दिन छलिया है कब तक इसका साथ रहेगा बन आलम।
कुछ उगने में यह खो जाता, बीते कुछ यह ढलने में ।1।
रात बेवफा साथी कब तक, ना जाने कब होती ओझल,
कुछ कटती सपनों के आलम, कुछ करवट कई बदलने में ।2।
ताने बाने ऐसे बिखरे, लगे जिंदगी एक कहानी ।
कुछ कट जाती कहने में और कुछ कट जाती सुनने में ।3।
मेरी किस्मत मुझे सुनी कब, करती मुझसे आँख मिचौली ।
कभी पलक हाथों से ढकती, खुले आँख फिर पल भर में ।4।
इसको भला समझ क्या पाता , जीवन पूरा है घनचक्कर।
केंद्र विंदु में है कुछ पैठा ,कुछ वृत्तों के घेरों में ।5।
नाटक दृश्य बदलते रहते,पात्र बने हम अभिनय करते ।
समय मूक दर्शक बन देखे, हम हँसने में रोने में ।6।
प्रश्न यही है, जीवन कैसा, कैसे समय बितायें हम,
ReplyDeleteजुट जायें या रुक जायें हम, किसके हित सुर गायें हम?
रात बेवफा साथी कब तक, ना जाने कब होती ओझल,
ReplyDeleteकुछ कटती सपनों के आलम, कुछ करवट कई बदलने में ।2।
बहुत सुंदर, सभी शेर लाजवाब.
रामराम.
रात बेवफा साथी कब तक, ना जाने कब होती ओझल,
ReplyDeleteकुछ कटती सपनों के आलम, कुछ करवट कई बदलने में ।2।
ताने बाने ऐसे बिखरे, लगे जिंदगी एक कहानी ।
कुछ कट जाती कहने में और कुछ कट जाती सुनने में ।3।
वह ......बहुत सुन्दर सर ........