जीएसटी का अधिकांश विरोध वही तबका कर रहा है जो टैक्स इवैडर है और टैक्स इवैसन को भारत में जन्म लेने के नाते इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है।
(मैं यहाँ उन लोगों के विरोध की उपेक्षा कर रहा हूं जो मात्र राजनीतिक कारण या अपने बौद्धिक पूर्वाग्रहवश चूंकि मोदी से नफरत और विरोध करते हैं इसलिए जीएसटी का भी विरोध कर रहे हैं।)
जीएसटी भले ही सीधे तौर पर व्यक्ति के व्यवसाय और आमदनी पर ज्यादा फर्क नहीं डाले, मगर इसका सबसे तगड़ा फालआउट यह है कि सबको अपने व्यवसाय के पूरे आगत और निर्गत का डिटेल सबमिट करना होगा, और सारे डिटेल पैनकार्ड से लिंक्ड हैं. तो स्वाभाविक है कि किसी भी बिजनेस की पूरी इंकम भी अब सरकार और इंकम टैक्स विभाग की जानकारी में रहेगी, जो अब तक लोग चंटबुद्धि से छिपा लिया करते थे। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि इससे सारी चोरी, सारा टैक्स इवैसन ओवरनाइट बंद हो जाएगा, बड़े बड़े इन्नोवेटिव लोग हैं कुछ न कुछ तिकड़म तो भिड़ायेंगे ही, लोग मगर सतर्क होंगे, काफी हद तक ट्रांसपेरेंसी अवश्य आयेगी।
कल रात मैं भारत के वित्त मंत्री, श्री अरुण जेटली का एक टीवी चैनल पर इंटरव्यू सुना जो काफी स्पष्ट और बेबाक लगा | उनके अनुसार आज देश में औसतन सिर्फ 80 लाख लोग अपना टैक्स रिटर्न भरते हैं | मैं कहीं पढ़ रहा था, हो सकता है मेरी याददाश्त पूरी तरह से सही नहीं भी हो, कि देश में मात्र 16 लाख लोग अपनी आमदनी 10 लाख से ऊपर शो करते हैं | अब प्रश्न उठता है कि इस तरह के आंकड़े देश की क्या तस्वीर और लोगों का क्या चरित्र दिखाते हैं? जिस देश में पढ़ेलिखे लोग, डाक्टर, वकील, सीए, बिजनेस से बड़ी आमदनी बनाने वाले लोग भी नियमों का मैनिपुलेसन करके टैक्स इवेसन करते हो, और इस टैक्स की चोरी को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हों, वहां सरकार कड़े निर्णय लेकर यदि इन सभी टैक्स इवैडर्स को टैक्स नेट में लाना चाहती है तो कुछ लोगों को इतना बुरा क्यों लग रहा है, इतनी मिर्ची क्यों लग रही है, मेरी समझ में तो सरकार के यह कड़े निर्णय ईमानदार तबके के पक्ष में है |