( अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ' नारी ' के सम्मान में विनम्रतापूर्वक समर्पित )
नारी !
तुम जननी , धात्री तुम संगिनी ,
आदिगुरु तुम , स्नेहदुलारमूर्ति तुम भगिनी ।
प्रेम , स्नेह , ममता की खातिर ,
कितने कष्ट सहे हैं तुमने ! कितने त्याग किये हैं तुमने!
स्वयं रक्त को दूध बनाकर , जीवन अमृत देती हो पीने !
मगर जगत ने माना तेरी करुणा को तेरी कमजोरी ?
जिसको आँचल छाँव दिया है वही किया तुमसे बरजोरी ?
आज बता दो जग को कि तुम और नहीं हो कोई अबला ,
शंखनाद दे शक्ति सन्निहित बतला दो कि तुम हो सबला ।
तुम सशक्त हो , शक्तिमयी हो ,
तुम समर्थ, परिपूर्णमयी हो ।
माना तुम माँस्वरूप करुणा की सागर,
प्रेम , दया ,ममता की आगर ,
मगर दृष्टि जो कलुष किसी की
पड़ती हो , मर्यादा हरती ,
बन दुर्गा तुम दुर्जन को संहारती ,
काली प्रचंड तुम कलुष नाशती ।
आज समय इस आवाहन का,
तुझको 'निर्भया' होकर जगने का ,
तुम जागृत तो जग हो जागृत
कर दो पशुता का सिर उच्छेदित ।
फिर भी मूल तुम्हारी करुणा ,
प्रेम स्नेह ममता कर वीणा ।
तेरी वृष्टि जगतमय अमृत ,
करो निरंतर सबको पोषित ।
- देवेंद्र दत्त मिश्र
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