Wednesday, October 10, 2012

हृदय से क्षमाभाव व प्रकरण की इति ।



क्षमाभावं सुखदम् सदा 

मैंने इस कथा की चर्चा किसी संतपुरुष द्वारा,गुडफ्राइडे, जिसे ईसाई धर्म क्षमा-पर्व के रूप में भी मनाते है, के अवसर पर आयोजित एक सत्संग में सुनी थी यह कथा पश्चिमी देश के एक कैथोलिक महिला के बारे में है।दुर्भाग्यवश उसके माता-पिता की उसकी अल्पायु में ही मृत्यु हो गयी थी,और वह अपने बड़े भाई,जो उससे कुछ वर्ष ही बड़ा था,के संरक्षण में हुई।

जब वह बड़ी हो रही थी, तो उसके भाई को अपने युद्धरत देश की सैन्य-सेवा में लम्बी अवधि के लिये जाना पड़ा।इस तरह वह लड़की बिल्कुल तन्हा हो गयी।फिर उसके जीवन में प्रेम का उदय  हुआ, उसने अपने प्रेमी के साथ विवाह कर जीवन बसाने का निर्णय किया।किंतु उसका दुर्भाग्य उसका साथ नहीं छोड़ा था ।उसका प्रेमी-पति ,जो एक दुष्ट आचरण का व्यक्ति था, विवाह के उपरांत उसको अनेक प्रकार से शारीरिक व मानसिक यातना देने लगा। वह उससे आयेदिन मारपीट व कलह करता

अपने दुर्भाग्य से जूझती , मन से अति हतास दु:खी वह धीरे-धीरे कैंसर जैसी एक गंभीर असाध्य बीमारी की शिकार हो गयी।गंभीर बीमारी की अवस्था में भी किसी उपचार परिचर्या के बजाय अपने ही पति द्वारा लगातार प्रतारणा के कारण वह जीवन से हतास लगभग मृत्युसैय्या पर हो गयी।उसकी ऐसी ही दीन व गम्भीर अवस्था में  एक दिन उसका दुराचारी पति भी उसे अकेला मरने को छोड़कर चला गया।

इसी बीच उसका बड़ा भाई कई वर्षों की सैन्य-सेवा से अवकाश पाकर घर वापस आता है,और पहले अपनी दुलारी  बहन का हाल जानने सीधे उसके पास जाता है।प्राणों से प्रिय अपनी बहन की यह दुर्दशा उसको मृत्युसय्या पर देख उसका हृदय मुंह को जाता है आत्मग्लानि से भर जाता है कि उसके जीतेजी उसके प्राणों से प्रिय बहन को जीवन  में इतना कष्ट सहना पड़ा है गंभीर बिमारी की शिकार वह बिना किसी इलाज के इस तरह लाचार-असहाय उसको हमेशा के लिये छोड़ इस दुनिया से विदा होने की स्थिति है।

भाई-बहन गले मिलकर घंटों फूट-फूट कर रोये।  वह स्वयंो किसी तरह  ढाँढ़स देकर, अपनी बहन को अस्पताल ले गया।डाक्टरों ने जाँच कर बता दिया कि उसकी कैंसर की बीमारी चरम अवस्था पर अब लाइलाज है,वह चंद दिनों की मेहमान है।डॉक्टरों ने राय दी कि उसके अंतिम दिन में अधिक से अधिक आराम परिचर्या मिले ताकि उसके मन के घावों पर थोड़ा मरहम मिले शांति के साथ यह शरीर छोड़ सके।

पश्चिमी देशों,विशेषकर कैथोलिक मतावलंबियों में गंभीर,विशेषकर कैंसर जैसी, बीमारी के मरीज जिनके जीवन की उम्मीदें समाप्त हो गयी हैं,उनके अंतिम अवस्था में मानसिक कष्ट को कम करने जीवन की अंतिम-यात्रा शांतिपूर्ण होने में प्रशिक्षित प्रीस्ट (चर्च के  फादर)  की सहायता प्रदान की जाती है।फादर अपने धार्मिक उपदेशों, मरीज के साथ आत्मीय संवादों से उनके मन के अवसाद को कम करने में सहायता करते हैं।इस प्रक्रिया में वह मरीज के जीवन में घटित दु:खभरी घटनाओं कष्टों से मन में बैठे गहरे दु: को मरीज द्वारा स्वयं अभिव्यक्त करने का अवसर देते हैं। वह मरीज के मन में बैठे दुख के उद्गार  को ध्यान सहानुभूति पूर्वक सुनते हैं।फिर उस घटना विशेष से आहत  मन लम्बी अवधि से पैठे  दुख आक्रोश का स्वेच्छा से त्याग करने कष्ट पहुँचाने वाले व्यक्ति को अपने ही परमपिता ईश्वर की संतान होने के कारण जीसस की ही तरह क्षमा कर देने, उस प्रकरण उससे संबंधित मन को हुये बुरे अनुभव को सदैव के लिये इति करने  में सहायता करते हैं।

