Sunday, April 3, 2011

हिम्मते मर्दाँ मददे खुदा ।


2 अप्रैल 2011 पूरे भारत व भारतीय क्रिकेट के लिए एक ऐतिहासिक दिन बन गया।आई सी सी विश्व कप 2011 के फाइनल मैच में भारतीय क्रिकेट टीम ने श्रीलंका जैसी बॉलिंग में अति दमदार टीम के विरूद्ध , 275 रन के विशाल लक्ष्य का पीछा करते हुए जीत हासिल कर लिया। यह भारतीय क्रिकेट टीम और पूरे भारत के लिए अद्भुत, रोमांचकारी और  बडे ही उत्सव का क्षण था।

प्रायः इस तरह का विशाल लक्ष्य का पीछा करना और विश्व कप जैसे अति महत्वपूर्ण अवसर का दबाव खिलाडियों के मन में हार का खौफ और हतासा उत्पन्न कर देता है, जिससे नाजुक क्षणों में वे अक्सर अपना आत्म-विश्वास खो देते हैं, और घबराहट में कोई गलती कर देते हैं और टीम मैच हार जाती है। हमें आई सी सी विश्व कप 1996 का कोलकाता में भारत- श्रीलंका के बीच सेमीफाइनल मैच याद आता है, जब भारतीय टीम इसी तरह के लक्ष्य का पीछा करते हुए नाजुक क्षणों में हतास और घबरा गयी थी और नतीजा मैच हार गयी थी।

यदि हम अपने इतिहास को देखें तो इस तरह के अनेक उदाहरण मिल जाएँगे , जब नाजुक क्षणों में हमारी हिम्मत और दमखम कमजोर पड जाता था, और ऐसे मैच जिन्हे हम निश्चय ही जीत सकते थे और इतिहास में विजेता होने का गौरव प्राप्त कर सकते थे, हमारे हाथ में आते-आते खिसक गये और हमें पराजय का मुख देखना पडा। यह किसी व्यक्ति , खिलाडी की ही बात नहीं थी, बल्कि यह कही न कहीं पूर्व में हमारे खुद के प्रति आत्मविश्वास और कठिन और नाजुक क्षणों में भी हिम्मत न हारने और हतास होने के बजाय अंतिम दम तक लडने के माद्दा की कमी की ओर इंगित करता है ।

पर भारत की नई व वर्तमान पीढी लगता है इस परम्परागत कमी से अब उबर चुकी है । आज का भारतीय नवयुवक आत्मविश्वास और हिम्मत से लबरेज है, वह अपने प्रतियोगी की ऑख में ऑख डालकर बात करता है और पलटकर जबाब देता है, जब विरोधी अपने पैतरों से सिकंजा कसता है, तो बिना घबराये और हिम्मत खोये , उसको पलट कर उसी की भाषा में ऐसा जबाब देता है कि उल्टा विरोधी के ही हौसले पस्त हो जाते हैं और वह मैदान छोडकर भाग खड़ा होता है ।हमारे आज के गौतम गंभीर, विराट कोहली,महेन्द्र सिंह धोनी और युवराज सिंह नई पीढी के इसी आत्मविश्वास, हौसले और हिम्मत के प्रतिमान हैं। ये विरोधी के बल-पराक्रम, दॉव, शिकंजों, चक्रव्यूह के हमले के सामने दबने सहमने के बजाय, नाजुक और विपरीत क्षणों व परिस्थियों में भी पूरे हौसले और हिम्मत से मैदान में उनका डटकर सामना करते हैं, और पलट कर ऐसा " घुमा कर देते हैं" कि उल्टा विरोधी ही पस्त होकर हार मान लेते हैं, और ये रन-बाँकुरे मैदान मार लेते हैं, और देश को विजय-श्री के सम्मान व गौरव से नवाजते हैं।

भारतीय क्रिकेट  की इस युवा पीढी ने अपनी हिम्मत, होशियारी और जोश से प्राप्त इस अद्भुत विजय से हमारा और हमारे देश का मस्तक गौरव से ऊँचा कर दिया है। उनकी यह जीत , हमारी युवा पीढी द्वारा विश्व पटल पर अनेकों अन्य – आर्थिक , सामाजिक, वैज्ञानिक, व्यवसायिक व बौद्धिक क्षेत्रों में भी नई ऊँचाइयों को प्राप्त करने और विश्व का नेतृत्व करने के लिए नया जोश , हिम्मत और हौसला  देगी। हिम्मते मर्दाँ मददे खुदा ।

जय भारत। जय भारतीय युवा शक्ति । आपको मेरी हार्दिक बधाई व शत्-शत् नमन ।

10 comments:

  1. बिलकुल सही कहा आपने मिश्रा साहब किसी भी जीत को पाने के लिए पहले हिम्मत चाहिए उसके बाद ही किसी प्रकार की मदद मिलती है

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  2. जी जयकुमार झा जी ।

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  3. हिम्मत , जोश और सूझ - बुझ से ही ....खेल या प्रतियोगिता में सफलता पाई जा सकती है ! बिलकुल सही लिखा है आपने !

