Monday, October 7, 2013

संघर्ष और सफलता.....

आज अखबार पढ़ते बाॅलीवुड की दो प्रसिद्ध  शख्सियतों के छपे इंटरव्यू पर सरसरी तौर पर निगाह गयी, एक तो एक्ट्रेस मल्लिका सहरावत और दूसरे प्रसिद्ध गायक अभिजीत ।ध्यान से पढ़ने पर इनका इंटरव्यू इतना रोचक व प्रेरणा दायी लगा कि मैं इनपर अपने विचार लिखने का संवरण नहीं रोक सका।

मल्लिका सहरावत का जन्म हरियाणा के एक गाँव मोठ में एक मिडिल क्लास परिवार में हुआ, और उनकी छोटी कक्षा की पढ़ाई निरवाना में हुई ।उनके पिता श्री मुकेश लाम्बा हरियाणा सरकारी विभाग में इंजिनियर थे, जो बाद में ट्रांसफ़र होकर परिवार सहित  दिल्ली आये, और  मल्लिका की आगे की पढ़ाई लिखाई दिल्ली में हुई ।

मल्लिका का मूल नाम रीमा लाम्बा था, व बचपन से उनकी आकांक्षा फिल्मों में काम करने की थी , परंतु उनकी कंजर्वेटिव  पारिवारिक पृष्ठ भूमि व उनके पिता की पारंपरिक सोच,कि नारी नुमाइश की चीज नहीं और उसकी सीमा व मर्यादा मात्र घर की चहारदीवारी के अंदर व बालबच्चों व घर की देखभाल तक सीमित होनी चाहिए,  उन्हें फिल्मों में काम करने की अनुमति कदापि न देते, अतः मन में फिल्म एक्ट्रेस का सपना लिए  वे एक दिन अपना घर छोड़ कर मुंबई भाग आयी।उनके पिता उनकी  इस हरकत से इतने आहत व नाराज हुए कि उन्होंने अपनी पुत्री से सदैव के लिए नाता तोड़ लिया, यहाँ तक कि उन्हें अपनी पुत्री के नाम के आगे अपने  पारिवारिक सरनेम लाम्बा  भी  गँवारा नहीं था, इसलिए इन्होंने अपना नाम बदलकर मल्लिका सहरावत कर लिया, जो उनकी माँ के मेडेन नाम से लिया  है।

वे मुंबई के एक साधारण चाल में किराए पर रहतीं, लोकल ट्रेन में धक्का खाते फिल्मों में काम हेतु संघर्ष करती रहीं।काफी समय के संघर्ष के उपरांत उन्हें छोटे मोटे मॉडलिंग व फिल्म में एक्स्ट्रा रोल के काम मिले, अंततः महेश भट्ट की फिल्म मर्डर  से उन्हें ब्रेकथ्रू मिला और उनका नाम फिल्मों में बोल्ड व बिंदास रोल हेतु  प्रसिद्ध होता गया ।फिर वे संयोग वश अंतर्राष्ट्रीय फिल्मएक्टर व मूवी  मेकर जैकी चैंग के संम्पर्क में आयीं, जिससे उन्हें हॉलीवुड मूवीज में काम करने का अवसर मिला।वर्तमान में वे आइटम सांग व अपनी छवि के अनुरूप  ग्लैमरस रोल करना पसंद करती हैं, क्योंकि उनका मानना है कि इन कामों से उन्हें अच्छा पैसा मिलता है जिससे वे अपने उच्च स्तर के मँहगे रहनसहन को मेंटेन कर पाती हैं ।

उनके पिता व उनका परिवार, सिवाय उनके छोटे भाई के जो उनके साथ मुंबई रहता है, उनसे अभी भी नाराज व संबंध विच्छेद रहते, जिसका मल्लिका बहुत दुख होता है किन्तु उन्हें इस बात का बहुत संतोष होता है कि वे अपना जीवन अपने सपनों व आकांक्षा के अनुरूप व आत्मनिर्भर होकर जी रहे हैं ।उनका यह भी सपना है कि भारत की हर नारी आत्मविश्वास व आत्मनिर्भर होकर जिये, न कि मात्र पुरुष समाज के नियंत्रण व आधिपत्य का एक लाचार जीवन ।

मल्लिका सहरावत की बिंदास छवि व अलग खयालात से उनके पिता की ही तरह  भले ही कोई असहमत हो व उन्हें नापसंद करता हो, परंतु इसमें निश्चय ही कोई  संदेह नहीं कि मल्लिका सेहरावत  भारतीय नारी के स्वयं की सोच व जीवन के सपनों के प्रति दृढ़  आत्मविश्वास व आत्मबल की प्रतीक हैं, जो अपने सपनों व आकांक्षाओं की प्राप्ति हेतु किसी भी प्रकार के संघर्ष का सामना करने का हौसला रखती है ।

