Saturday, August 8, 2015

भारतमाता के अनमोल रतन...... श्री लाल बहादुर शास्त्री

तुम भारत के थे अनमोल रत्न , 
तेरा यश अब भी भारत गाता ।
हुए धन्य तुम्हे पुत्ररत्न पाकर ,
पिता शारदा , रामदुलारी माता ।1।

तुम दृढ़ प्रतिज्ञ थे सत्यनिष्ठ,
शिक्षा के थे अभ्यर्थी कठोर ।
जो पैसे नहीं पास में नाव के,
पढ़ने जाते थे तुम गंगानदी तैर ।2।

गाँधी नेहरू के तुम परम भक्त
रगरग में थी कर्तव्य भावना भरी ।
कर दिया समर्पित राष्ट्रहेतु स्वयं को
जब बजी आजादी की रण भेरी ।3।

जब गाँधी जी ने सन् बयालीस में
कहा अंग्रेजों से कि भारत छोड़ो ।
तब आवाज बुलंद किया तुमने भी
करते आवाहन कि 'मरो नहीं मारो '।4।

तुम निडर साहसी अगुआ थे
भारत को गौरव और मान दिया।
जब किया पाक ने नापाक युद्ध ,
तुमने उसका मुँहतोड़ जबाब दिया ।5।

की सीमा चौकस ,सैनिक तत्पर
विजयी बन भारतध्वज लहराया ।
नारा जयजवान जयकिसान का दे
भारत ने आत्मशक्ति वापस पाया ।6।

तुमको पा भारत माँ धन्य हुई
हे लाल बहादुर हे लाल रतन ।
तुम अद्भुत भारत के गौरव थे ,
हम करते तुमको कोटि नमन ।7।
-देवेंद्र

कब तक मृत्यु सहोगे बापू !

बापू !
तुम जीते जी वही किये
जिन बातों और मूल्यों में
तुम सचमुच में विश्वास किया करते थे ,
जो पथ तुमको उचित लगा और न्यायपरक
भले अकेले हो परंतु तुम उसपर ही चलते रहते थे ।
थे तुम पिता राष्ट्र के जिस वह
जिसकी रग में तुम बहते थे जीवन बनते
रगों में जिनके रुधिर बने तुम थे बहते
उसी पुत्र ने तुमको बदले में
चिरनिद्रा में सो जाने का बस प्रतिकार किया ,
चले गये थे तुम एक अचानक ,
दूर कहीं , और मौन कहीं ,
कलतक जो तेरे पीछे चलते
जो थे तेरे अनुयायायी बनते ,
तुमको लेकर बड़ी बड़ी बातें थे करते
हर बात तुम्हारी सिर आँखों पर,
कहते कितने भाषण थे देते
और कोसते पीट पीट कर छाती अपनी
उनको जिसने की हत्या तेरी , तुमको थी गोली मारी
मगर वही तेरे तथाकथित अनुयायी भी
तेरे ही नाम की टोपी पहने,
कुछ चौरस्तों , गलियों में तेरी मूर्ति खड़ी कर
नाम की तेरे बड़ी दुहाई देते,
करते जोर जोर की भाषणबाजी
बातें करते दीनदलित की ,
सत्य अहिंसा और न्याय की
नाम पर तेरे वोट खरीदें ,
करते रहे निरंतर हत्या , बलात्कार
प्रति-पल , प्रतिदिन , और निरंतर
तेरे सिद्धांतों की , तेरे सदाचरणों को
सौदाई बन करके , लोभी भ्रष्टाचारी बन करके ।
सात दसक होने को आये तेरे महाप्रयाण के बापू
मगर तुम्हारे सिद्धांतो ,मूल्यों , आचरणों का
जारी है हत्या , मर्दन
तेरे ही संतानों के हाथों
रोज तुम्हारी आत्मा का गला दबाया जाता है
तेरी ही पूजा के मिथ्या आडंबर में !
देख आज यह मन रोता है
कि कितने मेघनाद और रावण जश्न मनाते , उत्सव करते
वहीं रोज तुम प्रतिपल मरते ,
कितनी मृत्यु मरे हो बापू !
कब तक मृत्यु सहोगे बापू !
- देवेंद्र