यादातर पुराने हरे पेड़ कट चुके है और अब उनकी जगह उनकी बोटी-बोटी कटी लाशें जमीन पर ढेर पड़ी हैं।

यह देखकर सचमुच मन में बड़ा क्षोभ होता है और मन में यह प्रश्न हथौड़े की तरह प्रहार करता है कि क्या विकाश कार्य का यही मतलब है कि सर्वप्रथम हम अपनी प्राकृतिक हरियाली व सुंदरता को नष्ट कर दें?

कुछ दिन पूर्व मैं उत्तरप्रदेश के सुदूर दक्षिण-पूर्व कोने पर स्थित एक छोटे से स्थान ओबरा किसी शादी-समारोह में शामिल होने हेतु गया था।"ओबरा" एक महत्त्वपूर्ण बिजली उत्पादन केंद्र के रूप में जाना जाता रहा है।यह मेरे लिये कई मायनों में विशेष स्थान रहा है कि यहाँ मेरी व मेरी पत्नी दोनों की स्कूलिंग हुई है व हमारे बचपन के सुनहरे वर्ष यहाँ बीते, साथ ही साथ अगर हमारे सामने जब भी प्राकृतिक रूप से सुंदर व हरे-भरे स्थान की चर्चा होती है तो हमारी जेहन में पहला ध्यान ओबरा का ही आता रहा है- चोपन, जो ओबरा से 8 किमी पहले स्थित मुख्य रेलवे स्टेशन है, से ओबरा जाने वाली मेटैलिक सड़क जो दोनों ओर हरियाली से लकदक सुंदर होती,वहाँ की साफ-सुथरी हरी-भरी कालोनी,ओबरा के बाहरी हिस्सों में फैले सुंदर हरे-भरे जंगल व वहाँ स्थित सुंदर-स्वच्छ जल वाला रेनु नदी पर स्थित ओबरा डैम,जिसके पानी से उच्च क्षमता की बिजली पैदा की जाती है।यह सबकुछ हमारे जेहन में एक सुंदरतम व अनुपम स्थान के रूप से स्थापित रहा है।

किंतु लगभग तीस वर्षों के अंतराल पर जब अब हमारा ओबरा आना हुआ तो वहाँ का दृश्य व दशा देखकर घोर दु:ख व निराशा हुई- चोपन से ओबरा तक की टूटी-फूटी गड्ढों से भरी, व दोनों तरफ की नष्ट हरियाली व जंगल से उजाड़,वाली बदसूरत व बदहाल सड़क,  क्रसर मसीनों के शोर व धूल से भरीं उजड़ी व निरंतर छीजती पहाड़ियाँ, उजाड़ व विरान सी कालोनी और इसकी टूटी-फूटी सड़कें, इसके बाहरी हिस्से की नष्ट-भ्रष्ट हरियाली, ऐसा लगा मानों किसी प्रेतस्थल में प्रवेश कर रहे हों। जो स्थान हमारे जेहन में स्वर्ग सा सुंदर व हमें सदैव मधुरस्मृति दायक रहा है, उसकी यह भयावह व घोर उपेक्षित दशा देखकर मन को बहुत चोट पहुँची।

यह सिर्फ एक दो स्थान की ही यह बात नहीं है, प्राय: हर वह स्थान जहाँ हमारा तथाकथित विकाश कार्य हुआ है अथवा हो रहा है,वहाँ विकाश तो जो है सो है पर निश्चय ही प्राकृतिक  विद्रूपता अवश्यमेव ज्यादा बढ़ी है विकाश की कुल्हाड़ी का पहला आघात हरियाली व हरे-भरे वृक्षों पर ही पड़ा है।

वैसे किसी भी विकाश का सामान्य मतलब तो यह नहीं माना जा सकता कि हरियाली व प्रकृति को नष्ट-भ्रष्ट व नेस्तनावूद कर दें। मैं कुछ महीनों पहले एक ट्रेनिंग के सिलसिले में सिंगापुर में था।सिंगापुर डेढ़- दो हजार वर्गकिलोमीटर क्षेत्र का देश है, जो हमारे देश के किसी भी मेट्रो शहर की तुलना में छोटा ही होगा, और भारतीय शहरों से हर मामले में हजारों गुना ज्यादा विकसित है, किंतु इसकी हरियाली व प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है,और गंदगी व धूल-धक्कड़ का तो नामोनिशान तक नहीं।जहाँ हमारे मेट्रो शहरों में हरियाली नेस्तनामूद हो चुकी हैं व जहाँ-तहाँ बस अजगर जैसे फैले बदसूरत फ्लाईओवर हैं जो आँखों को अति कष्टकारी लगते हैं, वहीं सिंगापुर का हर कोना हरीतिमापूर्ण है ,और वहाँ के फ्लाईओवर्स भी सुरुचिपूर्ण व हरे-भरे फसाड के साथ आखों को सुखकारी ही लगते हैं।

