Thursday, December 20, 2012

आशा-विश्वास धारयेत् सदा.......


आशा व विश्वास का प्रकाश जीवन में आवश्यक व अपरिहार्य है।

मैं लगभग दो वर्षों से इस ब्लाग पर लिख रहा हूँ। यह तो नहीं कह सकता कि मैं बहुत नियमित व नियमबद्द होकर लिख पा रहा हूँ, किंतु फिर भी वक्त की अनुमति व परिस्थितियों के सामंजस्य में जितना हो पाता है, अवश्य लिखते रहने का स्वयं के साथ किया गया सहज संकल्प निभ रहा है।इस लेख को लिखते समय यह सुखद व संतोषप्रद अनुभूति हो रही है कि यह मेरे ब्लॉग की दो सौवीं पोस्ट है। आप कोई भी कार्य हृदय से करते हों, तो उस कार्य की यात्रा में प्राप्त होने वाले इस प्रकार के मील के पत्थर निश्चय ही एक विशेष व उत्साहवर्धक क्षण होते हैं। इससे नियमित लिखते रहने हेतु आत्मविश्वास व निरंतर प्रेरणा प्राप्त होती है।

लेखन हेतु सकारात्मक विषय, सुखद घटनायें,जीवनयात्रा में निरंतर प्राप्त हो रहे सुंदर अहसास  व अनुभव निश्चय ही प्रेरणाश्रोत होते हैं, किंतु दुर्भाग्यवश हमारा जीवन व इस संसार का अनुभव सदैव सुखद ही तो नहीं होता, बल्कि बहुधा जीवन में कई बार दुखद,निराशाप्रद, व जीवन के प्रति आशा व विश्वास की दृढ़ नींव को हिलाने वाली घटनाये भी अनुभव करनी व देखनी ही पड़ती हैं। किंतु जीवन के ये नकारात्मक अनुभव भी कई बार मन को इतना झँकझोर कर रख देते हैं कि उनके कारण मन इतना उद्वेलित हो उठता है कि इनसे मन में उठने वाले भावुक विचार लेखन में भी स्वाभाविक रूप से अभिव्यक्त हो जाते हैं।

हाल के दिनों में इसी प्रकार की कुछ दुखद घटनायें घटित हुई हैं, जिनकी कल्पना मात्र ही मन को झँकझोर देती है।कुछ दिन पूर्व अमरीका के एक स्कूल में एक मानसिक रूप से विछिप्त युवक द्वारा बीस-बाईस मासूम स्कूली बच्चों का खुलेआम बंदूक की फायरिंग द्वारा नरसंहार इसी प्रकार की दुखद घटना है जो मन को विचलित कर देती है। किंतु उससे भी आहतकारी,दुखदायी व स्तंभित करने वाली घटना हमारे देश की ही राजधानी, नई दिल्ली , में घटित हुई है, जिसमें एक युवा छात्रा के साथ चलती हुई बस में ही बस के कर्मचारियों व उसके सहयोगियों द्वारा वहसी जानवरों की तरह बलात्कार व हिंसा की वारदात गयी , और वह लड़की शरीर व मन दोनों स्तर पर बुरी तरह से घायल व छत-विछत सफदरजंग अस्पताल में जिंदगी व मौत से अभी भी जूझ रही है ।  यह घटना न सिर्फ हमारे देश के लिये एक शर्मनाक व कलंकपूर्ण हादसा है, अपितु यह संपूर्ण मानवता व मानवीय-सभ्यता में विश्वास के ताने-बाने व आधार को झँकझोर देने वाली घटना है।

एक सभ्य समाज व शांतिस्थापित राज्यव्यवस्था में यह स्थाई धारणा व विश्वास अपेक्षित है कि एक आम आदमी, स्त्री हो या पुरुष, अपने मन में बिना किसी आंतरिक भय व असुरक्षा के कहीं भी आ जा सके,नियमानुकूल अपनी जीवन-चर्या अपनी इच्छानुरूप जीने की आजादी रखे।यदि आमनागरिक इस आजादी व सुरक्षा से वंचित है, तो फिर कैसी यह राजव्यवस्था व कैसी इस समाज की सभ्यता।इस अराजक स्थिति को भला एक संवैधानिक राजव्यवस्था कैसे माना जा सकता है।