इसी प्रकार प्रसिद्ध गायक अभिजीत के जीवन की संघर्ष गाथा भी कम रोमांचक व प्रेरणा दायी नहीं है ।अभिजीत का जन्म कानपुर में एक साधारण बंगाली परिवार में हुआ था, पिता का व्यवसाय डूब जाने व परिवार की माली हालत खराब होने से इनका परिवार कठिनाई से गुजर रहा था, इनके बड़े भाई कम उम्र में ही पढ़ाई छोड़ परिवार के गुजरबसर के लिए छोटा मोटा काम करते ।अभिजीत की रुझान संगीत व म्यूज़िकल इंस्ट्रूमेंट्स में थी, सो वे छोटे मोटे ऑर्केस्ट्राओं में गाने बजाने का काम करते ।जीवन संघर्ष व कठिनाई से जरूर भरा था पर किशोर अभिजीत का दिली सपना फिल्मों में प्लेबैक सिंगिंग का था ।अपने इसी सपने को लिए वे एक दिन घर से भागकर मुंबई आ गये ।तीन चार साल तक परिचितों, रिश्तेदारों के यहाँ शरण लिए काम की तलाश करते रहे, फिर छोटी मोटी नौकरी करते किराये की चाल रहकर अपने गाने के ऑडिसन हेतु कई साल म्यूजिक स्टूडियो व संगीतकारों के चक्कर काटते संघर्ष रत रहे।कई वर्ष के संघर्ष के बाद  अंततः उन्हें आर डी बर्मन ने देवानंद की फिल्म आनंद और आनंद में किशोर कुमार के साथ एक डुएट प्लेबैक  सांग गाने का मौका दिया, परंतु फिल्म और गाना दोनों बुरी तरह असफल रहे व यह मौका भी अभिजीत को गुमनामी से बाहर लाने व जीवन में  बेहतर मौका दिलाने में नाकाम रहा ।अंततः दस साल के लंबे संघर्ष के बाद संगीत कार आनंद मिलिंद द्वारा फिल्म बागी में मिले गाने के मौके से इनको वास्तविक सफलता व पहचान मिली ।फिर तो अभिजीत दा ने मुड़कर नहीं देखा  ,व  नब्बे के दसक में वे बॉलीवुड में सबसे सफल गायक की शोहरत व सफलता हासिल किये ।आज भी उनकी पहचान व सफलता एक अच्छे पार्श्वगायक की बनी हुई है ।

ऐसा नहीं कि मल्लिका सहरावत अथवा अभिजीत मात्र ही इस संघर्ष से मिली सफलता के उदाहरण हैं, बल्कि सच पूछें तो अमिताभ बच्चन से लेकर शाह रुख खान तक  प्रायः सभी प्रसिद्ध कलाकारों को अंततः सफलता व पहचान  काफी संघर्ष व मसक्कत के बाद ही मिली, अलबत्ता सहज व बिना किसी संघर्ष के  सफलता के उदाहरण तो अपवाद स्वरूप ही देखने को मिलते हैं ।

यदि फिल्म जगत अथवा कलाकारों के अन्यथा भी अध्ययन करें तो भी यही  पायेंगे कि व्यक्ति को जीवन में सफलता कड़े संघर्ष व मसक्कत के उपरांत ही मिलती है, अर्थात् संघर्ष किसी सफल व्यक्ति के जीवन स्क्रिप्ट का अनिवार्य हिस्सा है।

हालांकि ऐसे भी कम उदाहरण नहीं हैं जब किसी व्यक्ति को कड़े संघर्ष के उपरांत सफलता नहीं मिल पायी, अनगिनत ही उदाहरण मिल जायेंगे कि संघर्ष करते रहे, पर व्यक्ति को सफलता नहीं मिली व गुमनामी में खोकर अनजान जीते मरखप गये, बॉलीवुड में तो ऐसे अनेकों उदाहरण मिल जायेगें, परंतु उतना ही यथार्थ  यह भी है कि प्रायः जीवन संघर्ष के नतीजतन सफलता एक न एक दिन  अवश्य ही  हासिल होती है, बस इतना कि आप इन संघर्ष व कठिन हालात को धीरज रखकर सामना करते मौके पर अटल  खड़े   रह सकने का हौसला कायम रखें ।
                    

7 comments:

  1. ऐसे ही संस्मरणों से तो कठिन हालात में धीरज रखते हुए आगे बढ़ते हैं.. और सफ़लता को अवश्य ही कदम चूमना होता है ।

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  2. फिल्‍मी दुनिया में किसी नये का अपने बलबूते प्रवेश और अपनी जगह बनाना आसान नहीं.

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  3. इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-10/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -21 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....
    नवरात्रि की शुभकामनाएँ.

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  4. राह कैसी भी बड़ी हो,
    एक पग ही बढ़ाना है, इस समय।
    अनसधी बाधा खड़ी हो,
    हर समय संधान चिंतन, इस समय।

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  5. बहुत ही हौंसला वर्धक लेखन |आभार

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  6. कर्म करना तो तुम्हारा अधिकार है, लेकिन उसके फल पर कभी नहीं |
    कर्म को फल की इच्छा से कभी मत करो, तथा तेरा कर्म ना करने में भी कोई आसक्ति न हो|

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