हमें भी अपनी सोच में परिवर्तन व समझदारी दिखानी होगी कि विकाश कार्यों के साथ हम अपनी प्राकृतिक संपदा व सौंदर्य को तहस-नहस न होने दें, बल्कि प्राकृतिक सौन्दर्य व इसकी हरीतिमा को विकाश का पूरक बनाकर रखें, और इसी तरह का ही विकाश माडल हमारे एक सुंदर,सुखद , मंगलकारी व सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित कर सकता है। 

Saturday, December 10, 2011

-जुगाड़ का खेल व आग के खतरे...


इस संदर्भ में मैं एक वाकया आपसे साझा करना चाहूँगा।बात दो वर्ष पुरानी है जब मैं अपने प्रबंधन की पढ़ाई के सिलसिले में यू.एस.ए में था।अमरीकी लोकनीति व गवर्नेंस के विशेष अध्ययन हेतु हमारी कक्षा, जिसमें हम सभी तकरीबन 25 भारतीय सरकारी अधिकारी शामिल थे, वहाँ के प्रधान सरकारी कार्यालयों के दौरे पर थी व हम सभी वहाँ की राजधानी वाशिंगटन डी.सी. के एक होटल में रुके थे।वहाँ के स्तर को देखते यह आठ-दस मंजिला एक साधारण सा ही होटल था।हम सभी होटल के तीसरे और चौथे माले पर रुके थे।

एक दिन अचानक सुबह चार बजे होटल के कमरे में लगा फायर अलार्म सक्रिय हो गया व सायरन बजने लगा और हम हड़बड़ाते हुये बिस्तर पर सोते से उठते कि कमरे की कालबेल भी बज उठी व दरवाजे पर होटल स्टाफ यह सूचना दिया कि होटल में कहीं आग लगी है व हम सभी पाँच मिनट के अंदर अपने पासपोर्ट,प्रवास सम्बन्धित जरूरी कागजात,मुद्रा इत्यादि के साथ फायर लिफ्ट का उपयोग करते ग्राउंड फ्लोर पर रिसेप्सन लॉबी में इकट्ठे हो जायें।

जब तक हम सब फायर लिफ्ट तक पहुँचे तब तक धम-धम बूट पटकते फायर ब्रिगेड कमांडो भी फायर स्टेयर केस के रास्ते हमारी फ्लोर पर पहुँच चुके थे।हम सभी घबराये सहमे से, कुछ के साथ छोटे बच्चे भी थे,होटल के रिसेप्सन लॉबी में इकट्ठे हो गये।हम देख सकते थे कि होटल परिसर में चार फायर ब्रिगेड गाड़ियाँ सभी आधुनिक लावलस्कर के साथ तैनात थी।

हम सब हतप्रभ से घटना के बारे में अनुमान लगाने की कोशिश कर रहे थे कि करीब दस मिनट के अंदर होटल के सिक्युरिटी स्टाफ ने हमें सूचित किया कि तीसरे फ्लोर के एक कमरे में ठहरे अतिथि , जो कि हमारे ही ग्रुप में से ही एक था,द्वारा दूध उबालते हुये कुछ दूध हॉट प्लेट पर गिर गया और जिसके धुयें से स्मोक व फायर डिटेक्सन प्रणाली सक्रिय होकर फायर अलार्म व सुरक्षा सायरन सक्रिय हो गया।होटल स्टाफ ने सभी अतिथियों से हुई असुविधा हेतु खेद प्रकट करते हुये तीसरे फ्लोर के अतिथियों को छोड़कर बाकी सभी को अपने कमरे में वापस लौटने की अनुमति दी।करीब आधे घंटे की गहन जाँच व आग की किसी संभावित आशंका को फायर सेफ्टी कमांडो द्वारा न्यूट्रलाइज करने के उपरांत ही हम बाकी सभी तीसरे फ्लोर के लोगों को भी अपने कमरे में वापस जाने की अनुमति मिली।जिन सज्जन के कमरे में यह आग का हादसा हुआ था उनकी व उनके पत्नीजी की तो कई घंटों तक सिक्युरिटी स्टाफ द्वारा काउन्सिलिंग चलती रही, जो कि उन लोगों के लिये बड़े ही झेंप वाली स्थिति थी।