हालाँकि चोरी,डकैती ,अराजकता किसी भी समाज व राज्य में सर्वकाल से वर्तमान रहे हैं,किंतु किसी सभ्य व न्याय-आधारित समाज में, विशेष तौर पर उसके अति आबाद , विकसित क्षेत्रों ,विशेषकर  देश की राजधानी  अथवा बड़े शहरों जैसे प्रधान स्थानों,में आम आदमी कमोवेस अपनी सुरक्षा व निर्भय जीवनचर्या के प्रति आश्वस्त होता है। विश्व के विकसित देशों ,उनके बड़े शहरों में भी, भले ही हिंसा व अराजकता की छिट-पुट घटनायें विभिन्न कारणों से घटित होती रहती हैं, किंतु वहाँ एक सामान्य नागरिक,बिना किसी भेदभाव के,स्त्री हों या पुरुष, अपनी सामान्य सुरक्षा के प्रति आश्वस्त रहता है।इसके पीछे प्रधान कारण यही है कि भले ही अराजकता, हिंसा , अपराध की कोई घटना होती हो,फिर भी वहाँ लोगों को वहाँ की पुलिस व कानूनव्यवस्था पर पूरा विश्वास होता है कि है वहाँ कोई भी अपराधी अपराध करके दंडित हुये बिना  बच नहीं सकता । इसी कारण वहाँ अपराधी भी कोई अपराध करने में पुलिस व कानून से काफी खौफ खाते हैं। वहाँ जो भी अपराध की घटनायें यदा-कदा होती भी हैं, तो वे पेशेवर अपराधी व अराजक व्यक्तियों द्वारा कम बल्कि मानसिक रूप से विछिप्त, पागलपन के शिकार व आत्मघाती लोगों द्वारा ही ज्यादा घटित होती हैं। अमरीका में घटी घटना इसी श्रेणी में आती हैं। जबकि हमारे देश में होने वाली अपराध व बलात्कार की घटनायें, जैसा कि हाल ही में दिल्ली में घटित हुई है,पेशेवर अपराधियों व अराजक तत्वों का पुलिस-सुरक्षा-कानून व दंड व्यवस्था के प्रति बेखौफ रवैये के कारण है, जो अति गंभीर व चिंताजनक स्थिति है, और जिसे किसी भी सभ्य व न्यायसंगत राज्यव्यवस्था के अंग के रूप में तो कतई स्वीकारा नहीं जा सकता।

वैसे भी देखें तो इस तरह की घटना दिल्ली के लिये कोई नयी बात नहीं है।यदि आप दिल्लीवासी हैं अथवा कुछ वर्ष आप दिल्ली में निवास किये हों तो निश्चय ही आपका दिल्ली के इस वहसी व डरावने चेहरे की एकाध झलक से अवश्य साबका पड़ा होगा।दिल्ली देश की राजधानी होने के नाते न सिर्फ देश का राजनीतिक अखाड़ा है अपितु यह जघन्य अपराधों, हिंसक घटनाओं, विशेषकर महिलाओं पर यौन-हमलों,हिसा ,बलात्कार जैसी क्रूर घटनाओं का भी केंद्र है।इस  तथ्य के आधार पर यह आकलन करने में हमें कोई गुरेज नहीं होना चाहिये कि राजनीतिक चंडाल-चौकड़ी व हिंसा-अपराध-बलात्कार में चोली-दामन के संबंध होता है।

वैसे तो किसी भी राजव्यवस्था में कानून व शांति व्यवस्था की स्थापना व इसका निरंतर व प्रभावी नियमन एक कठित चुनौतीपूर्ण कार्य हैं किंतु यह भी उतना ही सत्य है,और जैसा कि पहले बताया व विकसित व सभ्य देशों के उदाहरण से पुष्ट होता है ,कि यदि राज्य की न्याय व सुरक्षाव्यवस्था दक्ष व सक्रिय हो,किसी भी नियमउल्लंघन अथवा अराजक कार्य के विरुद्ध कठोर निर्धारित दंडव्यवस्था हो,न्यायएजेंसियों द्वारा अपराध के केसों का द्रुत निस्तारण व राज्यसंविधान के विधिनिर्धारित नियमों का कड़ाई से पालन हो तो निश्चय ही समाज में किसी दुराचारण-नियम उल्लंघन व अराजक स्थिति व घटना की संभावना न्यूनतम हो जाती हैं।अनेक पश्चिमी देशों के अतिरिक्त पूर्व के भी कुछ देश जैसे सिंगापुर,जापान इत्यादि इस बात के उदाहरण हैं जहाँ नागरिक अधिकारों के उल्लंघन,उनके विरुद्ध अपराध की घटनायें न्यूनतम संख्या में घटती हैं।

