Tuesday, November 29, 2011

-देश की पुकार पर....



मै कभी भी जन्म लूँ ,बस अंक तेरा ही रहे,
मिट्टी तेरी ही बन लहू मेरी रगों में नित बहे।
सर्वस्व मेरा है समर्पित, हे देश! जब भी तू कहे,
तुम पुकारो तो मेरा यह शीश भी अर्पित तुम्हे।1

अप्रतिम सौन्दर्य है हिमताज वक्षस्थल तेरा,
जलकेलि करता वदन कंचन त्रिओर सागर से घिरा।
आँचल में है स्नेहोष्ण क्षीर गंगनद की चिरधारा।
रुप गुण बखान तेरी नित करें शारद-गिरा।2

आक्रमण कितने विदेशी, साक्षी बनी, देखी तूने,
संहार कितने हुये दिल पर, खून से लतपथ सने।
लाज की रक्षा किये शहीद हो तव लाल कितने,
दे दिया भी भेंट में हँसते हुये ही शीश अपने।3

माँ तेरा सौन्दर्यचीर सुंदर रहे बन चिर-समय ,
सज्जित रहे हर क्षेत्र तेरा शस्यश्यामल हरितमय,
अंकधारित अमृतनदियाँ बहती रहें बन वेगमय,
माँ तेरी महिमा अखंडित जीवित रहे अक्षुण समय।4

विश्व जब अज्ञानमय था गुरु बनी तू ज्ञान दे।
यज्ञ समिधा वेद सजते तू ऋचाओं की हवि दे।
कर्म की उत्कृष्टता स्थापित की गीता ज्ञान दे।
गणित को भी किया लाभित दशमलव व शून्य दे।5

विश्व को तू धन्य करती शांति के नवदूत जनकर,
गौतम कभी, नानक कभी, कभी मोहनदास बनकर।
राह पर लाओ उन्हे, है त्रसित जिनसे जग भयंकर,
अशांतमन भटके जनों को प्रेम का वरदान देकर।6

3 comments:

  1. वाह जी देशभकित पूर्ण दमदार बात कही है।

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  2. देखो तो कितने ऋण हैं इस धरती के।

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  3. आपके प्रेरक भाव देश प्रेम की चेतना प्रदान करते हैं.
    सुन्दर अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

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