Monday, April 18, 2011

............मैं कविता के दीप जलाता हूँ।



सूरज ढल रहा है,
सितारे दूर बैठे हैं।
थोडी सी रोशनी हो,
इसलिए मैं कविता के दीप जलाता हूँ।
इसलिए मैं  कविता…….



दिशाएँ मौन बैठी हैं,
हवाएँ शान्त स्थिर है।
घुटन कुछ कम हो,
इसलिए मैं शब्द-चँवर झेलता हूँ।
इसलिए मैं कविता………

दुपहरी तेज है तपिस है,
नहीं किसी वृक्ष का छाँव भी।
भावना का पगा सिर पर हो,
इसलिए गीत मुकुट गढता हूँ।
इसलिए मैं कविता…………



थके है पाँव मन थका है,
पथ मे विश्राम-स्थल भी नही।
पुश्त को आराम थोडा मिल सके,
इसलिए संगीत मरहम मलता हूँ।
इसलिए मैं कविता………

बहुत बिखराव है मन में,
दरकते हुए रिश्ते हैं हृदय मे।
दिल को दिल से मिला पाऊँ,
इसलिए प्रेमधागे जोडता हूँ।
इसलिए मैं कविता………..



आवेश मे हैं लोग भृकुटि तनी है।
कोई किसी की सुनता नही।
दिलो के बीच संवाद फिर से हो सके
इसलिए प्रेमाक्षरो के पुल बनाता हूँ।
इसलिए मैं प्रेमगीत लिखता हूँ।

10 comments:

  1. अद्भुत कविता। यह कविता मैंने बनते देखी है अतः इसके प्रभाव का परिमाण कितना हो यह सोचना कठिन हो रहा है मेरे लिये।

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  2. जीवन, दर्शन, प्रकृति और प्रेम को परिभाषित करती कविता...

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  3. बहुत बिखराव है मन में,
    दरकते हुए रिश्ते हैं हृदय मे।
    दिल को दिल से मिला पाऊँ,
    इसलिए प्रेमधागे जोडता हूँ।
    इसलिए मैं कविता………..

    बहुत सुन्दर पवित्र उद्देश्य है आपका,ईश्वर आपकी मनोकामना पूरी करें और आप हमेशा दिल से दिलों को जोड़ते रहें,बस यही है दुआ मेरी.

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  4. कुछ लिखने बैठता हूँ तो आज-कल कलम विद्रोह कर बैठती है. क्या करून....प्रभु के पास ही कुछ सुकून पता हूँ....
    आपकी कविता पसंद आयी.....
    प्रणाम

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  5. खुला है आसमान
    नीचे है जहान
    सबका है मकान
    ज़िन्दगी है मचान
    भावनाओ का भाव
    हर पल का बहाव
    हर कदम पर भटकाव
    ना जाने पर , कितने पड़ाव
    यादों का ना पूछो घाव
    बर्फ सा जमाव
    रिश्तों का लगाव
    प्यार का पिघलाव
    दिलों का मिलाव
    खून का खिंचाव
    जिंदगी का पड़ाव
    बचपन जवानी बुढ़ापा
    रह जाये हर सपना आधा
    योगी का जिंदगी से वादा
    दिखायेंगे हम हर अदा
    जब होगी ज़िन्दगी फ़ना
    चेहरे के जाने कितने अना
    न पतझड़ न सावन
    जीवन हर पल मनभावन
    ये है भारत का आँगन
    जहान प्यार बसता है पावन
    न हो प्यार का अंत
    मेरा भारत है अनंत
    प्यार का संत
    भला कौन कर सकता है
    मेरे भारत का अंत
    यह कविता क्यों ? भारत प्यार का आँगन है जहान सिर्फ प्यार पढाया जाता है और प्यार ही जिया जाता है भला प्यार कभी मरता है कोई कितना भी कर ले नफ़रत प्यार है भारत की शोहरत जय भारत जय भारतीय
    अरविन्द योगी १९/०४/२०११

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  6. यह कविता मुझे बहुत अच्छी लगी।
    चित्र लगाने में आपने गज़ब की मेहनत की होगी ऐसा लगता है। क्योंकि मै जब अपनी कविता के भाव के अनुरूप चित्र ढूंढता हूँ तो नहीं मिलता।

    दुपहरी तेज है तपिस है,
    नहीं किसी वृक्ष का छाँव भी।
    भावना का पगा सिर पर हो,
    इसलिए गीत मुकुट गढता हूँ।
    ...भावना का पगा..इसका कोई जवाब नहीं..वाह!

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  7. बहुत ही शानदार विचार..प्रेमगीत से अच्छी कोई गीत नहीं बशर्ते उसे लोग गंभीरता से सुने और दिल से महसूस करने का प्रयास करें...आप वास्तव में एक संतुलित इंसान हैं जो प्रेम की भाषा को दिल की गहराइयों से महसूस करने की कोशिस भी कर रहें हैं..आत्ममुगध्ता तथा इंसानी संवेदना का अद्भूत संतुलित संगम है इस कविता में..और मैं हर चीज में संतुलन का ही पक्षधर हूँ..

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  8. Prem aur aawesh ki veg man me lekar Kavita ka pool aise hi banate rahiye. Kinare jaroor milenge jab tairene ke iraden majboot ho.

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  9. प्रिय अरुण जी,राकेश जी, राजेशजी,अरविन्द जी, देवेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार।

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