उपेक्षित भारतीय दूतावास मास्को - भारतीय गरीबी या हमारी सब चलता है की प्रवृत्ति |
म्रेरे एक मित्र हैं जो
एक आधिकारिक दौरे पर हाल ही में मास्को की यात्रा पर गये थे। उनकी यात्रा बड़ी
सुखद व सुंदर रही, उन्होंने वहाँ से कई सुंदर तस्वीरे भी साझा की जिन्हे देखकर मन
आनंदित हुआ। परंतु मेरे मित्र को इस बात का बड़ा मलाल है कि मास्को में भारतीय
दूतावास का रखरखाव कतई अच्छा नहीं है,लॉन में तितर बितर बढ़ी घास,चमकहीन व कहीं
कहीं टूटी फर्सें, दूतावास का भवन बिना ठीक रखरखाव के बिल्कुल उजाड़ व उपेक्षित
लगता है।उनको इस बात का बहुत दुःख लगा कि जहाँ विजया लक्ष्मी पंडित, धर , कौल जैसी
महान व परम सत्ता परिवार के सदस्य व अति नजदीकी विभूतियाँ राजदूत पद को शुशोभित
किया,उस भवन व गरिमामय केंद्र की ऐसी उपेक्षा की जा रही है। उनका यह दुख यह देखकर और
भी गहरा हो गया था कि वहीं पड़ोस के भवन,
जिनमें फ्रांसीसी ,ईरानी दूतावास अवस्थित हैं, बड़े ही सलीके,शानदार , सुंदर व
स्वच्छ रूप में मैंटेन हैं।
उनसे बातचीत में मैने
अपना आश्चर्य व्यक्त करते उनसे कहा कि भला इसमें इतना दुख होने की क्या बात है,हम
भारतीय तो अव्यस्था व अस्तव्यस्तता के लिये नामधारी हैं, इससे तो हमारी भारतीयता
की पहचान ही विदेशों में अक्ष्क्षुण रही है, और इसमें हर्ज ही क्या है। किंतु मेरी
बात पर उन्हें कोई संतोष नहीं हुआ व उनका
दुख कतई कम नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने और दुखी होते कहा कि सर, यही तो चुभता है कि
आज भी, आजादी के 66 वर्षों के बाद भी , हमारा देश संसार में गरीब देश के रूप में
जाना जाता है। मैंने उनको फिर आश्वस्त करना चाहा कि भला आप भारत और गरीबी की पहचान
को क्यों खामखाह कोसते हो भाई। आखिर गरीबी तो भारत की विशिष्टता व खास पहचान पिछले
सत्तर पचहत्तर साल की रही है। आखिर इसी गरीबी ने हमारे कितने ही महान भारतीयों के
यशोगान व कीर्ति में कितना योगदान किया है, भला इसे आप कैसे नदरअंदाज कर सकते
हैं।अरे गौर तो फरमाइये भाई साहब, अमार्त्य सेन नोबल पुरस्कार पा गये, सत्य जीत रे अपनी भारतीय गरीबी चित्रण
करती फिल्मों से कितना नाम कमाये, अरुंधती रॉय
इसी भारतीय गरीबी का वर्णन करते करते विश्वप्रसिद्थ लेखक व वक्ता बन गयीं, स्लमडॉग मिलिनेयर सुपर
हिट रही , उसे ऑस्कर तक मिला, आखिर भारत विश्व भर में गरीब प्रोजेक्ट न होता तो इतना
कुछ ये महोदय लोग हासिल कैसे कर पाते ।
मैंने उन्हे उलाहना देते
कहा कि भाईसाहब अब क्या लीजिएगा, इस बेचारी गरीबी की जान? वैसे भी हमारे नीति निर्धारक व हमारा
योजना आयोग बेचारी गरीबी के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं, उन्होंने एक कलम घुमाई
और १० करोड़ गरीब छलांग लगाकर रातों रात अमीर बन गए ।अब तो कई सांसद भी इस गरीबी
के पीछे हाथ धोकर पड़ गये हैं ।अब १२ रुपये थाली भोजन उपलब्ध कराइयेगा तो गरीबी
बेचारी कहाँ से जिंदा रहेगी ।ऊपर से सरकार फुड सिक्योरिटी बिल भी जल्द से जल्द
लाने के फिराक में है, फिर तो रही
सही गरीबी भी गायब।इस गरीब व लाचार गरीबी के पीछे सब हाथ धोकर पड़ गये हैं, और अब आप भी ।
अंत में मैं उनको सांत्वना
व उलाहना सा देते यह भी कहा कि भला हमारी भारत सरकार ने भी इन महान विभूतियों
द्वारा भारत की गरीबी के प्रचार प्रसार के महान कार्य के लिये एक बाबू मोसाय को
राष्ट्रीय सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार भारतरत्न से नवाजा,और एक आप हैं इस गरीबी से भारत
की इमेज को धक्का लगने की बात करते हैं।मैं तो उनको राय दिया कि इस बात पर दुखी मत
होइये बल्कि गर्व कीजिए कि आप इतने महान व गौरवशाली गरीब देश के हँसते-मुस्कराते
जिंदा नागरिक हैं।
सुंदर कटाक्ष।
ReplyDeleteबहुत सटीक.
ReplyDeleteरामराम.
लोगों ने हमारी अस्तव्यतता में रुचि दिखायी और हमने उसे अपना गुण मानकर उसे पल्लवित करना प्रारम्भ कर दिया। दुबेजी का अवलोकन रोचक व सटीक है।
ReplyDeleteLiked it.
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