दुर्भाग्य से हमारे देश में जब भी कोई ऐसी घटना घटती है तो इसे स्त्री-पुरुष संबंधों की असमानता,पुरुष का स्त्री के शोषण की परंपरा से जोड़ दिया जाता है।यहाँ तक कि तथाकथित नारीअधिकार संगठन भी इसी तरह की नारेबाजी व धरनो-प्रदर्शनों का आयोजन कर अपने जिम्मेदारी की इतिश्री समझ लेते हैं। इसी प्रकार विभिन्न मनोवैज्ञानिक विश्लेषक भी बलात्कार व हिंसा जैसे अपराधों हेतु अपराधी की मानसिक विकृति को ही जिम्मेदार मानते । इस तरह के जघन्य अपराधों का कारण मात्र अपराधी व्यक्ति का मानसिक रूप से विकृत होना जैसा  विश्लेषण विकसित व सभ्य समाज, जहाँ नियम,कानून व न्याय प्रक्रिया का दृढ़ता से पालन होता है , हेतु तर्कसंगत हो सकता है, किंतु हमारे देश व समाज जैसे स्थान जहाँ पुलिस,नियम,कानून,न्याय-प्रणाली की खुलेआम धज्जी उड़ाने का रिवाज है,जहाँ लोग जघन्य से जघन्य अपराध करके कानून के शिकंजे से दूर बेखौफ घूमते हैं, जिस देश की संसद व विधायिका के एक चौथाई माननीय सदस्य स्वयं ही जघन्य अपराधों,चोरी,डकैती,अपहरण,बलात्कार के अभियुक्त होने के बावजूद हमारे चयनित जनप्रतिनिधि बन संविधान की रक्षा करने की शपथ लेने जैसा भोंडा मजाक करते हों,और अपने सारे अपराधों व दुष्कृत्यों के बावजूद स्वयं सरकारी सुरक्षा व संरक्षण में बेखौफ घूमते हों,जहाँ अपराध के शिकार लोग न्याय से वंचित बस कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाते-लगाते ही अपने जीवन के मूल्यवान वर्ष व जीवन की सारी शांति व सुख खोकर घुट-घुट कर जीने व एक दिन दम तोड़ देते हों, वहीं जघन्य अपराधी व दुराचारी कानून के फंदे से दूर मूछों पर ताव देते सारे दुराचारों को लगातार करते रहते व ठाट का जीवन जीते हों, उस देश व समाज में भला अपराधियों व दुराचाराचारियों को बेखौफ जघन्य अपराध के प्रोत्साहन के अतिरिक्त क्या संदेश जाता है।

स्मरण आता है कि कुछ वर्षों पूर्व दिल्ली के समीप ही गाजियाबाद के निठारी में एक प्रभावशाली व्यवसायी द्वारा अपने नौकर की सहायता से नरपिशाचों को शर्मसार करने वाली घटना में अनेकों मासूम लड़कियों व युवतियों के बलाक्तार व हत्या की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आयी थी तो उस राज्य के मुख्यमंत्री के छोटेभाई व स्वयं भी राज्यसरकार में मंत्री ने यह बयान दिया था कि बड़े-बड़े राज्यों में इस तरह की छोटी-मोटी घटनायें होती रहती हैं।वे महोदय वर्तमान में भी राज्य में मंत्रीपद को सुशोभित कर रहे हैं।इन प्रकार के उदाहरणों से यह  सत्य स्पष्ट है कि आज जो इस तरह के जघन्य अपराध हो रहे हैं उसके लिये हमारे चयनित जनप्रतिनिधियों,संसद व विधायिका के सदस्यों का स्वयं अपराधकार्यों में हिस्सेदारी,उनके द्वारा अपराधियों व अराजक तत्वों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर संरक्षण,पुलिस व सुरक्षा एजोंसियों का भ्रष्टाचार व राजनीतिक दबाव के परिवेश में अपराधियों के विरुद्ध ठोस व प्रभावी कार्यवाही में हीलाहवाली व नाकारपन तथा हमारी न्यायप्रणाली का ढीला-ढालापन व उसकी नपुंसकता सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं।

