Sunday, November 27, 2011

-कुन फायाकुन (वही है, बस वही है।)


विगत सप्ताह एक ट्रेनिंग कोर्स के सिलसिले में नाशिक जाना हुआ।पत्नी जी साथ में थी अत: कुछ समय-अवकाश लेकर कुछ पुराने व अति महत्वपूर्ण स्थानों का दुबारा भ्रमण का भी अवसर लाभ उठाया- शिरडी साईं बाबा का स्थान (शिरडी नाशिक से लगभग 80 किमी है,और वहाँ सड़क यातायात काफी सुगम व सहज है।),त्रयम्बकेश्वर शिवज्योतिर्लिंग मंदिर (नाशिक से लगभग 30 किमी दूर पहाड़ो के बीच अवस्थित सुंदर स्थान) और मुम्बई के समीप ही छोटे से समुद्री द्वीप पर एलिफैन्टा गुफाओं में अद्भुत व अलौकिक मूर्तिकला का प्रमाण महेश्वर मंदिर ।

पर इन स्थानों के भ्रमण के पूर्व एक साधारण व छोटी सी बात और हुई, जो शायद इतने महत्वपूर्ण स्थानों के समकक्ष चर्चा भी किये जाने की योग्यता भी नहीं रखतीकि हमने हाल में ही रिलीज हुई हिंदी फिल्म 'रॉकस्टार' देखी थी ।

फिल्म के बारे में- इसकी कहानी,इसके अच्छे या बुरे पहलू या कलाकारों के अभिनय पर बिना कोई चर्चा किये मैं सीधे मुद्दे पर आना चाहूँगा- फिल्म में एक खास सूफी गाना- कुन फाया कुन। हालाँकि फिल्म देखते समय मुझे इन शब्दों- जो खालिस अरबी हैं और कुरान की आयतों से हैं, के अर्थ नहीं मालूम थे किंतु गाने की सिचुएसन,जो हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर गाया जाता है,और गाने के आगे के बोल - 'जब कुछ नहीं था,भी नहीं था,बस वही था,वही था,वही था.... ' से यह आत्मसात तो हो रहा था यह उस परवरदिगार का इबादतगीत है,और गाने को सुनकर पूरा मन और शरीर उन लमहों में पिघलकर उस परमशक्ति के भावों में खो रहा था,जो सर्वव्यापी है।य़कीन मानें गाने को सुनकर मुझे एक अजीब सा रोमांच हो रहा था व आँखे अनायाश भर आयी थीं।

फिल्म समाप्त होने पर भी गाने का शुरूर बना रहा,और जब इंटरनेट में विकीपीडिया पर गाने के मुखड़े कुन फायाकुन के शब्दों के अर्थ  'वही है,बस वही है' जाना तो यह शुरूर और गहरा हो गया।

और जब इन पवित्र स्थानों  पर दर्शन हेतु गया व ईश्वर के इन विभिन्न दृश्यरूपों- शिरडी साईं बाबा,त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग और महेश्वरमंदिर में शिव की त्रिभाव मूर्ति,का सामने साक्षात्कार हो रहा था, तो अंतर्चेतन जागृत हो बस यही पुकार रहा था- कुन फाया कुन यानी वही है बस वही है।

हालाँकि सूफी दर्शन,और सच कहें तो किसी भी दर्शन या आध्यामिक सिद्धांत, का मेरा ज्ञान अति अल्प व सीमित है एवं इस विषय पर कुछ कहने या लिखने की मेरी कोई भी योग्यता नहीं, किंतु इस गाने को सुनकर जो मन,शरीर व आत्मा में रोमांच,स्फुरण व चेतना अनुभव हुई उसे साझा करने से अपने को नहीं रोक पा रहा हूँ।सूफी दर्शन हमारे वैदिक व आध्यात्मिक अद्वैत दर्शन के ही अति समानांतर है जिसमें आदि-अंत रहित,सर्वव्यापी,सर्वशक्तिमान परमपिता परमेश्वर ही सबकुछ है,प्रकृति सहित जो भी दृश्य या अदृश्य है,लौकिक या अलौकिक ,वह सब वही, बस वही है।

जैसा पहले ही चर्चा हो चुकी है,और जो विकीपीडिया में मैं जानकारी ढूँढ़ पाया- कुन फायाकुन अरबी शब्द है, कुन का अर्थ है- (ईश्वर) है, फाया का अर्थ है- हाँ है। फिर गाने के आगे के बोल इस प्रकार हैं-

या निजामुद्दीन औलिया, या निजामुद्दीन सल्का
कदम बढ़ा ले,हदों को मिटा ले
आजा खालीपन में पी का घर तेरा
तेरे बिन खाली आजा,खालीपन में...(2)

रंगरेजा, रंगरेजा, रंगरेजा,....
हो रंगरेजा.......


