Showing posts with label आतंकवाद. Show all posts
Showing posts with label आतंकवाद. Show all posts

Thursday, December 18, 2014

स्वयं हन्ता (अ)मानव और उसका मिथ्यालाप !

रक्त तो निर्दोष और मासूम का ही हरदम बहा है ,
कभी शरीर को तो कभी आत्मा को छलनी कर रहा है ।
है मगर यह घोर सत्य जारी अनवरत ,
हर युग समय हर काल देश समाज पर  कि
रक्त तो निर्दोष और मासूम का ही हरदम बहा है ।
बहता कभी यह धर्म की बलिबेदियों पर ,
तो है कभी बहता यह समर रणभूमि पर ,
है कभी बहता सत्ता की दलाली और शतरंजी चाल पर ,
और बहता है कभी मद मान अहं तलवारों की धार पर ,
है कभी बहता चढ़ गरीबी की शूलियों पर ,
और बहता है कभी इस धरा पर आगमन के पूर्व ही ,
माता के गर्भ में निज प्राण के अधिकारियों के हाथ से ही ।
श्रद्धांजली देने हेतु उनको उठते हाथ कितने ,
जो हाथ खुद ही उन मासूम रक्तों से सने हैं !
वे आँखे आज नम होती हैं उन मासूमों की याद में
जिनमें पाशविकता ,वहसीपन के सदा कीचड़ जमे हैं ।
यह मनुज भी ढोंग कितने ! पाखंड कितने ! कर रहा है
युग युगों से आदि से , आरंभ से , हर काल क्षण से,
निज हाथ से ही यह मनुजता की सदा हत्या किया है,
और फिर उसी मृत मनुजता की लाश पर ही
कुछ चंद आँसू और डालता  श्रद्धांजलि सुमन
स्वयं उन रक्त रंजित निर्मम निज हाथ से ही
और पढ़ता खोखले वह मर्सिया के गीत कुछ पल
मनुजता , मासूमियत की दर्दनाक हत्या मौत पर।
यह मनुज का ढोंग यूँ ही अनवरत चलता रहेगा ,
किंतु दुखद बात  कटु सच यह नहीं बदलेगा  कि
रक्त तो निर्दोष और मासूम का ही हरदम बहा है
कभी शरीर को तो कभी आत्मा को छलनी कर रहा है ।

-देवेंद्र