यह प्रक्रिया कई सत्रों तक चलती है इसमें  मन में लम्बे अंतराल से पैठी पीड़ा अवसादों को एक-एक कर निराकृत किया जाता ।ऐसा करना किसी भी व्यक्ति हेतु सहज नहीं किंतु क्षमा करने से मन के ऊपर रखे कितने समय से हजारों मन का बोझ तुरंत हट जाता है और उसको अपार शांति का अनुभव होता है।

फादर के संरक्षण में उस मरणासन्न मरीज का मन-शांति-स्थापना संस्कार प्रतिदिन संपन्न होने लगा। वह अपने ही प्रेमी व पति द्वारा किये स्वयं निर्दोष के ऊपर अत्याचार की एक-एक घटना को याद कर ही फूट-फूट रोने लगती।फादर उसकी बात खामोशी से पर ध्यान से सुनते।जब वह अपनी बात पूरी कर लेती व खामोश आँसू बहाती रहती, फादर उसे उस  दोषी व्यक्ति को जीसस की ही तरह क्षमा कर देने व इस घटना को  मन से प्रभु को समर्पित कर उसकी  स्मृति का सदैव के लिये त्याग व प्रकरण की इति करने में सहायता करते।

इस तरह दुखी मन की परत दर परत खुलती गयी व महिला का मन धीरे धीरे हल्का होने लगा।जिस चेहरे पर कई वर्षों की वेदना की गहरी रेखायें स्थाई घर बना ली थीं, उसी पर अब धीरे-धीरे एक शांतिभाव प्रकट होने लगा था।

महीने भर की अवधि में महिला की स्थिति में आश्चर्यजनक सुधार दिख रहा था।अब वह थोड़ा बहुत भोजन भी स्वयं से करने व सहारा लेकर चलने-फिरने  की स्थिति में आ गयी थी।डाक्टरों ने मरीज के स्वास्थ्य- समीक्षा में उसकी बीमारी में बहुत उत्साहजनक व अद्भुत सुधार पाया।जहाँ एक महीने पहले उसकी बीमारी चरम पर वह चंद दिन की मेहमान दिखती थी, वहीं अब उसकी बीमारी काफी कम होती व उसमें तेजी से सुधार के लक्षण दिख रहे थे।डॉक्टरों को महिला की बीमारी में इस तरह के सुधार पर तो सहसा यकीन ही नहीं आ रहा था किंतु उन्हें यह निश्चय रुप से स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि यदि बीमारी में सुधार की अभूतपूर्व दिशा लगातार कायम रही तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा कि वह पूरी तरह से रोगमुक्त व फिर से पूर्ण स्वस्थ हो जाये।

उधर फादर के साथ महिला का यह मानसिक-शांति-उपचार लगातार जारी रही।महीना दर महीना उसकी बीमारी तेजी से सुधार हो रहा था व कुछ महीनों में उसकी बीमारी लगभग समाप्त हो गयी व वह महिला पुनः पूर्ण स्वस्थ सी हो गयी। उसके होठों की मुस्कान फिर से वापस आ गयी थी व अपने पिता तुल्य भाई की करुणामयी छत्र-छाया में वह फिर से वही खुशियों से भरी सुंदर परी की तरह प्रसन्न जीवन जीने लगी थी।

इस कथा से हमें स्वयं के अंदर सदैव क्षमा-भाव की स्थापना करने व जीवन में किसी के द्वारा मिले दुःख व कष्ट के प्रकरणों को इति कर शांत व सुखी मन से जीवन में आगे बढ़ते रहने की सच्ची प्रेरणा मिलती रहती है।

3 comments:

  1. मन की परतें धीरे धीरे खुल जाने दें,
    सरल हुये मन को ईश्वर में घुल जाने दें ।

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  2. बहुत सुंदर बोध देती कथा..क्षमा करना है दूसरों के लिए नहीं अपने लिए...

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  3. आपकी कथा से सुन्दर शिक्षा मिली.
    श्रीमद्भगवद्गीता का 'विषाद योग'यानि
    विषाद को ही योग का हेतु बना लेना,
    और श्रीमदभागवत में परीक्षत जी को
    शुकदेव जी का उपदेश भी बहुत सुन्दर
    शिक्षाएं हैं.

    अब भाभी जी की तबियत कैसी है,देवेन्द्र जी?
    आशा है सुधार अवश्य होगा.

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