Monday, November 18, 2013

लेखन हेतु बड़े उपयोगी हैं यह मन विचारों के बुलबुले.......


मन में विचारों के बुलबुले उठते रहते हैं, कुछ चाहे कुछ अनचाहे ।वैसे मन का स्वभाव ही है सोचते रहना, इसमें विचारों का निरंतर प्रवाह होते रहना, परंतु यदि आपकी हॉबी लेखन है  तो  इस विचारश्रृंखला के साथ तारतम्य रखना  बड़ा जरूरी और उपयोगी हो जाता है ।

मन में आते स्वाभाविक नये नये  विचार लेखन के दृष्टिकोण से बड़े  महत्वपूर्ण होते हैं ।इन्हीं सद्यजनित विचारों में ही लेखन हेतु नये विषय अथवा विषय के कोर थीम सन्निहित होते हैं ।कभी कभी तो मन में अकस्मात् ही कुछ ऐसे विचार आते है कि बस उस विचार को पकड़ा, और अपनी लेखनी  को गति दी, कि अल्प समय में ही एक सुंदर और रोचक लेख तैयार हो सकता है, जो कि अन्यथा बहुत व विशेष प्रयास के उपरांत भी शायद लिख पाना संभव न हो।कभी किसी काव्य रचना की  सुंदर सी  शुरुआती लाइन, कभी किसी रोचक उपयोगी निबंध हेतु आवश्यक विषयवस्तु , तो कभी किसी कहानी या कथानक की भूमिका लिए कुछ विशेष  विचार मन में अकस्मात् आते हैं ।

कहते हैं कि आप जैसे परिवेश में जीते है, निवास करते हैं,कार्यव्यवहार करते हैं, पढ़ते हैं, चिंतन करते हैं, उन्हीं के अनुरूप आप के मन में विचार भी उत्पन्न होते हैं ।हमारे मन में विचारों के जन्म के कारण और कारक चाहे जो भी हों परंतु इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि हमारी निरंतर गतिमान विचार श्रृंखला के बीच कुछ अवश्य ही ऐसे रचनात्मक   विचार आते हैं जो स्वयं में मौलिक, विषयनिष्ठ और तर्क संगत होते हैं, और इसलिए यह  अच्छे और मौलिक लेखन हेतु बहुत उपयोगी सिद्ध  होते हैं ।

परंतु समस्या, और बड़ी चुनौती भी, है इन उपयोगी परंतु क्षणिक विचारों को पकड़ना ।यह उपयोगी विचार बड़े शरारती होते हैं ।यदि आप तैयारी के साथ, कलम हाथ में लिए ध्यानिस्थ हो लिखने बैठें तो मस्तिष्क पर बहुत जोर देने पर भी शायद ही कोई बहुत उपयोगी और मौलिक विचार, जो आपके लेखन में सहायता कर सके, आता है, वहीं जब आप आजादमन अपनी नित्यक्रिया या आवश्यक  दिनचर्या, जैसे बाथरूम में हों, सुबह पार्क में टहल रहे हों, स्नान कर रहे हों, बाहरी दृश्य निहारते किसी वाहन में  यात्रा कर रहे हों, तो अचानक ही  मन में एक अद्भुत विचार आता है जो कि निश्चय ही एक सुंदर सी रचना या लेख लिखने में सहायक होता, परंतु समस्या यह है कि इस समय आपके द्वारा इस अति उपयोगी  परंतु क्षणिक विचार को पकड़ने की असर्मथता अथवा इसकी तैयारी न होने से आपके सोचते सोचते ही क्षणमात्र में ही वे विचार आपके मन मस्तिष्क और जेहन से कतई ओझल हो जाते हैं ।फिर तो बाद में आप जितना भी अपने मस्तिष्क पर जोर डाल लें, वे गत विचार विस्मृत स्वप्न की भाँति दुबारा आपकी जेहन में लौटकर नहीं आ पाते ।

