Friday, April 29, 2011

.....तुम अद्भुत रचनाकार हो।


पुष्प का सौन्दर्य अनुपम,
अप्रतिम तुम देते कहाँ से!
तितलियों का रंग अद्भुत,
चित्र - रंग लाते कहाँ से!
दृष्टि जाती जिस दिशा में,
तेरी रचना मुग्ध करती।
तुम अद्भुत रचनाकार हो।
 
 

 
गगन का यह रंग नीला,
प्रभात का  आलोक पीला,
दिशाओं को आगोश लेती
यह सप्तवर्णी देव-मेखला,
प्रांजलि दें सूर्य किरणें
स्वर्ण शिखरों को सजाते,
तुम अद्भुत स्वर्णकार हो।
 
जलधि में जलतरंग बजती,
मेघ दामिनि नृत्य करती,
हिमनिधि की घाटियों में
शुभ्र सरिता नाद करती।
तरुवरों की फुनगियों पर
पवन पद से थाप देते,
तुम अद्भुत नृत्यकार हो।
 
 
 
बुलबुलों से गीत गाते,
कोकिला कंठ तान देते,
पक्षी कलरव भेरि करते,
शुक-बकुल आह्वान करते।
बाँसुरी से सुर सजाकर
आरोह व अवरोह भरते,
तुम अद्भुत संगीतकार हो।
 
गगन थाली नित सजाते
सुदीपमाला प्रकट करते
नयन दीपक को जलाकर
जीवपथ आलोक करते,
रवि,शशि और गगनतारे
सबमें तेरी दीप्ति जलती
तुम अद्भुत दीपकार हो।
 
 
जलनिधि की राशि विस्तृत
वाष्प श्यामल मेघ बनती,
रजत बूँदें वृष्टि बनकर
कूप नद तालाब भरतीं
जीव के परमार्थ कारण
विविध घट में जल सजाते,
तुम अद्भुत कुंभकार हो।

7 comments:

  1. प्रकृति के विभिन्न उपादानों का उत्तम प्रयोग से कविता सरस और सुंदर बन पड़ी है।

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  2. धन्यवाद मनोज जी।

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  3. तरुवरों की फुनगियों पर
    पवन पद से थाप देते,
    तुम अद्भुत नृत्यकार हो।

    आन्तरिक भावों की सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....

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  4. अद्भूत शब्द किसी व्यक्ति के साथ तब जुड़ता है जब काम के प्रति ईमानदारी भरा समर्पण व प्रकृति ने जो इंसानी शक्तियाँ दी है किसी इंसान को उसे सही मायने में सदुपयोग करने की क्षमता हो....बहुत बढ़िया संतुलन बैठाया है आपने इस कविता में...

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  5. यह एक संग्रहणीय व पाठ्यक्रम में पढ़ायी जाने वाली कविता है। यह कौन चित्रकार है वाला गीत तो सुना था पर सारी विधाओं को उससे जोड़कर सतरंगी वातावरण निर्मित कर दिया है आपने। प्रणाम गुरुवर।

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  6. रचना के भाव और शब्द सौन्दर्य ने अभिभूत कर लिया...

    उस सृजनकर्ता को शत नमन जिसने यह सब बनाया और उसे पुनः आभार जो आपसे यह सब लिखवाया...

    अद्वितीय रचना...

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  7. मनोज जी, वर्षा जी, झा जी, प्रवीण जी व रंजना जी प्रोत्साहित करती सुन्दर प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार।

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