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Sunday, October 27, 2013

सिरहाने बैठकर पैंताने की बात करने वालों के मिथ्याचार को समझें !


बड़ा ही अजीब लगता हैं जब सिरहाने बैठे लोग  पैंताने बैठे लोगों की बात करते हैं ।महात्मा गाँधी यदि  पैंताने बैठे लोगों की बात करते थे, तो वह यह बात पैंताने बैठकर ही  करते थे न कि सिरहाने बैठकर , उनके कथनी करनी, सिद्धांत व आचरण  में एकनिष्ठता थी।

कुछ लोग अपने नाम के साथ  गाँधी सरनेम लगाकर मात्र लफ्फेबाजी करके  महात्मा  गाँधी दिखने व बनने  का ढोंग करते हैं व गाँधी के नाम से देश को,विशेषकर गरीब तबके को, गुमराह करने की कोशिश करते हैं , उनके इस पाखंड व मिथ्याचार को देश व देश की जनता को भलीभाँति समझना चाहिए ।

यह ध्यान देने की बात है कि पैंताने बैठे व्यक्ति की कोई जाति या मजहब नहीं होता, उसकी तो बस एक ही जाति व एक ही धर्म है और वह है गरीबी का, लाचारी का और निरंतर करते जीवन  संघर्ष का ।महात्मा गाँधी इस सत्य व इसकी पीड़ा  को अंतर्मन व हृदय से समझते थे  इसी लिए वे  स्वयं  एक अति गरीब व साधारण व्यक्ति का जीवन व रहनसहन स्वेच्छा से अपनाकर स्वयं भी वैसा ही सरल व अति साधारण  जीवन  जीते थे । परंतु बड़ी  हैरानी व खेदजनक बात यह है कि आज सिरहाने बैठे लोग ही बड़ी चतुराई, कुटिलता व अपने भावनोत्तेजक शब्द जाल से पैंताने बैठे लोगों को बड़ी सहजता से जाति व मजहब में बाँटकर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने में सफल हो रहे  हैं, व आम व लाचार आदमी को अपने साथ हो रहे  इस छल व धोखा का अहसास भी नहीं हो पा रहा ।

मैं यह नहीं कहता कि सिरहाने बैठे लोगों को राजनीति करने  व राजनीति में भाग लेने का अधिकार व योग्यता नहीं, यह तो एक लोकतांत्रिक देश में  हर व्यक्ति, देश वासी का मौलिक व संवैधानिक अधिकार है, परंतु यहाँ मुद्दा है व्यक्ति के  कथनी करनी के विभेद का, उनके पाखंड का ।आप एकतरफ गोल्फ कोर्स में जाते हैं  , बस ब्रांडेड कपड़े जूते पहनते हैं, अपनी दिनचर्या की छोटी से बड़ी जरूरत व सामान की खरीददारी विदेश में करते हैं, अपनी अधिकृत या अनधिकृत  कमाई विदेशी स्विस बैंक की तिजोरियों में जमा करते  हैं, बड़ी बड़ी इंपोर्टेड विदेशी कार में घूमते हैं, इंपोर्टेड बाइक से अपनी गैंग के साथ हाईवे पर देर रात  हाईस्पीड रेस व स्टंटबाजी करते हैं,यह सब करना आपको अच्छा लगता है व आपका शौक है तो इन्हें  आप जरूर व बेशक करिये , यह आपकी मर्जी व आपका मुकद्दर है, इसमें कोई बुराई भी नहीं, जब तक कि आप देश के  कानून के अंतर्गत रहकर आचरण करते हैं, मगर फिर आपके मुँह से गरीब, गरीबी ,गरीबों की कहानी बड़ा पाखंडपूर्ण व मिथ्याचार लगता है ।आप जो जीवन जी रहे हैं, उसकी बात करिये न, अपने जीवन शैली व आपसे जाती तौर पर जुड़े ग्रुप व क्लास की बात करिये न! आप रईस  हैं, शौक मिजाज हैं,  आप रईसी ढाटबाट व विदेशी स्तर का जीवन जीते हैं तो आप इस जीवन शैली से जुड़ी बात करिये न!  यह गरीब व गरीबी की बात आपके मेनुबुक में कहाँ से शामिल हो गयी? अपनी जीवन शैली से विपरीत जीवन व उसके आदर्श बघारने का यह पाखंड क्यों? क्या यह हक आपको इसलिए मिल जाता है कि आपने अपने  नाम के आगे  गाँधी सरनेम,जो कि आपका असली नहीं बल्कि अपने स्वार्थ व सुविधा हेतु दूसरे से अपनाया हुआ है,  जोड़ रखा है? क्या यह आपका कोरा ढोंग व भारत की गरीब जनता के साथ धोखेबाजी नहीं है?

