मनपक्षी तू नभ में उड़ ले, ले दिशा नयी।
सूरज है नया,नव किरणें, है सुबह नयी।
है दिन का नया उजाला ,अब रात गयी।
फूलों का रस पीने को तितलीं बेताब हुयीं।1।
है गगन खुला यह सारा, मन चाहे जिधर तू उड़ ले।
हैं चलती मस्त हवायें ,उनके संग तू भी बढ़ ले।
जो गीत तुझे मन भाये,भर तान उन्हे तू गा ले।
जो भी हैं मचलें अरमान,भरपूर उन्हें तू जी ले।2।
तू वेगमयी हो उड़ना रविरथ से लेकर बाजी।
रजतपंख पर शोभित हैं स्वर्णकिरण अभिराजीं।
संगीत पवनध्वनि बनतीं हैं राग नये हो साजीं।
मानो ही प्रयोजन तेरे रण भेरी विजय की बाजीं।3।
पर ध्यान रहे भी तुमको अवसान दिवस का।
वापस रस्ते है आना,अपने ही नीड़-बसर का।
तब पंख तो होंगे थकते, और झोंका तेज हवा का।
बच्चे भी रस्ता देखें, घर तेरे तब आने का।4।
बेसक तुम भ्रमण करो यह भूमंडल जग सारा ।
तेरी उड़ान में शामिल यह व्योमाकाश प्रसारा,
बाहो को निज फैलाये,तुझपे निज तनमन वारा।
पर वापस अपने ही घर में आना हर बार दुबारा।5।
वैसे तो प्रतिदिन ही होता नियमों से साँझसवेरा।
तू चक्रगति में जीता,जगता,उड़ता फिर निद्रा ।
पर एक सत्य जो जागृत,सार्थक जीवन यह तेरा,
अंतर्स्थित परम चेतना, ही है अंतिम
नीड़बसेरा।6।