हम सबमें से कइयों के लिये यह अजीब,हास्यास्पद व कुछ ज्यादा प्रतिक्रियात्मक लग रहा था, किंतु सारी कार्यवाही जिस तत्परता,गम्भीरता व युद्धस्तर पर की गयी,कि एक छोटी सी आग की घटना पर भी आवश्यक कार्यवाही बिना कोई समय गँवाये, घटना के मात्र मिनटों अंदर ही शुरू हो गयी व आधे घंटे के अंदर सुरक्षित सम्पन्न हो गयी, जिससे मैं निश्चय ही बड़ा प्रभावित हुआ और यह हमेशा के लिये मेरे जेहन में बैठ गयी।

जब मैं इस मामूली सी घटना की तुलना कल अपने देश में कोलकाता के बड़े अस्पताल में हुयी आग की दुर्घटना, जिसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गयी,से करता हूँ तो मन भारी शर्म व दुःख के बोझ तले दब जाता है और जब यह पढ़ने को मिलता है कि आग लगने पर भी इस तथाकथित विशाल व अत्याधुनिक अस्पताल में आधे घंटे तक अस्पताल के स्टाफ,सुरक्षा कर्मियों व मरीजों को कोई सिग्नल या अलार्म मिलना तो दूर,कानोंकान पता भी नहीं चलता कि अस्पताल के किसी कोने में भयंकर आग लगी है और तेजी से आग व धुँआ फैल रहा है और उन्हे असहाय मरीजों की जान बचाने का कोई कारगर कदम उठाना चाहिये।जब उन्हे पता भी चलता है तो कोई प्रभावी रोकथाम व सुरक्षा की कार्यवाही, वैसे भी इसकी न तो उन्हें कोई ट्रेनिंग है न ही जानकारी, करने के बजाय बस घबराये व भ्रमित से इधरउधर भागते रहते हैं।यहाँ तक कि पास के ही फायर स्टेशन को भी अस्पताल में आग की सूचना घटना होने के घंटों बाद मिलती है जब तक बहुत देर हो चुकी होती है व कई मरीज तड़पने, साँसघुटने से दम तोड़ चुके होते हैं ,और आगसुरक्षा कर्मचारी जब घटना स्थल पर पहुँचते भी हैं तो बिना उचित साजोसामान के कि वे आग व धुयें में फँसे लोगों को कोई सार्थक मदद पहुँचा सकें। घटना के लगभग चार घंटे उपरांत ही दक्ष फायर कमांडो व बचाव के आवश्यक साजोसामान व उपकरण वहाँ पहुँच पाते हैं किंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी व सैकड़ों लोग दम तोड़ चुके थे।

जैसा कि अखबारों में पढ़ने में मिला कि अस्पताल के बेसमेंट में आग सुरक्षा नियमों की घोर अवहेलना करते हुये कई प्रकार के ज्वलनशील सामानों,गैस सिलिंडरों का स्टोरेज था, जिसपर फायरसुरक्षा विभाग के अधिकारियों ने आपत्ति भी जतायी थी।यहाँ तक कि इसी तरह की आग की घटना अस्पताल में तीन वर्ष पूर्व भी हुई थी किंतु सौभाग्यवश उस समय किसी हताहत की घटना नहीं हुई इसलिये इसे गम्भीरता से नहीं लिया गया और लापरवाही व आग सुरक्षा नियमों की अवहेलना की यथास्थिति बनी रही।

हमारे देश में यह आग सुरक्षा नियमों की अवहेलना के कारण हुई आग की घटना व इसमें सैकड़ो जान जाने की यह कोई नई घटना नहीं है। कई वर्षों पहले दिल्ली में हुई उपहार सिनेमा हाल की घटना, चंडीगढ़ में बच्चों के स्कूल उत्सव में पंडाल में आग की घटना व सैकड़ों मासूम बच्चों की मौत, उत्तर प्रदेश के मेरठ में एक मेले के पंडाल में लगी आग व सैकड़ों की जलकर मौत,कोलकाता में कई आग के हादसे, एक साल पहले बंगलौर के एक आईटी कम्पनी में लगी आग व उसमें कई लोगों की मौत,  हमारी ट्रेनों में अकसर होने वाली आग की घटनायें व उसमें होने वाली कई मौतें, जैसे कई दुखद,दुर्भाग्यपूर्ण व आँख खोलने वाले हादसे पहले हो चुके हैं और प्रायः ही घटते रहते हैं,किंतु हमारी आँख कहाँ खुलती है ? कुछ दिन तक तो हुई इस दुःखद घटना की चर्चा होती है,हम शोक जताते हैं, फिर भी सारे सुरक्षा नियमों-तरीकों को ताक पर रखते,हमारा बस वहीं जुगाड़ु तौर-तरीकों वाला Business as Usual चालू रहता है।