यहाँ कुछ बातें बहुत महत्वपूर्ण व गंभीर हैं जिसे हर भारतीय  को स्पष्ट व पूरी तरह समझ लेना बहुत आवश्यक है ,क्योंकि यहाँ राजनीति से जुड़े ऐसे प्रधान  व्यक्ति या व्यक्तियों  के चरित्र, आचरण, व कर्म की निष्ठा का प्रश्न है, जो कल देश की जनता द्वारा चुने जाकर, जनता के प्रधान प्रतिनिधि बनकर, देश व देश की जनता के भाग्यविधाता बनने वाले हैं ।इसलिए  क्या हर भारतीय को यह जानना व समझना जरूरी नहीं कि वे अपना देश व इसकी बागडोर किस प्रकार के चरित्र व आचरण वाले  लोगों के हाथ सौंपने जा रहे हैं, वे सत्य निष्ठ लोग हैं अथवा मिथ्याचारी, इन बातों को जान लेना  देश के हर नागरिक को न सिर्फ  आवश्यक बल्कि देश के प्रति महत्वपूर्ण कर्तव्य भी है ?

प्रथम बात तो यह कि महात्मा गांधी का गांधी नाम असली था, न कि किसी पहले से ही अति प्रसिद्ध अथवा महान व्यक्ति के नाम से अपनी सुविधा व स्वार्थ हेतु मात्र अपनाया गया कोई नकली नाम ।यदि देश गांधी नाम का सम्मान करता है व पूजता है तो यह महात्मा गांधी के स्वयं की महानता व देश के प्रति महान कर्तव्य व समर्पण के कारण है न कि किसी उधार में अपनाये गये किसी और के प्रसिद्ध नाम की आड़ में ।दूसरी बात यह कि महात्मा गांधी   यदि गरीब और गरीबी की बात करते थे तो इसमें पाखंड नहीं था, बल्कि  उनका स्वयं व अपने परिवार  का  रहनसहन, वेषभूषा, खानपान, आचरण सभी अति साधारण, एक आम व गरीब आदमी की ही तरह था, उनके कथनी व जीवन शैली में एकनिष्ठता थी।तीसरी बात यह कि महात्मा गांधी सिर्फ गरीब की ही नहीं हर व्यक्ति की समूचे देश, सभी जाति,सभी मजहब, सभी समुदाय की बात करते थे, वे सबको ही सद्चरित्र व सादगी पूर्वक रहने की सलाह देते थे ।चौथी और अंतिम बात मात्र गरीबों व गरीबी संबंधित बिल और एक्ट के पैरोकार बनने या इसका ढिंढोरा पीटने मात्र  से कोई गरीबों का मसीहा नहीं होता, मसीहा तो वह होता है जो गरीब के दर्द की अनुभूति व पीड़ा को स्वयं व स्वेच्छा से जीता हो, जैसे जीसस, मदर टेरेसा या महात्मा गांधी ।बड़ी हवेली में मखमल के आरामगद्दे पर लेटकर गरीब व गरीबी के प्रति आत्मीयता व हमदर्दी जताना कोई  सदाचार व मानवता  नहीं बल्कि यह  शुद्ध मिथ्याचार व घोर  पाखंड है ।

इन महत्वपूर्ण तथ्यों के मद्दनजर हर भारतीय को  सिरहाने बैठकर पैंताने की बात करने वालों के  मिथ्याचार को भलीभाँति समझने व तदनुरुप ही अपने विवेक द्वारा अपने  चुनाव के  सही  निर्णय लेने की आवश्यकता है ।

Tuesday, July 30, 2013

बेचारी गरीबी की जान के कितने दुश्मन !