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  4. प्रोत्साहनपूर्ण टिप्पडी हेतु धन्यवाद सॉ साहब ।

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  5. आँख में आँख डालकर बात करना हमारी आदतों में जुड़ जाये।

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  6. धोनी ने कमाल का फर्क पैदा किया दोनो मैचों की तुलना में। इसका श्रेय उसे जरूर मिलना चाहिए।
    आँखों में आँखें डालकर बात करना अब भारतीयों को आ गया है।
    वर्ल्ड कप जीतने की बधाई..नव संवत्सर 2068 की ढेरों शुभकामनाएँ।

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  7. वाह प्रवीन पाण्डेय साहब बात तो आपने एकदम सही की है लेकिन आज हमारे देश में आँख में आँख डालकर बात करने की आदत तो दूर ठीक से खरे होने की शक्ति भी छीन ली जा रही है उन लोगों से जिनमे कुछ करने की हिम्मत और जज्बा है और जो इस देश व समाज को बदल सकते हैं ....और ये काम हमारे देश के वो लोग कर रहें हैं जिनके ऊपर लोगों को सबल बनाकर देश और समाज को सबल बनाने की जिम्मेवारी है.....हमारे एक मित्र जो IG हैं ने कहा था की जय कुमार जब सत्य,न्याय व ईमानदारी को सर्वोच्च न्यायलय में भी पैसे से मेनेज कर दर किनार कर दिया जाय तो इंसान के पास जीने की लालसा ही ख़त्म हो जाती है ...उसके पास दो विकल्प बचता है सत्य,न्याय व ईमानदारी की रक्षा के लिए दोषियों को खुद सजा के तौर पर मौत दे या खुद को इस झंझट से अलग कर ले.....जमीनी स्तर पर असल जज्बे की कद्र की बहुत ही दर्दनाक अवस्था है.......आज आँख में आँख डालकर बात करने की शक्ति उसमे है जिसके पास अकूत दौलत है ..पैसा झूठ को सच और सच को झूठ ,इमानदार को बेईमान और बेईमान को इमानदार साबित कर देता है,जीत को हार और हार को जीत में बदल देता है ....वैसे आप जैसे लोगों के सोच को देखकर निराशा आशा में जरूर बदलती है ये एक सुखद सामाजिक पहलु है ....और इसी सुखद पहलु के लिए हमसब संघर्षरत हैं...हमारी भी हार्दिक इक्षा यही है की हम आँख में आँख डालकर बात करने की आदत डालें यानि सत्य बोलें ...आपकी टिपण्णी ने मेरे सामाजिक जाँच के दौरान के कुछ व्यक्तिगत अनुभव के यादों को ताजा कर दिया इसलिए मैंने अपनी बात कह दी...

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  8. हिम्मते मर्दा मददे खुदा. आत्मविश्वास सबसे जरूरी है किसी भी मुश्किल घड़ी से निकलने के लिए. देवेन्द्र जी आपने सच कहा है अब हमारे नयी पीढ़ी में आत्मविश्वास की कोई कमी नहीं दिखती. अब जरूरत इस बात की है कि यही आत्मविश्वास कायम रहे तो हम कामयाबी की नयी बुलंदियों को छूते रहेंगे, ना सिर्फ खेल में बल्कि सभी क्षेत्रों में.

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  9. "हमारी युवा पीढी द्वारा विश्व पटल पर अनेकों अन्य – आर्थिक , सामाजिक, वैज्ञानिक, व्यवसायिक व बौद्धिक क्षेत्रों में भी नई ऊँचाइयों को प्राप्त करने और विश्व का नेतृत्व करने के लिए नया जोश , हिम्मत और हौसला देगी। हिम्मते मर्दाँ मददे खुदा ।"

    कितना सार्थक कथन है आपका. युवा पीदी ही देश की आशा है.यदि हमारे देश का युवा अपनी जिम्मेवारी समझ सन्मार्ग पर चले,तो कोई ताकत नहीं जो भारत को महान बनने से रोक सके.

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