क्षमा करें मेरा विचार मात्र अपने देश और यहाँ अपनाये जाने वाले तौर-तरीकों की आलोचना व अमरीका या पश्चिमी देशों को महिमामंडित करना नहीं है।पर मन में इस बात का भारी क्षोभ अवश्य है कि एक तरफ जब हम विकसित देशों की देखादेखी आधुनिक सुख-सुविधा वाली बड़ी-बड़ी इमारतें व भवन (जिनकी ग्लास पैनल्ड खिड़की रहित बाहरी दीवारें,केंद्रीकृत वातानुकूलन और उनकी चमक-दमक देखते ही बनता है) तो बना लेते हैं किंतु उनके लिये आवश्यक आग सुरक्षा नियमों की भारी उपेक्षा करते हैं।

ऐसा नहीं कि आवश्यक सुरक्षा नियमों व मानकों का हमारे देश में कोई अभाव है अथवा वे दोयम दर्जे के हैं, किंतु स्वयं के इस क्षेत्र में लम्बे तकनीकी अनुभव के आधार पर बड़े दुःख के साथ कहना चाहता हूँ कि भवन निर्माण व इसके रखरखाव से संबंधित अभियंताओं व प्रबंधकों/मालिकों द्वारा आग सुरक्षा नियमों से संबन्धित आवश्यक उपायों व उपकरणों की भारी उपेक्षा जान-बूझ कर की जाती है,उनपर किसी तरह का खर्चा उन्हें फालतू का खर्च महसूस होता है। यदि कोई तकनीकी जानकार इंजिनियर या सलाहकार इन उपकरणों व प्रणालियों को सुनिश्चित करने का आग्रह करता है तो उसे काम की प्रगति में अनावश्यक रोड़ा डालने वाला समझकर उसे व उसके सुझाव को दरकिनार कर दिया जाता है।

यदि कहीं ये उपकरण लगे भी हैं तो उनके रखरखाव की घोर उपेक्षा के कारण प्रायः खराब होते हैं व जरूरत पड़ने पर काम ही नहीं करते।हमारा आग सुरक्षा विभाग भी इन आधुनिक ,विशाल व जटिल प्रणालियों वाले भवनों में आग के खतरे से निपटने हेतु आवश्यक व आधुनिक सुविधा से विहीन व दक्षता से रहित हैं।

भविष्य में यदि इस तरह कि आग लगने की दुखद घटनाओं से बचना है तो  हमें भवनों में आग से सुरक्षा के तौर-तरीकों ,आवश्यक उपकरणों व प्रणालियों और इनके रखरखाव के आवश्यक नियमों को मानकों के अनुसार कड़ाई से पालन करना होगा , बजाय कि  इनके प्रति उपेक्षा बरतने व मात्र जुगाड़ू तौर-तरीकों को अपनाने के, जो कि वर्तमान में हो रहा है।

Tuesday, December 6, 2011

-पाने की खुशी और खोने का गम..


कल मेरा अतिप्रिय सोनी मेक डिजिटल कैमरा मेरी यात्रा के दौरान खो गया।मैं अपनी भतीजी के शादी समारोह में उपस्थित होने अपने गाँव आया हुआ था।मेरा डिजिटल कैमरा जो प्राय: मैं अपने मोबाइल की ही तरह ट्राउजर्स की साइड पॉकेट में रखता हूँ,लगता है गाड़ी में चढ़ने या उतरने में जेब से सरक कर कहीं गिर गया।

जैसा मैं बताया,मेरा प्रिय कैमरा होने के नाते इसका खोना मुझे बड़ा ही पीड़ादायक अनुभव हो रहा है,और मन में एक तरह का अपराधबोध भी हो रहा है कि मेरी कहीं न कहीं लापरवाही से ही यह कैमरा खोया होगा ।यही होता है, जब किसी चीज को पाकर आपको अपार खुशी हुई थी व  आप उसे अपना प्रिय बना लेते हैं,या वह आपके लिये अति मूल्यवान वस्तु हो तो उसके खोने की पीड़ा भी भारी होती है।

क्षमा करें मेरे इस लेख का उद्देश्य सबको यह बताना नहीं कि मेरा प्रिय व मूल्यवान कैमरा खो गया,क्योंकि यह आप सबके लिये किसी भी तरह से मायने नहीं रखता और इससे आपका कोई सरोकार भी नहीं। किंतु मेरे दु:खी मन में एक जो प्रश्न आया मैं उसे यहाँ साझा करना चाहता था- क्या किसी चीज को अपना प्रिय या पसंदीदा बनाना अथवा किसी मूल्यवान वस्तु को अपने साथ रखना या धारण करना ही हमारी प्रथम भूल नहीं है?

