यह खेल भी अजूबा है,
बडा ही रोमांच डूबा है,
खरगोश जब छोटा था
नटखट बडा प्यारा था,
मासूम था।
शिकारी के ही छत्रछाया में,
उसके अपने ही लान में,
इसी शिकारी कुत्ते के साथ
धमाचौकडी खेलता था।
उछलकूद करता था
कभी कुलाचें मारता था
हवा-पलटी करता था।
शिकारी भी
अपने इस पालतू खरगोश
और पालतू शिकारी कुत्ता,
दोनों की इस धमाचौकडी पर
खूब आनंद लेता था
फूला न समाता था।
उन्हें पुचकारता था
एक को गाजर
तो दूसरे को बोटी
बडे चाव से खिलाता था।
खरगोश अब ढीठ,
बहुत ढीठ हो गया था।
शिकारी कुत्ते के साथ खेलते-खेलते
अब खुद को भी
शिकारी बडा समझता था।
बडा ही दबंग हो गया था।
पूरा हुडदबंग।
हद तो तब हो गयी
जब एक दिन,
नाइन इलेवेन के दिन,
वह मालिक शिकारी
की थाली में रखे गाजर
पर झपट्टा मार दिया।
पालने-पोसने वाले मालिक का ही
फीस्ट खराब कर दिया।
शिकारी मालिक को
यह नागवार गुजरा।
और खरगोश पर वह
बहुत बुरी तरह विफरा।
उसने इस गुस्ताख को दबोचने के लिए
शिकारी कुत्ते को ललकारा,
ब्लडी खरगोश को मारने के लिए
खुद भी बंदूक लिये हुँकारा।
कुत्ता तो कुत्ती चीज होती है।
दोस्ती तो ठीक है मगर
उसे बोटी भी तो खानी होती है।
सो मालिक के हुकुम की खातिर,
अपनी बोटी इंतजाम की खातिर,
और साथ में पुराने दोस्त
खरगोश से दोस्ती के बहाने की खातिर,
वह एक कुत्ता खेल खेलने लगा।
मालिक के सामने भौकता था,
कि शिकार का मुस्तैदी से पीछा कर रहा है।
उधर दोस्त को
होशियार भी कर देता था कि
शिकारी किधर से गोली चलाने वाला है।
तो कुत्ता गजब का कुत्तापन दिखा रहा था।
एक तरफ खरगोश के साथ
खेलदौड कर रहा था
तो द्सरी ओर शिकारी के साथ
नूरा शिकार भी कर रहा था।
जब आखिर खरगोश
शिकारी की गोली से
ढेर हो गया है।
खरगोश का खेल
खत्म हो गया है।
पर कुत्ते का कुत्तापन का खेल
अब भी जारी है।
कुत्ता शिकारी की टाँगों के पास
खडा है दुम हिलाते,
वफादार बना सा दिखता।
मगर आँखों में लालच
और उम्मीद की चमक लिये कि
मालिक इस शिकार का इनाम देगा।
दो चार बोटी खाने को फेंक देगा।
कुत्ता गजब के कुत्तेपन का खेल
खेल रहा है
शिकारी को अब भी लगता है कि
कुत्ता तो वफादार है,
और उसके शिकार में
बराबर मदद कर रहा है।
खरगोश, शिकारी व शिकार। बहुत दमदार।
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ReplyDeleteभूमिकाएं बदल जाती हैं, खेल जारी रहता है.
ReplyDeleteओह....एकदम सटीक उदहारण दिया आपने...
ReplyDeleteपूरी कहानी समेट ली इन चंद पंक्तियों में ...
कुत्ता कुत्ता ही रहेगा और शिकारी तो भाई शिकारी है ही...यह कहानी और परंपरा तबतक यथावत रहेगी जबतक कोई इससे भी बड़ा शिकारी वर्तमान शिकारी को मात दे इसे इसकी जात न बता दे...इस शिकारी के औकात में आते ही कुत्ते को भी अपने औकात का पता चल जाएगा..
अतिसार्थक रचना...साधुवाद !!!
वाह नया अंदाज़ !!! अच्छा लगा
ReplyDeleteइंसान जब अपना जमीर गिरवी रखकर जीवन जीने लगता है तो वह इंसान से कुत्ते में तब्दील हो जाता है और उसके सोचने व समझने की शक्ति तथा संवेदनशीलता जाती रहती है ,और जब कुत्ता भी बफादार होने का ढोंग करे और कोई इंसान उसे पहचान ना सके तो वो इंसान तो कुत्ते से भी बदतर ही कहा जायेगा...सच्चा इंसान वही है जिसे ढोंगी,नकली व धोखेवाजों की पहचान हो...वैसे धोखेवाजी से शिकार करने वाला खुद एकदिन उसी तरह से शिकार बन जाता है..ऐसा मैंने ज्यादातर होते देखा है इसलिए धोखेवाजी से हमेशा दूर रहने की कोशिस की जानी चाहिए...बहुत ही अच्छी प्रेरक पोस्ट है ये आपकी..बहुत कुछ कह रही है सुनने वालों से...
ReplyDeletewah kya kalpana hai kavi ki great
ReplyDeleteमाजरा साफ़ दिखा दिया ..अब कुत्ते की बारी है...
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी ...
ReplyDeleteखूब समेटा है आपने इस कहानी में कुत्ते शिकारी और खरगोश के मनोविज्ञान को ....शिकारी को भी कुत्ता पालना ही पड़ता है न अपने छद्म अस्तित्व को बनाने के लिए ..और कुत्ता उसी का फायदा उठा लेता है.. जबकि शिकारी भी जानता है कुत्ते की असलियत.. लेकिन फिर भी पुचकार रहा है ..अगले शिकार में साथ देने के लिए ..बधाई एक सामायिक किन्तु कालजयी कृति के लिए