सितंबर माह का पहला पखवाडा सरकारी तौर पर हिंदी पखवाडा के रूप में मनाते हैं जिसका समापन १४ सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में होता है ।सभी सरकारी दफ्तरों, विशेष कर केंद्र सरकार अधीनस्थ विभागों, संस्थानों व कंपनियों में यह अनिवार्यतः मनाया जाता है ।जैसा कि हम सबको पता ही है कि हर सरकारी कार्यालय ,संस्थान में वाकायदा हिंदी विभाग होता है,जिसे प्रशासनिक भाषा में राजभाषा विभाग कहते हैं, जिसका काम ही है हिन्दी का प्रचार प्रसार करना ।
सरकारी नौकरी की शुरुआत में मुझे यह नहीं समझ में आता था कि आखिर हिंदी को हिन्दी न कहकर राजभाषा क्यों कहते हैं, जबकि हकीकत में राजकीय कामकाज से तो इसका दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं (मेरे इस कथन से आप असहमत हो सकते हैं परंतु मैं जो यथार्थ अनुभव किया हूँ वही लिख रहा हूँ ।) फिर धीरे धीरे समझ में आया कि दरअसल हिंदी शब्द से धर्म विशेष की बू आती है जो देश की आजादी के बाद सत्ता में आये हमारे तथाकथित धर्म निरपेक्ष नेताओं की छवि की चकमक सफेदी पर सांप्रदायिक धब्बा लगा सकती थी, इसलिए राजनीतिक सहूलियत हेतु उन्होंने हिंदी के बजाय इसका नाम राजभाषा रख दिया।राजनैतिक व सामाजिक कारणों से इसी प्रकार के अनेक पाखंड हमारे जीवन में अंतरंग स्थान रखते हैं अतः हमें हिंदी या राजभाषा नाम को लेकर कोई आश्चर्य की आवश्यकता नहीं है ।
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हर सरकारी कार्यालय में तिमाही हिंदी बैठक,मेरा मतलब राजभाषा बैठक, नियमतः अनिवार्य है जिसमें हिंदी में कामकाज के प्रगति का व्यौरा दिया जाता है और हिंदी में कामकाज को और सुधारने की रणनीति पर चर्चा होती है ।यदि आप विगत बीस सालों से हिंदी की प्रगति के आँकड़े सुनते रहे हों, तो मेरी तरह आप भी आश्चर्य करेंगे कि आखिर जब ९०-९५ प्रतिशत काम हिंदी में हो ही रहा है, फिर यह बैठक व हिंदी में काम करने की बारबार दुहाई देने की आवश्यकता ही क्यों ?और फिर आप किसी सरकारी दफ्तर के कामकाज के रिकॉर्ड्स व फाइल की जाँच कर लें आपको यह हकीकत स्पष्ट हो जायेगी कि सरकारी कामकाज अधिकांशतः किस भाषा में होता है, और निश्चय ही वह भाषा हिन्दी नहीं है, इस प्रकार हमारे सरकारी विभागों में हिन्दी में कामकाज की वस्तुस्थिति , हिंदी विभाग द्वारा इसका प्रचार प्रसार, इससे संबंधित तमाम बैठकें, दिये जाने वाले आँकड़े किसी घनचक्कर या मजाक से कम नहीं है ।
सरकारी कार्यालयों में हिंदी पखवाडा का आयोजन वैसा ही रोचक दिखता है जैसा कि वार्षिक गणेशोत्सव अथवा दुर्गा पूजा, कार्यालयों में जगहजगह बैनर पोस्टर जिसपर हिंदी में कामकाज हेतु प्रोत्साहन हेतु महान विभूतियों, जैसे महात्मा गाँधी, नेहरू, राजेंद्र प्रसाद इत्यादि, कई तो ऐसे नाम जिन्हें आपने हिंदी के कोर्स में न तो कभी पढ़ा न सुना, इन महान विभूतियों के कथन पढ़ते तो यही अनुभव होता है कि मात्र हिंदी ही हमारे राष्ट्र की उद्धारक, रक्षक व स्वाभिमान है ।मुझे इन कथनों को पढ़कर उसी प्रकार की आत्म ग्लानि होती है जिसप्रकार महिलाओं की मर्यादा में जगह जगह लिखा यह कथन कि 'यत्र नार्यस्त पूज्यंते रमंते तत्र देवता' अथवा प्रायः पुलिस थाने में लिखा संदेश कि 'सत्यमेव जयते' अथवा घूस देना या लेना दंडनीय अपराध है,जबकि वस्तुस्थिति है सर्वथा विपरीत ।
सबसे बड़ी कोफ्त तो तब होती है जब हिंदी पखवाडा उत्सव के नाम पर ऑर्केस्ट्रा पार्टी, गीत संध्या, डीजे पार्टी, हास्य कविसम्मेलन व शेरो शायरी का आयोजन किया जाता है ।इन आयोजनों में कोई बुराई नहीं, परंतु इन्हें हिंदी समारोह से जोड़ना अजीब व अटपटा लगता है ।वैसे हो सकता है मेरी ही कम समझ का फेर हो क्योंकि जमाना ही मार्केटिंग का है और हो सकता है कि हमारे हिंदी प्रचारक प्रसारक हिंदी के मार्केटिंग की यही रणनीति उचित समझते हों, परंतु मेरी एक बात से आप निश्चय ही सहमत होंगे कि इन साठ वर्ष से भी समय से लगातार हिंदी के प्रचार प्रसार के सरकारी हथकंडों व टोटकेबाजी से हिंदी की कोई सार्थक प्रगति व उन्नति तो नहीं दिखाई देती ।
