प्रबोध चंद्र डे यानि हमारे चहेते गायक मन्ना डे नहीं रहे, पिछले सप्ताह २४ अक्तूबर २०१३ को उनका बंगलौर के एक अस्पताल में हृदय गति रुकने से देहावसान हो गया ।वे पिछले कुछ अरसे से बीमार चल रहे थे,विशेष कर पिछले वर्ष मई में अपनी पत्नी सुलोचना कुमारन डे,जिनके साथ मन्ना डे जी ने लगभग साठ वर्ष तक सफल व सुखी दांपत्य जीवन बिताया, की कैंसर से हुई मृत्यु के पश्चात ही से वे बड़े उदास व ज्यादा बीमार रहने लगे थे, विगत जून माह से ही उनकी स्थिति चिंताजनक बनी हुई थी ।
मन्ना डे बंगाली थे परंतु उनकी पत्नी केरल से संबंध रखती थीं, व साठ वर्ष से अधिक का इन दोनों का दांपत्य जीवन प्रेम, जीवंतता व साहचर्य की सुंदरता का एक अनोखा व अनुकरणीय प्रतीक था ।सुलोचना जी मन्ना डे की सिर्फ जीवन साथी नहीं अपितु उनकी सबसे प्रिय मित्र व उनके सुंदर गाने की प्रेरणा भी थीं।
वैसे तो मन्ना डे जी की हिंदी फिल्मों में पार्श्वगायन की लंबी यात्रा उनकी लगभग तेईस वर्ष की युवावस्था में ही, सन् १९४२ में 'तमन्ना' फिल्म में अपने चाचा व अपनी संगीत शिक्षा के गुरु श्री प्रकाश चंद्र डे के संगीत निर्देशन में शुरू हो गई थी, परंतु उनका वास्तविक अभ्युदय व एक उत्कृष्ट गायक का स्थान व प्रसिद्धि सन् १९५० में 'मशाल ' फिल्म में उनके गाये बहुत हिट हुए गाने 'ऊपर गगन विशाल ' से मिली, जिसके संगीतकार सचिन देव बर्मन व गीतकार प्रदीप थे। उसके पश्चात तो उनका फिल्मों में लाजवाब गाने व संगीत और उनकी जबरदस्त ख्याति व सफलता और सन् १९५३ में उनकी पत्नी बनीं सुलोचना जी से उनका ताउम्र अटूट नाता बना रहा ।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि भारत की आजादी के बाद पचास के दशक से लेकर १९७५-७६ ,के लगभग ढाई दशकों का काल जिसे हिंदी फिल्म गीत व संगीत का स्वर्णिम काल भी माना जाता है , उसमें मन्ना डे जी का योगदान सर्वोपरि रहा ।एक से बढ़कर एक सुंदर व मनमोहक गाने जो गीत संगीत की दुनिया में सदैव अमर रहेंगे मन्ना डे जी द्वारा इस अवधि में अपने बेहतरीन व मस्त आवाज़ में गाये गये ।
स्वयं के संगीतबद्ध कई अति प्रसिद्ध हुये गानों के अतिरिक्त,उन्होंने हिंदी, बंगाली, मलयालम व कन्नड़ फिल्मों के लगभग सभी नामी गिरामी संगीत निर्देशकों के लिए अपनी लाजवाब व दिलकश आवाज़ में उन्होंने हजारों हजारों बेहतरीन व प्रसिद्ध गीत गाये ।उनके कार्य के स्तर व प्रसिद्धि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपने सक्रिय गायन काल,१९४२ से २००६ की अवधि में , तकरीबन चार हजार से अधिक गाने गाये और सौ से अधिक फिल्म निर्देशकों के साथ काम किया ।शुरुआत में ,पचास के दशक में सचिन दा, अनिल विश्वास, सी. रामचंद्रन, खेम चंद्र प्रकाश से लेकर साठ के दशक में सलिल चौधरी, नौशाद, रोशन और ओ पी नैय्यर तथा सत्तर के दशक में राहुल देव बर्मन,लक्ष्मी कांत प्यारे लाल, कल्याण जी आनंद जी जैसे सभी प्रसिद्ध संगीतकारों के वे सदैव पहली पसंद बने रहे व उनके दिये संगीत पर मन्ना डे जी ने बेहद खूबसूरत गाने गाये , जो एक से बढ़कर एक और सदाबहार हैं - फिल्म मशाल का 'ऊपर गगन विशाल ' , राजकपूर जी की फिल्मों के लाजवाब गाने - मुड़ मुड़ के ना देख (श्री ४२०),लागा चुनरी में दाग़ (दिल ही तो है ),ए भाई जरा देख के चलो (मेरा नाम जोकर ) जैसे कितने ही गाने जिनको बारबार सुनते भी कभी जी नहीं भरता ।
महान संगीतकारों के अतिरिक्त कई महान अभिनेताओं , जैसे राजकपूर,बलराज साहनी महमूद,अनूपकुमार ,राजेश खन्ना इत्यादि के लिये भी मन्ना डे अपने ऊपर पिक्चराइज होने वाले गाने के गायक के रूप में पहली पसंद होते थे ।
