Tuesday, February 14, 2023

दुख एवं करुणा के आर्द्र स्वर - हमारे विवेक व चेतना के गज़र

विगत दो दिन से अधिकांश समय अस्पताल में ही गुजर रहा है, मेरी मां अस्वस्थ हैं, भर्ती हैं। चूंकि वह अभी आईसीयू में हैं इसलिये अधिकांश समय अस्पताल के रिसेप्शन एरिया में प्रतीक्षा बेंचों पर ही बैठे बीतता  है। अस्पताल में लोगों(भर्ती मरीजों के परिजनों) के बीच होना एक विशेष गहरा भावनात्मक अनुभव होता है, किसी रंगमंच पर चल रहे बहुआयामी दृशयमंचन से कहीं कम नहीं-कुछ बदहवास से, कुछ गंभीर से, कुछ मसगूल से कुछ उदासीन से, कुछ उतावले में चलते, कुछ आहिस्ता सोच और चिंता में, विभिन्न भाव, विभिन्न रूप, विभिन्न दृश्य।
सामने, बरामदे के दूसरे किनारे की बेंच पर एक महिला करुणार्द व शांत भाव में बैठी हैं, चिंताग्रस्त बार बार आईसीयू की ओर जाने वाली रैम्प की ओर व्यग्रता से निहारती हुई। बीच बीच में दो युवा, शायद उनके बेटे या संबंधित, जब भी पास से हड़बड़ाहट में आ जाते,उनकी व्यग्र और उदास आंखें पूछती हुई उनसे कि क्या हाल है मरीज (शायद उनके पतिदेव) का, क्या कहते हैं डॉक्टर, कोई घबराने की बात तो नहीं। एक दो घंटे बाद एक करुण क्रंदन सुनाई दिया,उधर ध्यान गया तो देखा वही महिला फूट फूट कर रो रही है, अनहोनी जिसकी आशंका में वह घंटों से व्यग्र और चिंतित दिख रहीं थी वह घटित हो गई थी , पूरी रिसेप्शन प्रतीक्षा एरिया उस महिला के करुण क्रंदन से विह्वल हो रहा था, वो कहते हैं ना कि इतनी करुणा कि स्थिति कि वहां मौजूद किसी का भी गला रुंध जाये कलेजा फट जाये, मुझे अनुभव हुआ मैं स्वयं और मेरे आस पास सबकी आंखे नम हो आयीं थी उस महिला के करुण क्रंदन से। दोनों युवक उस महिला को ढांढ़स बधाने का प्रयास कर रहे थे परंतु वह महिला कैसे ढॉढ़स पाती!
पौराणिक ग्रंथों कथाओं में हम सबने ही पढ़ा है कि भगवान राम मां सीता का त्याग और उनके आदेश पर लक्ष्मण मां सीता को वन में छोड़ आते हैं, तो वन में अकेली मां सीता, वह भी गर्भावस्था की नाजुक अवस्था में, राम से वियोग के दुख में जो करुण क्रंदन करती हैं कि पूरा वन - पेड़ पौधे, घास - पत्ते, पशु-पक्षी, वन का कण-कण उनके करुण क्रदन से करुणार्द हो उठता है, वहां की धरती सिसकने लगती है। जब शकुंतला को महाराज दुष्यंत पहचानने से इंकार करते हैं और प्रहरी उसे अपमानित कर राजदरबार से बाहर निकाल देते हैं , तो गर्भवती शकुंतला वन में जो करुण क्रंदन करती है उससे पूरा वन रोने लगता है। 

एक दुखी नारी का करुण क्रंदन से वहां उपस्थित किसकी आंखे आर्द्र नहीं कर देता! वहां भी सभी इसी अनुभव से गुजर रहे थे।
अस्पताल के यह दुख-करुणा के अनुभव कतई अनपेक्षित होते हैं, कोई भी नहीं चाहता ऐसे अनुभव बिना किसी विवशता के देखना और  उससे गुजरना, मगर इसका दूसरा पक्ष देखें तो इन दृश्यों और अनुभवों में सच्चा जीवन दर्शन निहित होता है, इन अनुभवों से जीवन की सच्चाई हमें प्रतिबिंबित हो जाती है। हमारे दुख, हमारे जीवन में आने वाले वियोग, विछोह के यह अनुभव हमें हमारे जीवन में प्राप्त संबंधों, सहारों, प्रियजनों (जिनकी सामान्य परिस्थितियों में प्रायः हम अनदेखी और उपेक्षा कर देते हैं, और गाहे-बगाहे तिरस्कार एवं अनादर भी) की उपस्थिति का महत्व एवं मायने समझा देते हैं, यह हमारी सोयी, बेहोश पड़ी चेतना एवं विवेक को जाग्रत करने में सहायता करते हैं। 

1 comment:

  1. ईश्वर से प्रार्थना है कि माता जी स्वस्थ हों 🕉️🙏

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