क्योंकि जो प्रिय है अथवा मूल्यवान है और जिसको पाकर हमें अपार खुशी हुई थी और मन धन्य हो गया था ,यदि किसी कारण वश एकदिन बिछड़ जाता अथवा खो जाता है,तो अवश्य ही मन को भारी कष्ट पहुँचायेगा, तो आखिरकार हम जीवन में क्यों किसी को अपना अति प्रिय बनायें अथवा अति मूल्यवान वस्तु धारण करें और उसको पाने का अपने जीवन में उत्सव मनायें,  जब हमें पता है कि कल किसी भी कारण से यह हमसे बिछड़ेगी अथवा खो जायेगी तो हमारे मन को भारी दु:ख व पीड़ा पहुँचेगी?

मुझे इस प्रश्न के साथ-साथ इसके समाधान का एक हल्का सा संकेत भी इस विचार-चिंतन से मिलता है कि आखिर हमारे देश में योगी, तपस्वियों या सन्यासियों द्वारा अपने सभी प्रिय सम्बन्धों व मूल्यवान वस्तुओं का सर्वप्रथम व अनिवार्यत: त्याग करने का विधान इसीलिये बना है कि भविष्य में किसी भी प्रिय सम्बन्ध के टूटने या बिछड़ने या किसी मूल्यवान वस्तु के खोने की संभावना से मन में न तो किसी भी प्रकार का भय हो. न ही किसी भी प्रकार का इससें जनित क्षोभ या दु:ख ही।

अपने जीवनयापन व दैनिक आवश्यकताओं को सुचारू रूपेण पूरा करने हेतु हमें निश्चय ही अनेकों वाह्य संबन्धों व वस्तुओं पर अवलंबित होना ही पड़ता है, व उनकी अपने जीवन में दैनिक आवश्यकता व महत्व को हम कतई नकार भी नहीं सकते, किंतु इनका आना-जाना , मिलना-बिछड़ना,पाना-खोना भी जीवन की उतनी ही सामान्य प्रक्रिया व घटना है व इनको लेकर किसी भी तरह का हर्ष-विषाद नहीं करना होता ।समस्या तो तब आती है जब इन में से कुछ संबंध अथवा वस्तुयें हमारे लिये इतने प्रिय व मूल्यवान बन जाते हैं कि उनके बिछड़ने व खोने की तो बात दूर, मात्र इसकी शंका या कल्पना से ही मन विचलित व दु:खी हो जाता है।

तो ऐसा अनुभव व निष्कर्ष निकलता है कि किसी चीज के बिछड़ने या  खोने के संभावित दु:ख,दर्द या पीड़ा से बचने का सबसे प्रभावी तरीका तो यही हो सकता है कि हम अपने जीवन में आवश्यक संबंधों व वस्तुओं को बस आवश्यकता मात्र के दायरे में रखें बजाय कि उनके प्रति बेइंतहाँ चाहत,प्रेम या आकर्षण रखें कि इन मूल्यवान चीजों के खोने का मन में हमेशा भय बना रहे या इनके खोने से हमें दु:ख या पीड़ा हो।

वैसे एक मत यह भी हो सकता है कि अपनी प्रिय चीज के खोने के दर्द का भी अपना मजा है।आखिर इस जहान में इतने दिल न टूटे न होते,हम-अजीज बिछड़े न होते,लोगों की बेशकीमती चीजें जो उन्हें बेइंतहाईं रूप से पसंद थीं खोयी न होतीं, तो इस दुनिया में इतने खूबसूरत भावाभिव्यक्ति- साहित्य,काव्य,गीत,गजल व शायरी भी कहाँ से आये होते।मेरा भी पसंदीदा व कीमती कैमरा न खोया होता तो आखिरकार मैं यह लेख क्यों लिखता?
कह सकते हैं कि अपने अजीज चीज,जिससे पाने में अपार खुशी हुई थी, उससे बिछड़ने या उसके खोने के दर्द का भी अपना मजा है।तो मैं भी अपने इसी दर्द को अनुभव व इसका आनंद उठाने का प्रयाश कर रहा हूँ।