कई आधुनिक विचार धारा व जीवनशैली के लोगों को तो यह हिन्दी विंदी पढ़ना पढ़ाना, या हिंदी में बोलने या कामकाज करने का विचार ही बकवास लगता है ।(मैं अहिंदी भाषी नहीं अपितु हिंदी भाषी भारतीयों की ही बात कर रहा हूँ ।) उनकी सोच में हमारे बच्चों की पढ़ाई लिखाई अंग्रेजी में होने, अंग्रेजी बोलचाल से उनका ज्ञान अंतर्राष्ट्रीय स्तर का, विशेष कर पाश्चात्य जगत के बराबरी का हो जाता है जिससे बच्चों के विदेश में पढ़ने जाने व विदेशी कंपनियों में रोजगार के अवसर बढ़ जाते हैं, अन्यथा तो हिंदी अथवा अन्य स्थानीय भाषा में पढ़लिख कर भी आदमी गँवार का गँवार ही रह जाता है, इस पढ़ाई का नौकरी व रोजी रोजगार में कोई लाभ नही होता ।परंतु हम यह भूल जाते हैं कि हमारी मातृभाषा हमारी नैसर्गिक ताकत व प्रतिभा होती है, वैज्ञानिक रूप से भी यह सिद्ध है कि दो वर्ष की उम्र होने तक ही बच्चे की आधी शब्दावली व सामान्य परिज्ञान विकसित हो जाता है अतः मातृभाषा स्वाभाविक रूप से हमारी आधार भूत ताकत व क्षमता है जिसे नकार कर अथवा इसकी उपेक्षा करके हम अपने स्वाभाविक ज्ञानार्जन व नैसर्गिक प्रतिभा के अनुसार व्यक्तित्व विकास से वंचित रह जाते हैं ।अततः हमारी यही कमजोरी सफल वैज्ञानिक, इंजिनियर,लेखक, व्यवसायी अथवा अन्य अनुसंधान क्षेत्र जिनमें नैसर्गिक प्रतिभा का विशेष महत्व होता है में पिछड़ेपन के परिणाम के रूप में दृष्टिगोचर होती है ।
मुझे हिंदी अथवा हमारी अन्य भारतीय भाषाओं के असली मित्र व सेवक तो कंप्यूटर सॉफ्टवेयर व मोबाइल फोन की विदेशी कंपनियां,जैसे माइक्रोसॉफ़्ट, गूगल, एप्पल, सैमसंग और नोकिया लगती हैं जिन्होंने कंप्यूटर व मोबाइल पर हिंदी व हमारी अन्य प्रमुख भारतीय भाषाओं में लिखने, टाइपिंग करने, पढ़ने ,ऑनलाइन शब्दावली की फ्री व बहुत आसान सुविधा उपलब्ध करायी है जिससे वर्तमान आधुनिक तकनीकी युग में हिंदी का हर प्रकार के कामकाज में सहूलियत के साथ उपयोग संभव है ।
हमारी हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं की गरिमा व मर्यादा की पुनर्स्थापना में मददगार ,इन सच्चे सेवकों को हिंदी दिवस पर शत शत नमन व इनका हार्दिक आभार ।
सर आपका विश्लेषण यथार्थ है और अक्षरशः ऐसा ही होता है....... वास्तविकता यही है सब खाना पूर्ति है क्योकि सब दुविधाग्रस्त है भले ही हिंदी से प्यार हो.......... सुन्दर
ReplyDeleteहै जिसने हमको जन्म दिया,हम आज उसे क्या कहते है ,
ReplyDeleteक्या यही हमारा राष्र्ट वाद ,जिसका पथ दर्शन करते है
हे राष्ट्र स्वामिनी निराश्रिता,परिभाषा इसकी मत बदलो
हिन्दी है भारत माँ की भाषा,हिंदी को हिंदी रहने दो .....
सुंदर आलेख ! बेहतरीन प्रस्तुति,
RECENT POST : बिखरे स्वर.
भाषा की ताकत व्यवसायी आसानी से और जल्द समझ लेता है, जैसे पर्यटन स्थलों के दुकानदार और रिक्शे वाले (जिन्हें अपना नाम भी लिखना मुश्किल हो) भी फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं.
ReplyDeleteगर्व और गर्व की अभिव्यक्ति, दोनों से ही गहराई पता चलती है।
ReplyDeleteजब तक हिन्दी में व्यावसायिकता नहीं आयेगी.. तब तक हिन्दी पिछड़ी ही रहेगी.. और व्यावसायिकता तभी आयेगी जब हम भारत में हर कार्य में हिन्दी को महत्ता देंगे.. बाहर के लोग अपने आप हिन्दी पर आयेंगे ।
ReplyDeleteसुन्दर आलेख।
ReplyDeleteआपके विचारों से पूरी तरह सहमत।
हमने २६ साल तक public sector में नौकरी की थी और किसी दिन हमारी संस्था में हिन्दी दिवस की रोचक कहानियाँ सुनाएंगे।
मेरी राय में, Bollywood ने हिन्दी की सरकार से ज्यादा सेवा की है।
कम्प्यूटर युग में Unicode का आगमन एक और महत्वपूर्ण आविष्कार है।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