अपने बेहतरीन सोलो सांग्स के अलावा मन्ना डे अपने समय के बेहतरीन सहगायकों के साथ भी अनेकों खूबसूरत डुएट गाने भी गाये । फिल्म शोले का मुहम्मद रफी के साथ गाना 'ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे' एक सदाबहार और श्रोताओं की जुबान पर हमेशा रहने वाला गाना है ,इसी प्रकार फिल्म तीसरी कसम का 'चलत मुसाफ़िर मोह लिया', अथवा फिल्म पड़ोसन का किशोर कुमार के साथ गाया 'इक चतुर नार करके सिंगार' श्रोताओं के दिल व दिमाग दोनों को गुदगुदा जाते हैं ।
सहगायकों के अलावा अपने समय की सभी प्रसिद्ध गायिकायों जैसे लता जी, शमशाद बेगम, गीता दत्त, सुरैया, आशा भोसले ,सुमन कल्याणपुरी के साथ भी मन्ना डे जी ने बड़े ही लाजवाब गाने गाये हैं जिन्हें सुनते बरबस आपका भी साथ साथ गुनगुनाने का दिल करता है ।सुमन कल्याणपुरी उनकी पसंदीदा डुएट जोड़ी दार थीं व उनके साथ मन्ना डे जी ने चालीस से भी अधिक खूबसूरत डुएट गाने गाये, जिन्हें जितना भी सुनें,कभी जी नहीं भरता, और सुनने को जी करता है ।
मन्ना डे जी को अपने जीवन काल में अनेकों महत्वपूर्ण पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिसमें तीन बार बेस्ट प्लेबैक मेल सिंगर के लिए फिल्म फेयर अवार्ड, भारत सरकार द्वारा १९७१ में पद्मश्री, २००५ में पद्मभूषण व २००७ में दादा साहब फाल्के पुरस्कार सम्मिलित हैं ।
मन्ना डे न सिर्फ एक लाजवाब गायक, बल्कि वे एक लाजवाब इंसान भी थे, वे अपने संगीतकारों व सहगायकों के प्रति न सिर्फ व्यावसायिक सम्मान बल्कि उनके प्रति अपना व्यक्तिगत आदर व सम्मान रखते थे ।मुझे स्मरण आता है रेडियो विविध भारती पर उनका यदाकदा प्रस्तुत सेना के जवानों के लिए प्रसिद्ध जयमाला कार्यक्रम जिसमें मन्ना डे जी ने अपने विभिन्न संगीतकारों व सहगायकों के बारे में व उनके साथ अपने संबंध व अनुभव की विस्तार से चर्चा की है, उनकी बातों से यही पता चलता है कि मन्ना डे जी अपने संगीतकारों व साथी गायकों के प्रति बड़ा आदर का भाव व उनसे सदैव कुछ न कुछ नया सीखने को तत्पर रहते थे ।
मन्ना डे एक आदर्श गायक, अच्छे इंसान होने के साथ साथ एक आदर्श पति और पिता भी थे ।जैसा पहले लिखा है कि वे अपनी पत्नी सुलोचना जी के प्रति बेइंतहा प्रेम व सम्मान रखे ।मन्ना डे जी की दो बेटियाँ हैं, एक अमेरिका में अपने परिवार के साथ रहती हैं, व दूसरी बेटी बंगलौर में रहती है ।
मन्ना डे जी की पैदाइश कोलकाता की थी और अपनी कर्मभूमि होने के नाते अपनी जिंदगी का अधिकांश व सबसे खूबसूरत समय अपनी पत्नी सुलोचना जी के साथ मुंबई नगरी में बिताया परंतु पिछले कई वर्षों से अपनी पत्नी की बीमारी व बिगड़ते स्वास्थ्य के चलते अपनी बेटी के साथ बंगलौर में ही स्थाई तौर पर निवास करते थे, उनका बंगलौर में रहना निश्चय ही बंगलौर शहर व इस शहर के निवासियों हेतु एक गौरव का विषय रहा ।
यह जीवन व मनुष्य शरीर तो नश्वर है, परंतु हमारी इच्छाओं का भी कोई अंत नहीं ।अपनी विशेष इच्छा को यदि हम समय रहते पूरा नहीं करते तो निश्चय ही हमेशा के लिए चूक जाते हैं और फिर आजीवन अधूरी इच्छा लिए जीना अथवा इस जीवन से विदा होना पड़ता है ।मन्ना डे जी की बड़ी व अपने जीवन की अंतिम इच्छा थी अपनी पत्नी सुलोचना जी के लिए अपना गाया एक अलबम जारी करने का, परंतु अपने खराब स्वास्थ्य के चलते वह अपनी अंतिम इच्छा को अधूरी लिये ही इस जीवन व संसार से विदा हो गये । मेरी भी बहुत समय से मन में बड़ी इच्छा थी बंगलौर शहर में रहते मन्ना डे जी के दर्शन करने की, परंतु मैं बस सोचता ही रहा, कभी इस हेतु सार्थक प्रयास नहीं किया, इस प्रकार मेरी भी यह इच्छा हमेशा के लिए अधूरी रह गयी ।
भारत माँ व माँ सरस्वती के इस महान पुत्र को शतशत नमन व हार्दिक श्रद्धांजलि ।