इस विषय पर चर्चा करते   एक बड़े  विचारक और मेरे अभिन्न  मित्र ने  बड़ी उपयोगी सलाह दी कि मन में जैसे ही कोई उपयोगी विचार आता है, फौरन ही उसे कुछ कीशब्द अथवा वाक्य के रूप में कहीं  लिख लें ।मेरे मित्र ने इसे बहुत सुंदर नाम भी दिया है   - विचार बीज ।यह लिखे हुए विचार बीज बाद में भी उस विगत मौलिक  विचार को पकड़ने और इससे संबंधित  विषय पर कोई अच्छी  रचना या लेख लिखने में बड़ी सहायता करते हैं ।मेरे मित्र ने यह भी एक  उपयोगी सलाह दी कि विचार बीज के संकलन में मोबाइल फोन बड़ा मददगार  होता है क्योंकि यह हमारे छोटे से बड़े अधिकांश  नित्य कर्म और  दिनचर्या में हमारे साथ रह सकता है ।उनकी इस सलाह पर अमल करते मैं भी यदा कदा अपने इन लेखनोपयोगी क्षणिक  विचारों को विचार बीज के रूप में अपने मोबाइल फोन पर फौरन कुछ शब्दों या वाक्यांश में  टाइप कर लेता हूँ ।यह विचार बीज निश्चय ही मेरे कुछ मौलिक लेख और रचना में मददगार सिद्ध  हुए हैं ।

परंतु यह अनुभव किया है कि मन में आने वाले इन अकस्मात् और क्षणिक  रचनात्मक विचारों को  मोबाइल फोन की सहायता से  विचार बीज के रूप में संग्रह कर सकने  की भी बहुत सीमित संभावना होती   है, क्योंकि यह विचार कई बार ऐसे समय आते हैं जब आप मोबाइल फोन का भी उपयोग नहीं कर सकते, जैसे आप स्नान कर रहे हों, या अपने कपड़े धुल रहे हों इत्यादि  । मार्निंग वाक के समय भी मोबाइल पर आननफानन में किसी  विचार बीज को टाइप कर पाना प्रायः संभव नहीं हो पाता ।फिर भी यह संतोष कर सकते हैं कि जितना ही संभव हो सकता है,  उतने भी यदि विचार बीज संकलित हो पाये, तो भी वे  आपके लेखन  हेतु काफी मददगार सिद्ध हो सकते हैं ।

वैसे आपके विचार से मन के गतिमान और क्षणिक परंतु अति रचनात्मक विचारों को और ज्यादा दक्षता से पकड़ पाने और उन्हें लेखन में उपयोग लाने हेतु समुचित व सामयिक संचय का कोई और उपयोगी तरीका हो तो कृपा कर अपना सुझाव अवश्य दें।

3 comments:

  1. मैं अपने पास छोटी डायरियाँ रखता था। (4"x2" size)
    एक हमेशा अपनी कमीज़ की जेब में रहता था।
    एक अपनी कार की glove compartment में।
    एक घर में, अपने टेबल पर।
    एक अपने कार्यालय में अपने दराज़ के अन्दर.
    इसके अलावा, कोरा कागज़ का एक पन्ना, हमेशा अपने बटुए में रखता हूँ।
    बिना जेब में ball pen रखे हुए, कभी बाहर नहीं निकलता हूँ।
    कई बार ये काम की चीज़ें साबित हुई हैं।
    विचार मन आते है, उन्हें नोट कर लेता हूँ या तो डायरियों में या अपने बटुए से वह कागज़ का पन्ना निकालकर.

    मैंने भी सोचा था, कि मोबाईल फ़ोन खरीदने के बाद, इन डायरियों की जरूरत खत्म हो जाएंगी, पर नहीं। मेरे पास एक Samsung Galaxy Note (Stylus सहित) होने के बावजूद, हमने अनुभव किया कि diary और ball pen की सुविधा किसी और चीज़ में नहीं।
    यह भी सही है, के मेरे स्मार्ट फ़ोन पर voice recording की सुविधा है। संभवत इसका भी उपयोग किया जा सकता है पर इसे मैंने अब तक नहीं आजमाया। Too much trouble!

    आपके पिछले पोस्टों को धीरे धीरे फुरसत मिलने पर पढ रहा हूँ।

    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

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  2. न जाने कहाँ से आते हैं ये विचार, कैसे आते हैं, क्यों आते हैं, प्रश्न अनुत्तरित हैं।

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