Wednesday, July 31, 2013

क्या पुलिस व प्रशासन के लिये धर्मनिरपेक्षता का मायने यही है ?

सत्यमेव जयते ?
क्या हमारे संविधान- शिल्पियों ने  इसके धर्मनिरपेक्ष स्वरूप  को वर्तमान विभत्सता हेतु ही गढ़ा था ?


लोकतंत्र व धर्मनिरपेक्षता के प्रति सामान्य रूप से आस्थावान भारतीय बहुसंख्यक वर्ग की हृदय, आत्मा व सहनशीलता को झँकझोरती व चुनौती देती यह दो दिनों के अंदर हुईं देश के अंदर दो दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं -

1.दिल्ली में एक किशोर युवा गौरव पांडेय को मोटरसाइकल स्टंटबाजी के गुनाह में पुलिस उसे निर्दयता व बेरहमी से सरेआम गोलियों से भून देती है, जबकि वही पुलिस एक खतरनाक आतंकवादी को भी उसके किसी धर्म विशेष से जुड़े होने के नाते उसे पकड़ने या उसके विरुद्ध कार्यवाही करने में हिचकिचाती और हीलाहवाली करती है ।

2.
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री एक युवा व कर्मठ आइ ए यस महिला अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल को इसलिए निलंबित करते हैं कि उसने अपनी ड्यूटी ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठा से करते एक विशेष समुदाय द्वारा सार्वजनिक सरकारी भूमि पर अवैध रूप से निर्मित पूजा भवन को तुड़वा दिया, जबकि उन्हीं मुख्य मंत्री महोदय की अपनी सरकार के ही एक मंत्री जो एक विशेष समुदाय से ताल्लुकात रखते हैं खुलेआम धर्म के नाम पर देश द्रोह तक कर देने की चुनौती देते हैं उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही तो दूर उन्हें ऐसा न करने का निर्देश या औपचारिक हिदायत तक नहीं देते। 

हमारे संविधान ने हमारे देश को धर्म निरपेक्ष रखा है ताकि सभी धर्म, बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक, बराबर अधिकार व आजादी से रहें किंतु यह घटनाएं भारतीय बहुसंख्यक वर्ग की धर्म निरपेक्षता में उनकी आस्था को झँकझोर देने वाली हैं ।

यह धर्म निरपेक्षता है या धर्म भेदभाव पूर्णता , जबकि कानून व न्याय की शपथ लेने वाले व महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के स्थान पर तैनात लोग व संस्था ही धर्मविशेष के आधार पर सही गलत का फैसला और सजा निर्धारित कर रहे हैं ?

बहुसंख्यक वर्ग के विरुद्ध सत्ता का इतना दुरुपयोग व भेद भाव का आचरण , विशेष कर न्याय व कानून के मामलों में, तो शायद मुगल व ब्रिटिश सल्तनत में भी नहीं हुआ था जबकि सत्तासीन विदेशी थे और वे बहुसंख्यक वर्ग के धर्म से गैर व इनके विरोधी थे।

ऐसा प्रतीत होता है कि देश के वर्तमान सत्तालोलुप व स्वार्थी राजनीतिक वातावरण में हमारा स्वयं अपने देश व मातृभूमि में ही अपना जीवन व आस्था अब सुरक्षित व सुनिश्चित नहीं है ।

9 comments:

  1. मन में किसने क्या चलता, अब तो ईश्वर नहीं जानता,
    ईश्वर से ही राजनीति का खेल चल रहा, देश मेरा यह।

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  2. हमारा उद्देश्‍य केवल मात्र येन-केन-प्रकारेण सत्ता पर काबिज होना है। न्‍याय क्‍या होता है, इस बात की हम परवाह ही नहीं करते। दल विशेषों ने अपने वोट पक्‍के कर लिए हैं, और वे इसी आधार पर सत्ता पर काबिज जो जाते हैं। शिक्षित समाज अपनी ही दुर्दशा होते देख भी चुप है।

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    1. जी, परंतु जहाँ स्वार्थ व सुविधावाद ही जीवन की प्रथमिकता है, वहाँ मात्र मात्र शिक्षित होने से समस्या का निदान नहीं होता ।हमारी पुलिस व प्रशासन में भी तो उच्च कोटि का शिक्षित वर्ग ही तो नियोजित है ।

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    2. जी, परंतु जहाँ स्वार्थ व सुविधावाद ही जीवन की प्रथमिकता है, वहाँ मात्र मात्र शिक्षित होने से समस्या का निदान नहीं होता ।हमारी पुलिस व प्रशासन में भी तो उच्च कोटि का शिक्षित वर्ग ही तो नियोजित है ।

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  3. यही उदासीनता एक दिन ले डूबेगी. बहुत ही सशक्त आलेख.

    रामराम.

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  4. I admire people like Durga and Khemka. And what about senior officers who issued suspension order for a conscientious Officer. They should be condemned within officers community for not discharging their duties. Better is expected from officers than politicians.

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  5. I admire people like Durga and Khemka. And what about senior officers who issued suspension order for a conscientious Officer. They should be condemned within officers community for not discharging their duties. Better is expected from officers than politicians.

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  6. अगर सारे अधिकारी ईमानदार हो जायें और अपने कर्त्तव्यों का पालन करने लगें तो नेताओं की फ़िर बिसात ही कहाँ..

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