Wednesday, October 26, 2011

हे दीप-प्रकाश !





हे दीप-प्रकाश!

हे शुभ-प्रकाश!

जीवन का पथ आलोकित

करते तुम, मेरे प्राण-आश
हे दीप प्रकाश

रवि जब विश्रामगमन होता,
शशि जब शाम बहक जाता,
तारे भी आकुल हो उठते,
तम-असुर निगलता जगत को जब,
तुम प्रभु-अवतार ज्योतिमय बन
उद्धार जगत का करते हो।
देते जग को जीवन-प्रभाष,
फैलाकर तव कोमल प्रकाश।
हे दीप प्रकाश।

तव ज्योति नृत्य का दर्शन कर,
जग आनंदित हो उठता है।
तुम समूह बन सजते जो,
घर-घर दीवाली-मय होता है।
तुम बल खाते,नाट्यम करते,
जग-सुख को इतराते बहलाते।
लाते जीवन में स्मित और हास,
बनकर तुम उत्सव प्रकाश।
हे दीप प्रकाश।

हे दीप मेरे!शुभ दीप मेरे!
साँसों-प्राणों की ज्योति मेरे!
तुम हो तो जीवन आलोकित है,
तुम मौन मेरा अस्तित्व व्यथित है।
जलते रहना सदैव प्रिय तुम।
मेरे मनहृदय में आवासित हो
स्निग्ध,शांत,करुणामय,विह्वल,
तेरा यह धवल चिर प्रकाश।
हे दीप प्रकाश।  

3 comments:

  1. वाह!

    बम, पटाखा और आतिशबाजी धरती माँ को पीड़ा पहुँचाती है। इसका इस्तेमाल हर्गिज न करें।

    माटी के तन में
    सासों की बाती
    नेह का साथ ही
    अपनी हो थाती

    दरिद्दर विचारों का पहले भगायें
    आओ चलो हम दिवाली मनायें।
    ...दिवाली की ढेर सारी शुभकामनाएं।

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  2. प्रकाशमय मानसिक स्थिति, पढ़ने के बाद।

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  3. अति सुन्दर
    अनुपम
    लाजबाब प्रस्तुति.
    बहुत बहुत आभार और बधाई देवेन्द्र भाई.
    दीपावली के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    समय मिलने पर आपकी पिछली पोस्टों का भी आनंद लूँगा.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

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