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Thursday, December 1, 2011

मन हुआ बावरा मेरा,


सुनता नहीं किसी की
बस अपनी ही कहता है।
छोड़ी दुनिया की उलझन
बस गीतो में रहता है।1
मन हुआ बावरा मेरा।।

मैं हरपल इसको समझाता
कुछ तो तू सीख जगत से,
दुनियादारी के ये पचड़े और
निभते रिश्ते जोड़जुगत से।2
मन....

पर सुने किसी की तब ना!
मानता नही यह कहना।
यह वस्त्र फकीरी पहना,
अभिलाषे यती सा रमना।3
मन....

इसे फूलों के रंग हैं भाते,
मन तितली संग उड़ जाते,
कोकिल स्वर हैं जब गाते,
इसके ध्यान वहीं खो जाते।4
मन.....

जब सब व्यस्त रहें धंधे में
कि फँस जाये कोई फंदे में,
उद्यम सब धन-अर्जन में ,
सोचें है सब  सुख धन में।5
मन....

रविकिरनों से मुलाकातें और
करता वृक्षों से गुपचुप बातें।
जब सबकी सोती हैं रातें,
यह तारों से करता बातें।6
मन....

कोई तो इसको समझाये
जीवन के राज बताये,
क्यों वक्त करे तू जाये,
है पता तुझे क्या खोये?7
मन.....

दुनिया है चतुर सयानी
कोई राजा है कोई रानी
सब काज रखें सावधानी
जीवनसर भरते धनपानी।8
मन....

इक तू उजबक मीता है
बस कविता में जीता है,
सबकी भरती है झोली
पर तेरा घट  रीता है।9
मन हुआ बावरा मेरा।।