मन में ख्वाबों के दीप जला ,
मैं नियमित अर्घ्य दिया करता ।
कुछ कमल खिले कुछ जलकुंभी
कुछ कीचड़ में ,कुछ पानी में ।१।
मैं नियमित अर्घ्य दिया करता ।
कुछ कमल खिले कुछ जलकुंभी
कुछ कीचड़ में ,कुछ पानी में ।१।
मनभाव कई विकसित होते ,
फूलों के जैसे नवरंग लिये ।
कुछ खिलते सूरज उजियारे
कुछ रातों के अँधियारे में ।२।
फूलों के जैसे नवरंग लिये ।
कुछ खिलते सूरज उजियारे
कुछ रातों के अँधियारे में ।२।
यह चार पलों का जीवन था ,
कब गुजर गया यूँ मिला जुला।
दो पल काटे तनहाई संग,
दो कटे यार -रुसवाई में ।३।
कब गुजर गया यूँ मिला जुला।
दो पल काटे तनहाई संग,
दो कटे यार -रुसवाई में ।३।
कुछ पता नहीं, काबू भी क्या ?
अनजान किनारे और दरिया ।
कुछ तलक बहा मौजों की तलब,
कुछ माजी बनकर कस्ती में ।४।
अनजान किनारे और दरिया ।
कुछ तलक बहा मौजों की तलब,
कुछ माजी बनकर कस्ती में ।४।
ख्वाबों की भी तासीर अजूबी,
एतबार है इनका बेमानी ।
उड़ते हैं तो छूते अर्श ऊँचाई ,
गिरते तो औंधे नीची फर्शों में ।५।
एतबार है इनका बेमानी ।
उड़ते हैं तो छूते अर्श ऊँचाई ,
गिरते तो औंधे नीची फर्शों में ।५।
क्या साथ निभे हम दोनों का
क्या हो भी अपनी कहासुनी ?
मन उलझन में उसकी बस्ती ,
मैं अपने गीतों की गलियों में ।६।
क्या हो भी अपनी कहासुनी ?
मन उलझन में उसकी बस्ती ,
मैं अपने गीतों की गलियों में ।६।
कुछ रिश्ते जीवन में ऐसे ,
जैसे नींदो में सपने हों ।
जब तक बेहोशी, वे कायम ,
टूटें बिखरे जब होशों में ।७।
जैसे नींदो में सपने हों ।
जब तक बेहोशी, वे कायम ,
टूटें बिखरे जब होशों में ।७।
यह भी उसका अहसान रहा
जीवन सच अनुभव करा दिया ।
कि अपनो से नेह लगाकर
हम जीते कितने बेमानी में ! ८।
जीवन सच अनुभव करा दिया ।
कि अपनो से नेह लगाकर
हम जीते कितने बेमानी में ! ८।
अहा, मन है कि बहता जायेगा..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मनभावन प्रस्तुति ....
ReplyDeleteकटु सत्य लिखा है आपने
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