Sunday, October 27, 2013

जब कभी अपने बच्चों से ही सही मार्ग दर्शन मिलता है ....

प्रायः माता पिता अपने बच्चों के मार्गदर्शक होते हैं, व बच्चे जब अनिर्णय व उहापोह अथवा किसी अनुचित कार्य  की स्थिति में होते हैं ,तो माता पिता अपने जीवन अनुभव की समझ द्वारा अपने  बच्चों को उचित   सलाह मशविरा व मार्ग दर्शन  दे उन्हें सही  निर्णय लेने व किसी अप्रिय स्थिति से बाहर निकलने में सहायता करते हैं ।परंतु जब बच्चे स्वयं ही अपने विवेक व समझदारी की सलाह  से अपने  मातापिता को ही किसी अनिर्णय, उहापोह अथवा अप्रिय स्थिति से बाहर निकलने में सहायता करें तो मातापिता को अपने बच्चों के प्रति निश्चय ही  बहुत संतोष व गर्व की अनुभूति होती है और एक आंतरिक संतुष्टि व प्रसन्नता मिलती है  कि अब हमारे बच्चे सचमुच, बड़े, समझदार व दुनियादारी के सहज निर्वाह के योग्य हो गये हैं ।

विगत कुछ अवधि से मैं अनुभव कर रहा हूँ कि जब भी किसी  वैचारिक असंतुलन में होता हूँ  अथवा अपने जल्दबाजी अथवा थोड़े आवेश में आकर कोई अप्रिय प्रतिक्रिया अथवा  निर्णय अभिव्यक्त करता हूँ, मेरे बच्चे बड़े शांत व समझदारी से कोई उचित राय देते है, जिससे वह अप्रिय स्थिति टल जाती है, और निश्चय ही मुझे इससे बहुत सुखद व शांति दायक अनुभूति होती है ।आज भी ऐसा ही कुछ छोटा सा वाकया हुआ, जिसमें मैं अपने बेटे की सलाह समय पर मानते एक अप्रिय स्थिति से सहजता से बच गया जिसका मुझे हार्दिक संतोष हो रहा है ।

आज दोपहर बाद फेस बुक न्यूजफीड   में मेरी दृष्टि मेरे फ्रेंडलिस्ट  के एक सदस्य की पोस्ट पर गयीं जिसमें उन महोदय ने मेरे स्टेटस  पर पोस्टेड मेरी एक  कविता को बिना किसी संदर्भ व मेरे संज्ञान के उसे  अपने नाम से पोस्ट कर रखी थी।यह कविता   कल शाम  ही मैंने लिखी  व अपने ब्लॉग पर पोस्ट करने के साथ अपने  फेसबुक  स्टेटस पर भी  पोस्ट की थी, उसे मेरे इस फेसबुकिया मित्र ने तरीके से मेरी पोस्ट को अपनी पोस्ट पर शेयर करने बजाय, उसे अपने फेसबुक  स्टेटस पर अपने नाम के नीचे, मेरे बिना किसी संदर्भ या संज्ञान के, अपनी कविता बनाकर पोस्ट किया है ,आश्चर्य यह कि इन महोदय ने इस पोस्ट पर अपने मित्रों के कमेंट्स भी बड़ी सहजता से स्वीकार किये हैं मानों यह उनकी अपनी स्वयं की रचना हो।

मैं तो यह देख बहुत  हैरान और दुखी हुआ कि कोई भला मेरी रचित  कविता को इस प्रकार कॉपी  कर अपनी पोस्ट पर कैसे डाल सकता है ।मैंने बहुत गुस्से व आवेश में उनकी पोस्ट के कमेंट्स में लिखा कि आखिर वह मेरी रचित  कविता  को अपनी पोस्ट पर बिना मेरे संदर्भ व संज्ञान के अपनी कविता बनाते  कैसे प्रस्तुत कर सकते हैं? 

अपनी यह रोशभरी  प्रतिक्रिया उनके पोस्ट पर लिखने बाद मैंने इस बात की चर्चा अपने बेटे से की।सारी बात जानकर मेरा बेटा गंभीर होते  मुझे इस बात पर  इतनी तीखी  प्रतिक्रिया व नाराजगी दिखाने  से बचने व बेहतर इस मेरी लिखी प्रतिक्रिया को उन मित्र के पोस्ट पर दिये  कमेंट्स से  तुरंत मिटाने की सलाह दी ।

दरअसल ये फेसबुक के मेरे मित्र हमारे नजदीकी रिश्तेदार भी   हैं, वे एक जिम्मेदार सरकारी  पद पर कार्य करते हैं, व मेरा बेटा भी  उन्हें भलीभाँति जानता है और उनसे मिल चुका है  ।मेरे पुत्र की मुझे सलाह थी कि हालांकि मेरा गुस्सा व प्रतिक्रिया जायज है परंतु मेरी इस प्रकार की पब्लिकली लिखित कड़ी   प्रतिक्रिया हमारे इन रिश्तेदार हेतु अपने परिवार व मित्रों के बीच शर्मिंदगी का कारण बन सकती है  व इस कारण  उनसे हमारे सौहार्दपूर्ण  रिश्ते व संबंध  हमेशा के लिए प्रभावित हो सकते है , और इस छोटी सी बात पर ही हम अपना  एक नजदीकी  रिश्तेदार व आत्मीय सदा के लिए खो सकते हैं ।

