घने मेघ के मध्य कहीं जो दिखती एक रजत रेखा |
जीवन में प्राय:
ऐसे क्षण आते हैं,
जब सब कुछ होता दिखता प्रतिकूल
अपेक्षाओं व उम्मीदों से कतई विपरीत,
जब असफलता दिखती हर पग पर,
अनिश्चितता व निराशा के काले घने मेघ
करते अंधकार जीवन पथ पर ,
और नहीं दिखती है आगे की राह,
प्रश्न अनेकों मन में
हैं उठती आशंकायें
भविष्य के प्रति,
कि क्या होगा ,कैसा होगा जीवन-पथ आगे मेरा।
किंतु इस घने मेघ के मध्य
दिखती है एक रजतरेखा,
देती संकेत उस प्रकाश-ज्योति की
जो छिपी हुई है बादल के पीछे
और जगाती मेरे अंतर्मन में
एक ज्योति मयी प्रदीप्त दामिनी
नव आशा और विश्वास लिये
कि चाहे कितना ही तम छाया हो,
पर दिप्त सूर्य की ज्योति अटल ,
जो स्थाई है,
उसकी उदित किरणों से
छँट जाते हैं काले बादल अवश्यमेव ही।
और वही स्थाई ज्योतिपूर्ण सविता बन
होती है दीप्तमान अंतर्मन में मेरे,
देती यही संदेश निरंतर,
कि हूँ मैं सदैव तुम्हारा पथप्रदर्शक,
जो संकल्पयुक्त तुम जीवन-पथ पर आगे बढ़ते हो।
तो मैं भी आगे बढ़ जाता हूँ
अपने अंतर्चेतन की इस ज्योति की उँगली थामे
मन में विश्वासों की नयी शक्ति भर,
कि मंजिल अवश्य मिलती हैं,
जो यात्रा का मन में है संकल्प निरंतर ।
मन में विश्वासों की नयी शक्ति भर,
ReplyDeleteकि मंजिल अवश्य मिलती हैं,
जो यात्रा का मन में है संकल्प निरंतर ।
आशा और विश्वाश की बेहतरीन अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,,
recent post: वजूद,
हर पग लाता आशा,
ReplyDeleteआगे कहीं छिपा था,
मन का द्वार, जगत का प्यार।
Very Good Poem.
ReplyDeleteasha aur nirasha ke dawand ko abhiwyaqt karti ....bahut hi sunder rachna....
ReplyDeleteasha aur nirasha ke dawand ko abhiwyaqt karti ....bahut hi sunder rachna....
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