उपेक्षित भारतीय दूतावास मास्को - भारतीय गरीबी या हमारी सब चलता है की प्रवृत्ति

म्रेरे एक मित्र हैं जो एक आधिकारिक दौरे पर हाल ही में मास्को की यात्रा पर गये थे। उनकी यात्रा बड़ी सुखद व सुंदर रही, उन्होंने वहाँ से कई सुंदर तस्वीरे भी साझा की जिन्हे देखकर मन आनंदित हुआ। परंतु मेरे मित्र को इस बात का बड़ा मलाल है कि मास्को में भारतीय दूतावास का रखरखाव कतई अच्छा नहीं है,लॉन में तितर बितर बढ़ी घास,चमकहीन व कहीं कहीं टूटी फर्सें, दूतावास का भवन बिना ठीक रखरखाव के बिल्कुल उजाड़ व उपेक्षित लगता है।उनको इस बात का बहुत दुःख लगा कि जहाँ विजया लक्ष्मी पंडित, धर , कौल जैसी महान व परम सत्ता परिवार के सदस्य व अति नजदीकी विभूतियाँ राजदूत पद को शुशोभित किया,उस भवन व गरिमामय केंद्र की ऐसी उपेक्षा की जा रही है। उनका यह दुख यह देखकर और भी  गहरा हो गया था कि वहीं पड़ोस के भवन, जिनमें फ्रांसीसी ,ईरानी दूतावास अवस्थित हैं, बड़े ही सलीके,शानदार , सुंदर व स्वच्छ रूप में मैंटेन हैं।

उनसे बातचीत में मैने अपना आश्चर्य व्यक्त करते उनसे कहा कि भला इसमें इतना दुख होने की क्या बात है,हम भारतीय तो अव्यस्था व अस्तव्यस्तता के लिये नामधारी हैं, इससे तो हमारी भारतीयता की पहचान ही विदेशों में अक्ष्क्षुण रही है, और इसमें हर्ज ही क्या है। किंतु मेरी बात पर उन्हें कोई संतोष  नहीं हुआ व उनका दुख कतई कम नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने और दुखी होते कहा कि सर, यही तो चुभता है कि आज भी, आजादी के 66 वर्षों के बाद भी , हमारा देश संसार में गरीब देश के रूप में जाना जाता है। मैंने उनको फिर आश्वस्त करना चाहा कि भला आप भारत और गरीबी की पहचान को क्यों खामखाह कोसते हो भाई। आखिर गरीबी तो भारत की विशिष्टता व खास पहचान पिछले सत्तर पचहत्तर साल की रही है। आखिर इसी गरीबी ने हमारे कितने ही महान भारतीयों के यशोगान व कीर्ति में कितना योगदान किया है, भला इसे आप कैसे नदरअंदाज कर सकते हैं।अरे गौर तो फरमाइये भाई साहब, अमार्त्य सेन नोबल पुरस्कार पा गये, सत्य जीत रे अपनी भारतीय गरीबी चित्रण करती फिल्मों से कितना नाम कमाये, अरुंधती रॉय इसी भारतीय गरीबी का वर्णन करते करते विश्वप्रसिद्थ लेखक व वक्ता बन गयीं, स्लमडॉग मिलिनेयर सुपर हिट रही , उसे ऑस्कर तक मिला, आखिर भारत विश्व भर में गरीब प्रोजेक्ट न होता तो इतना कुछ ये महोदय लोग हासिल कैसे कर पाते ।

मैंने उन्हे उलाहना देते कहा कि भाईसाहब अब क्या लीजिएगा,  इस बेचारी गरीबी की जान? वैसे भी हमारे नीति निर्धारक व हमारा योजना आयोग बेचारी गरीबी के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं, उन्होंने एक कलम घुमाई और १० करोड़ गरीब छलांग लगाकर रातों रात अमीर बन गए ।अब तो कई सांसद भी इस गरीबी के पीछे हाथ धोकर पड़ गये हैं ।अब १२ रुपये थाली भोजन उपलब्ध कराइयेगा तो गरीबी बेचारी कहाँ से जिंदा रहेगी ।ऊपर से सरकार फुड सिक्योरिटी बिल भी जल्द से जल्द लाने के फिराक में है, फिर तो रही सही गरीबी भी गायब।इस गरीब व लाचार गरीबी के पीछे सब हाथ धोकर पड़ गये हैं, और अब आप भी ।


अंत में मैं उनको सांत्वना व उलाहना सा देते यह भी कहा कि भला हमारी भारत सरकार ने भी इन महान विभूतियों द्वारा भारत की गरीबी के प्रचार प्रसार के महान कार्य के लिये एक बाबू मोसाय को राष्ट्रीय सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार भारतरत्न से नवाजा,और एक आप हैं इस गरीबी से भारत की इमेज को धक्का लगने की बात करते हैं।मैं तो उनको राय दिया कि इस बात पर दुखी मत होइये बल्कि गर्व कीजिए कि आप इतने महान व गौरवशाली गरीब देश के हँसते-मुस्कराते जिंदा नागरिक हैं।