क़ुन फ़ाया क़ुन
क़ुन फ़ाया क़ुन

फ़ाया क़ुन, फ़ाया क़ुन, फ़ाया क़ुन.....(2)


जब कहीं पे कुछ नहीं था

भी नहीं ता,

वहीं था वहीं था
वहीं था वहीं था

वो जो मुझमें समाया
वो जो तुझमें समाया
मौला वाही वाही माया....(2)

क़ुन फ़ाया क़ुन..(2)
स़दाक़ुल्लाहुल-अलीउल़-अजीम़

रंगरेजा रंग मेरा तन मेरा मन
ले ले रंगायी चाहे तन चाहे मन....(2)
स़जऱा सवेरा मेरे तन बरसे,
कज़रा अँधेरा तेरी जल़ती लौ

कतरा मिला जो तेरे दर पर से
ओ मौला...
मौला.....आ...

क़ुन फ़ाया क़ुन
क़ुन फ़ाया क़ुन
फ़ाया क़ुन, फ़ाया क़ुन, फ़ाया क़ुन.....(2)


इस गाने को लिखा है इरस़ाद कमील जी ने व इस गाने को फिल्म के लिये गाया है ए.आर.रहमान,जावेद अली और मोहित चौहान ने ।इस फिल्म को बनाया है अप्रतिम प्रतिभाशील फिल्मनिर्देशक इम्तियाज अली जो इसी तरह की विलक्षण फिल्में- बनाने के लिये जाने जाते रहे हैं।


इस गाने के बोल मुझे ऋग्वेद की निम्न ऋचा का स्मरण कराते हैं-

नासदासीन नो सदासीत तदानीं नासीद रजो नो वयोमापरो यत |
किमावरीवः कुह कस्य शर्मन्नम्भः किमासीद गहनं गभीरम ||
हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेकासीत ।
स दाधार पृथ्वीं ध्यामुतेमां कस्मै देवायहविषा विधेम ॥

अर्थात् सृष्टि से पहले सत ,असत कुछ  भी नहीं,अंतरिक्ष और आकाश भी नहीं था, तो यह छिपा था क्या, और इसे किसने ढका था, उस पल तो अगम अतल जल भी कहां था ।
वह था हिरण्य गर्भ जो सृष्टि से पहले विद्यमान था,वह तो सारे भूत जाति का महान स्वामी है, जो कि अस्तित्वमान धरती और आसमान धारण करता है । ऐसे किस देवता की हवि देकर हम उपासना करें ।

गीता में भी तो कृष्ण ने यही कहा है-
अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते।
अर्थात्- मैं(यानि वासुदेव) ही सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति का कारण हूँ और मुझसे ही सब जगत चेष्टायुक्त(क्रियाशील) है।
तो मन भी तभी से बार-बार यही दोहरा रहा है- कुन फायाकुन (वही है,बस वही है।)

7 comments:

  1. जो सबके पहले था, उसे सब अपना बनाकर भाई बनकर रह भी सकते थे। मर्म न कोई जाना

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  2. सुन्दर अति सुन्दर...रिग्वेद का नासदीय सूक्त...तत्वमसि....

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  3. ईश्वर के प्रति प्रेम भाव से समर्पित होकर ईश्वर की प्रेमोपासना का अद्भुत उदाहरण।

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  4. Excellent write up. Good to know about this aspect of your personality. Regard grows by the day!

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  5. आजकल तो यही हो रहा है कि बस हमी है, बस हमी है। अच्‍छा चिन्‍तन दिया है आपने।

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  6. प्रवीण जी, डा.गुप्ता, मनोज जी, नागेश और अजित जी, आपका हार्दिक आभार।

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  7. अभी कुछ ही दिन पहले जयपुर में इम्तियाज़ अली बोल रहे थे और उन्होंने बताया कि जब कहीं पे कुछ नहीं भी नहीं था, ऋग्वेद में है। तब आशा नहीं थी कि इन दोनों को कनेक्ट करने वाले कहीं मिलेंगे। देर से ही सही, लेकिन देखकर अच्छा लगा। हाँ, कुन फ़ाया कुन के बारे में ये देख सकते हैं।

    http://www.bollymeaning.com/2011/09/kun-fayakun-meaning-context-rockstar.html

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