इन घटनाओं व चिंतनीय हालातों से आम आदमी के मन में घोर निराशा व कुंठा के भाव आने स्वाभाविक हैं,किंतु मनुष्य होने के नाते हम यह भी नहीं भूल सकते की आशा ही जीवन है।हमारा इतिहास साक्षी है कि जब भी अराजक स्थिति व मानवता पर प्रहार की स्थिति आती है,जब-जब समाज में अराजक व अपराधी तत्व बेखौफ होकर दुराचार करने लगते हैं व आम आदमी का जीना मुहाल कर देते हैं,तब-तब नव जन चेतना जागृत होती है जिसकी शक्ति से ऐसे सत्पुरुषों व सत्शक्तियों का अभ्युदय होता है जो दुष्ट शक्तियों का संहार कर मानवता की रक्षा हेतु शांति,सुराज व सदाचार की स्थापना करते हैं। 

इस प्रकार मानव सभ्यता की चिरंतनता को ध्यान में रखते हुये हमें यह आशा व विश्वास कायम रखकर चलना ही होगा कि निश्चय ही एक दिन हालात बदलेंगे,समाज में उभरते अपराधी व अराजक प्रवृत्ति व इसमें संलग्न तत्वों पर अंकुश लगेगा व हमारा देश, समाज सुरक्षित, निर्भय, शांतिपूर्ण व सहज-जीवन-योग्य होगा। 

8 comments:

  1. मुबारक 200 वा लेख, अच्छा लिखते हो लिखते रहिए।

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  2. दो सौवीं पोस्ट की बधाई, धीरे धीरे करते रहने पर भी कीर्तिमान स्थापित हो जाते हैं। मानसिकतायें नियन्त्रण में न रह पाने का कारण सम्मिलित है, हम समाज के रूप में दोषी हैं।

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  3. दो सौ वीं पोस्ट की बहुत-बहुत बधाई....आशा है एक दिन हालात बदल जायेंगे, हम इस दुनिया में फिर से अमन-चैन से जी सकेंगे

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  4. निश्चित है कि एक दिन हालात बद्लेगे,,,२०० वीं पोस्ट की बहुत२ हार्दिक बधाई,,,,

    recent post: वजूद,

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  5. किसी भी प्राणी के लिए सुरक्षा सर्वप्रथम आवश्‍यक है, इसके बिना उसका अस्तित्‍व बच नहीं सकता। इसलिए सभी प्राणियों ने अपने परिवार और समाज बनाए हैं। मानव ने भी बनाया है लेकिन आज यह परिचार और समाज का अस्तित्‍व क्षीण हो गया है। इसलिए केवल सरकारी सुरक्षा तंत्र पर हम सब आधारित हैं। वर्तमान में ना परिवार की, ना समाज की बंदिशे एवं डर आमजन को है और ना ही प्रशासनिक डर। एक बात और, पूर्व में हमेशा पुरुष को संस्‍कारित करने का कार्य समाज करता था लेकिन आज मर्यादाविहीन पुरुष बनाने पर समाज तुला है। इसी का परिणाम ये सारी घटनाएं हैं।

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  6. सबसे पहले २०० वीं पोस्ट के लिये बधाई और भविष्य के लिये शुभकामनायें.

    सहनशक्ति भी कभी कभी चरमरा जाती और क्रान्ति होती है.हालत बदले यह आकांक्षा तो सभी की है.

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  7. m too late 4 dis but any way....congratulation 4 ur 200.....blog p0st.ek vikrat mansikta waale samaj se ek sabhya samaaj k biich ka safar kathinaaiyon bhara hai .... n we have to face it..

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