अलबत्ता मेरे पुत्र ने मुझे आगे से अपने मौलिक  लेखों व रचनाओं  को फेसबुक पर पोस्ट करते समय विभिन्न ऐतिहात बरतने की सलाह दी, जैसे अपनी कविता या लेख को सीधे टेक्स्ट फॉर्मैट में पोस्ट करने के बजाय उसे अपनी  पिक्चर अथवा लोगो के साथ पिक्चर फॉर्मैट में पोस्ट करना जिससे उसके किसी के द्वारा  सीधे सीधे कॉपी पेस्ट चोरी की संभावना कम हो जाती है, दूसरे अपनी रचना व लेख के साथ रचनाकार व लेखक के रूप में  अपना नाम जरूर  लिखें व पाठकों हेतु एक सामान्य चेतावनी भी लिखें कि इस पोस्ट में प्रकाशित  लेख या रचना मेरी  एक मौलिक कृति है व  बिना मेरी अनुमति व मेरे  संदर्भ व संज्ञान  के   इसे कॉपी करना अथवा इसका अपने लेखन में किसी प्रकार उपयोग में लाना सर्वथा वर्जित है ।

मुझे अपने पुत्र की यह समझदारी भरी व विवेक पूर्ण सलाह बहुत जायज व अनुकूल  लगी।सच कहें तो मुझे अपने फेसबुक मित्र की पोस्ट पर जल्दबाजी में  अपनी रोशभरी  प्रतिक्रिया लिखने पर स्वयं भी अब पछतावा हो रहा था क्योंकि हमारे इस फेसबुक मित्र व अपने नजदीकी  रिश्तेदार के प्रति मन में बड़ी आत्मीयता व स्नेह है  और  इतनी छोटी सी बात पर मैं उनसे  अपनी  आत्मीयता व संबंध नहीं  खोना चाहता था ।

वैसे भी मैं अपने अति  स्पष्टवादी व किसी के मुंह पर ही कड़ी बात कह देने के  स्वभाव   व दूसरे की गलतियों के प्रति जीरो टॉलरेंस की अपनी  प्रवृत्ति के कारण,यह अलग बात है कि मैं तो अपनी  कही बातों को भूल चुका होता हूँ व मुझे बाद में इन पुरानी बातों व घटना का ध्यान भी नहीं रहता परंतु अगला व्यक्ति मेरी  उन कही बातों का मन में गांठ बाँध लेता है, यदा कदा  अपने कुछ  नजदीकी जनों को भी छोटीमोटी बातों के लिए उनके  मन को ठेस पहुँचा देता हूँ जिससे उनसे  हमारे पुराने आत्मीय संबंध प्रभावित हो जाते हैं ,   और इस तथ्य को  मेरा बेटा भी अच्छी प्रकार  समझता है ।

अतः अपने बेटे की इस  विवेक पूर्ण सलाह व अपने   पुराने अनुभव से सबक लेते  मैंने इस मुद्दे पर अतिप्रतिक्रिया से बचने व शांति व संयम से काम लेने का निर्णय लेते अपने मित्र की पोस्ट पर उनकी हरकत  के विरुद्ध लिखी अपनी गुस्से व रोशभरी तीखी प्रतिक्रिया को तुरंत  डिलीट करने का निर्णय लिया  । भविष्य में  ऐसी परिस्थिति से बचा जा सके, इस हेतु  मैं अपने बेटे की सलाह पर अमल लेते आगे से  अपनी रचनाओं व लेखों  को फेसबुक पर पोस्ट करते समय आवश्यक सावधानी रखने का निर्णय लिया , ताकि उनके  सामान्य कॉपी पेस्ट चोरी से बचा जा सके ।कहते हैं न कि सुरक्षा से सावधानी भली ।

यकीनन अपनी प्रतिक्रिया को डिलीट कर देने व इस प्रकरण  को यही समाप्त कर देने का मुझे अपार संतोष है, अन्यथा मैं व मेरा परिवार शायद  अपने एक आत्मीय जन से आगे के लिए  सौहार्द पूर्ण संबंध हमेशा के लिए खो सकता था ।

अपने पुत्र के इस विवेक पूर्ण हस्तक्षेप के लिए मैं उसका हृदय से आभारी हूँ ।उसकी दुनियादारी की सही समझ व अपने आत्मीय जनों व रिश्तों के प्रति आदर व सम्मान रखने की भावना  पर मुझे एक पिता के रूप में अपार गर्व व हार्दिक प्रसन्नता हो रही है ।

4 comments:

  1. बच्चे हमें कहीं अधिक जानते हैं, हम तो स्वयं से जूझते रहते हैं, बच्चे तटस्थ हो देखते रहते हैं।

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  2. जब बच्‍चे बड़े हो जाते हैं तब हमें वे ही नयी दुनिया से परिचय कराते हैं और हमारे मेन्‍टल ब्‍लाक्‍स को तोड़ते हैं। हम भी उनके परामर्श की ही राह तकते हैं।

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  3. आपके विचारों को पढ़ते हुए लग रहा था अपने ही मन की बातें पढ़ रही हूँ ..... बच्चे हमसे जो भी कहते हैं वो सच होता है क्योकि वो हमको हमसे भी अच्छी तरह से जानते हैं .....

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  4. बहुत नसीहत के साथ लेकिन वर्तमान संदर्भो को बच्चे कहीं अधिक तत्परता से लेते हैं.
    नई पोस्ट : भारतीय संस्कृति और लक्ष्मी पूजन

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