Monday, October 14, 2013

रक्तबीज बढ़ते ही जाते, जितना इनपर वार किया है ।

हम हर वर्ष मनाते हैं दुर्गा पूजा और दशहरा,
दिलाते हैं स्मरण स्वयं को शक्ति की,विश्वास की,
कि बुराई पर होती है  अच्छाई की जीत, पाप पर पुण्य की जीत ,
अहंकार पर प्रेम की जीत, दुराचार पर सदाचार की होती रहे जीत।

इसी के प्रतीक स्वरूप हर वर्ष एक नया महिषासुर निर्मित करते हैं ,
व सजे धजे पंडाल में, उसके नाश व मानमर्दन की मूर्ति स्थापित करते हैं
रावण, मेघनाद, कुंभकर्ण जैसे दुर्दम्य राक्षसों के बनाते हैं नयेनये पुतले,
खूब सजाधजा, रंगरोगन लगा, धूमधाम से उनका दहनउत्सव करते हैं ।

फिर भी आश्चर्य तो यह कि लगातार बढ़ती ही जाती है आबादी , इन
नये नये  व दुर्दांत महिषासुरों से, शुम्भनिशुम्भों से  , आततायी रावणों से,
वे तो हो रहे  हैं और  सशक्त व बलवान, दिन दूने रात चौगुना के माफिक,
उन्हीं का दिखता बोलबाला चारों ओर,  बढ़ते ही हैं,घटने का तो नाम ही नहीं लेते हैं ।

कई बार तो इन राक्षसों का पराक्रम और ताकत इतना सकते में डाल देता है
कि लगता है कि यह सारा उत्सव ,तामझाम इनकी ही प्रशस्ति में है ,
हमारे त्योहारों की फिल्म के असली हीरो तो यही तथाकथित विलेन ही हैं,
माँ दुर्गा, भगवान राम ,ये विजय के प्रतीक , तो  बस साइड रोल में हैं ।

रक्तबीज बढ़ते ही जाते, जितना इनपर वार किया है

3 comments:

  1. bahar se jyada raktbeej hum sabhi ke andar baithe hain... unko marne ke side effects dusre raktbeej paida kar dete hain.... swayam ki katibaddhataa hi kuchh kr sakti hai...

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  2. जिस गति से बढ़ रहे हैं रावण, हर दिन मारेंगे तब भी ये शेष रह जायेंगे।

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