आज अखबार में एक रोचक रिपोर्ट पढ़ी, नींद के बारे में -Why do we sleep? So that brain can flush out toxins. यानी - हम क्यों सोते हैं? जिससे हमारे मस्तिष्क में जमा विषाक्त पदार्थ बाहर निकल सके व यह शुद्ध हो सके।
यह रिपोर्ट अमरीका के रोचेस्टर विश्वविद्यालय के स्नायुऔषधि Neuromedicine केंद्र के निदेशक,मैकेन नीदरगार्ड व उनकी टीम द्वारा किये गये विभिन्न अध्ययन व प्रयोगों पर आधारित है,जिनसे यह महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकलता है कि हमारे मस्तिष्क के लंबे समय तक जागने व लगातार सक्रिय रहने से इसके अंदर लगातार बनते रहने व जमा हुए विभिन्न विषाक्त पदार्थों का हमारे नींद व आराम की अवस्था में शोधन व मस्तिष्क की साफसफाई का कार्य संपन्न होता है ।
उनके अध्ययन से यह पता चलता है कि हमारी नींद की अवधि में मस्तिष्क के अंदर स्नायुतंत्रों से निर्मित " ग्लिम्फैटिक सिस्टम" के बंद दरवाजे खुल जाते है, जिससे हमारे मस्तिष्क व स्नायु तंत्र की जीवनरेखा , सेरेब्रोस्पाइनल द्रव (CSF ), का मस्तिष्क में प्रवाह तीव्र व अतिरिक्त होने लगता है, जिससे इसका शुद्धिकरण उसी प्रकार होता है जैसे कि किसी वाटर रिसाइक्लिंग प्लांट में प्रदूषित जल सर्कुलेशन द्वारा शुद्ध हो जाता है ,या यह भी कह सकते हैं कि यह सिस्टम मस्तिष्क के अंदर एक प्रकार की गुफाओं का जाल है, जिनके मस्तिष्क की जाग्रत अवस्था में बंद रहने वाले द्वार हमारी नींद की अवस्था में खुल जाते हैं व मस्तिष्क द्रव इनसे प्रवाहित होकर उसी प्रकार शोधित व स्वच्छ हो जाता है, जैसे पहाड़ व धरती के गर्भ की शिराओं से प्रवाहित जल अपना मटमैलापन व गंदगी खोकर पुनः शुद्ध व पीनेयोग्य हो जाता है ।
इस अध्ययन हेतु अनुसंधानकर्ताओं ने सर्वप्रथम चूहों पर किये अपने प्रयोग में उनके मष्तिक द्रव में रंगीन डाई इंजेक्ट किया, और तत्पश्चात चूहों के मस्तिष्क के अध्ययन से यह मिला कि चूहों की बेहोशी अथवा नींद की स्थिति में रंगीन डाई मस्तिष्क के अंदर तेजी से व बड़े क्षेत्र में फैलती है, इसके विपरीत चूहों की जागृत अवस्था में रंगीन डाई का फैलाव अति धीमा व सीमित हो जाता है ।इससे उन्होने यह निष्कर्ष निकाला कि नींद अथवा अचेतन अवस्था में मस्तिष्क के अंदर विभिन्न कोशिकाओं व इनसे निर्मित विभिन्न मस्तिष्क नियंत्रण प्रणालियों के सामान्य तौर पर बंद दरवाजे खुल जाते हैं, जिससे मस्तिष्क द्रव के प्रवाह हेतु अतिरिक्त मार्ग व क्षेत्र मिल जाते हैं, जिससे उसके प्रवाह को अतिरिक्त गति व विस्तार मिल जाता है, ठीक उसी प्रकार जैसे कि किसी वाटर फिल्टर प्लांट में अशुद्ध जल के लगातार सर्कुलेशन से अशुद्ध जल वापस शुद्ध हो जाता है ।उनके प्रयोग की नतीजों के आधार पर कहें तो नींद की अवधि में मस्तिष्क का अंतर्क्षेत्र 50 से 60 प्रतिशत तक बढ़ जाता है ।
यदि हम भारतीय योग व आध्यात्म की भी बात करें तो इसमें निद्रा भी एक प्रकार की अति प्रभावकारी यौगिक प्रक्रिया व साधना ही होती है जिससे हमारे मस्तिष्क व शरीर की शुद्धि व इनके मृत महत्वपूर्ण कोशिकाओं का पुनर्निर्माण होता है,जिससे मनुष्य का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पुनर्स्थापित व सुनिश्चित होता है ।
हम मनुष्य के पूरे जीवन काल को देखें तो बाल्यावस्था में हम नींद का भरपूर आनंद उठाते हैं, यही कारण है कि बच्चे प्रायः निरोग, प्रसन्नचित्त व किसी प्रकार की थकावट हुये सदैव जोश व सक्रियता से भरपूर रहते हैं ।इसी प्रकार हमारे युवावस्था में अति ऊर्जावान व ताजगी से भरपूर होने के पीछे स्वस्थ व गहरी नींद का विशेष योगदान होता है ।परंतु मनुष्य की आयु बढ़ने के साथ साथ जीवन की बढ़ती आपाधापी, जिम्मेदारी की दुश्चिंताओं,अतिरिक्त कामकाज के दबाव में मस्तिष्क को आवश्यकता के अनुरूप नींद व आराम न मिलने के फलस्वरूप इसका दुष्प्रभाव न सिर्फ मस्तिष्क के स्वास्थ्य पर बल्कि शरीर पर भी स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगता है, जैसे शरीर की त्वचा की चमक धीरे धीरे कम होना, चेहरे पर चमक, ताजगी व आत्मविश्वास के बजाय कांतिहीनता, मुरझायापन व निराशा दिखाई देना इत्यादि ।धीरे धीरे मस्तिष्क द्रव की बढ़ती अशुद्धियों व इनके परिणाम स्वरूप इसकी घटती दक्षता के कारण मस्तिष्क दुश्चिंता व अवसाद जैसी बीमारियों का शिकार होने लगता है, जिससे मनुष्य न सिर्फ अनिद्रा जैसी मानसिक बीमारी का शिकार होता है, बल्कि मस्तिष्क द्रव के प्रदूषित होने से शरीर की बीमारियों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता लगातार क्षीण होने से शरीर विभिन्न बीमारियों का शिकार व रुग्ण हो जाता है ।और सच कहें तो मनुष्य मानसिक, शारीरिक रुग्णता के दुष्चक्र में फँस जाता है व इस प्रकार उसका संपूर्ण जीवन ही सुख शांति से रहित, अवसाद, दुख व अशांति से भर जाता है, कई बार तो मनुष्य को अपना जीवन ही निरर्थक, कष्ट पूर्ण व बोझिल लगने लगता है, जिसकी परिणति प्रायः मनुष्य की गंभीर रुग्णता व असमय मृत्यु में होती है ।
इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि नींद व आराम का हमारे स्वस्थ व दीर्घ जीवन हेतु विशेष महत्व है ।इसलिये भले ही हम इसे मजाक समझकर टाल दें, परंतु यह कहावत बड़ी अर्थ पूर्ण व सार्थक ही है कि "आराम बड़ी चीज़ है, मुँह ढककर सोइये।"
बहुत सुन्दर जानकारी.
ReplyDeleteनई पोस्ट : धन का देवता या रक्षक
यह आश्चर्य ही है कि कि नींद में क्या क्या होता है? थकान केवल एक पक्ष है, कई और पक्ष तो अभी अध्ययन की परिधि से बाहर हैं।
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