Sunday, May 8, 2011

माँ तुम ममता......


 
माँ तुम ममता,स्नेह,दया और प्रेममूर्ति हो।
शुष्क उपेक्षित इस जीवन में तुम नेहमूर्ति हो।
अंधकारमय इस कूपभवन में तुम दीपमूर्ति हो। 
पंचतत्व के इस शरीर में तुम प्राणमूर्ति हो। 
 
दीव्यमयी हो,ज्योति मयी हो,तेजमयी हो।
हूँ अपूर्ण मैं तुम प्रसाद व पूर्णमयी हो।
तुम बिन जगत अस्त व्यस्त तुम श्रृँगारमयी हो।
जगतपुरुष है कृत्य और तुम परिणाम मयी हो। 
 
माँ तेरा यह अचल स्नेह गंगा बन बहता।
तेरी करुणा वात्सल्य क्षीर आँचल में मिलता।
तेरा नेह दुलार शब्द है मेरा  लोरीगीत बनता।
तेरी स्मृति तेरा चिंतन ही मेरी पूजा बनता।
 
हो अस्तित्व , प्राण ,ध्यान , चिंतन तुम मेरी।
माँ तुम जननी,पालनकर्तृ और मोक्षकर मेरी।
तुम संस्कार,नाम,जीवन-ज्ञान-दीप हो मेरी।
तुम त्रिभुवनस्वरूपिणि,सकल अस्तित्व हो मेरी।
 
जीवनपथ है तापमयी चलना अति दुष्कर हो।
माँ यदि तेरा स्नेहाँचल मेरे शीश पर न हो।
तुम मां करुणामयी, प्रेम-सागर-मयी हो।
मेरे उद्भव की कारण, नेह-क्षेम-कुशलमयी हो।

10 comments:

  1. बढ़िया कविता.. मात्र दिवस के हार्दिक शुभकामना..

    ReplyDelete
  2. अरुण जी हार्दिक आभार व आपको भी बहुत-बहुत शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  3. माँ का विहंगम चित्रण, सच कहा आपने, माँ तो माँ होती।

    ReplyDelete
  4. माँ का स्नेह, माँ कि ममता. बढ़िया कविता.

    ReplyDelete
  5. हिमांशु शर्माMay 9, 2011 at 11:03 AM

    धन्य हैं आप. माँ के प्रति जो उद्गार ह्रदय में हैं, उन्हें शब्द दे दिए आपने. आपको बहुत बहुत साधुवाद.

    ReplyDelete
  6. आपके माँ के प्रति समर्पित अति उच्च भावों को सादर नमन.
    माँ ईश्वर का साक्षात दर्शन है.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

    ReplyDelete
  7. शत शत नमन...नमन...नमन...

    ReplyDelete
  8. देवेन्द्र भाई कहाँ हो.
    काफी दिनों से न कोई पोस्ट है और न ही आप मेरे ब्लॉग पर पधारे हैं.
    भगवान से आपके कुशल मंगल की कामना करता हूँ.
    समय मिलने पर समाचार दीजियेगा.

    ReplyDelete