मस्तिष्क का जटिल सर्किट - इसकी अनावश्यक ट्रिपिंग से बचें |
कल रात तकरीबन तीन बजे बिस्तर में पत्नी
जी के सुबकने जैसी आहट से
अचानक मेरी
नींद खुली ।वैसे तो उनकी पिछले साल की हुई सर्जरी के
बाद से ही बाँह और पीठ के दर्द,कभी कभी तो असहनीय पीड़ा, से
वे रात में ठीक से सो नहीं पातीं और फिर देर रात तक शरीर में पीड़ा व अकेले जगने
की निराशा में दुखी मन से प्रायः
रोने लगती हैं ।उनकी परेशानी की आहट से प्रायः मेरी
भी नींद खुल जाती है, फिर मैं उन्हें समझाने, आश्वस्त
करने व उनका मनोबल बढ़ाने का प्रयास करता हूँ ताकि उन्हें कुछ मानसिक सुकून मिले
और नींद आ जाये ।
इस सिलसिले में मेरा यह अनुभव रहा है कि बीमार
व दर्द से परेशान
व्यक्ति को ज्यादा समझाना व सांत्वना देना भी कई बार
मदद करने के विपरीत उल्टा चिड़चिड़ापन क्रोध व झुँझलाहट उत्पन्न करता है ।उनको
समझाने, आश्वासन देने में कभी कभी मेरी कही किसी बात से वे
आराम और राहत पाने
के बजाय और चिढ़ और दुखी हो जाती हैं । ऐसी
परिस्थिति में मैं भी भ्रमित और किंकर्तव्यविमूढ सा हो जाता हूँ ,और कई बार
मैं भी अकस्मात झुँझला उठता हूँ तो बात बनने के बजाय और बिगड़ जाती है ।
मेरी नींद खुलने पर पाया कि वे बहुत दुखी हैं व रो
रही हैं ।मैं भी व्यग्रता पूर्वक उनके दुखी होने व रोने का
कारण जानना चाहा कि कहीं बाहों व
पीठ में ज्यादा दर्द होने अथवा किसी अन्य
कारण से वे इतना परेशान व दुखी हैं ।कई बार
पूछने वह अपना दुख व नाराजगी
जतायीं कि रात में डिनर के बाद उनका मुझसे
पूछने पर कि सुबह ऑफिस मुझे कितने बजे जाना है मैने उनके प्रश्न की उपेक्षा करते
हुये कोई उत्तर नहीं दिया , इस बात से वे बहुत दुखी हैं ।
उनकी यह
शिकायत और उनके दुखी होने का कारण मुझे इतना बेतुका और बचकाना लगा कि मैं उनकी
सारी परेशानी, तकलीफ, दर्द को भूलते उल्टे स्वयं ही झुँझला उठा कि उनका यह
क्या बचपना और बेबकूफी है ।नतीजतन उनको मेरी
बातों से किसी प्रकार का आराम और शुकून मिलने के
विपरीत उनका दुख और मन की पीड़ा और बढ़ गयीं ।
दरअसल दिन में
बहुत ज्यादा भाग दौड़, मंत्री जी
के दौरे व उद्घाटन
को लेकर तैयारी के सिलसिले में झिकझिक के चक्कर में
शाम को देर दस बजे घर वापस आने और फिर भोजन
के पश्चात बस बिस्तर दिख रहा था और मुझे ध्यान भी
नहीं कि पत्नी जी ने मुझसे कब और क्या
सुबह के प्रोग्राम के बारे में पूछा? किंतु उनको
मुझसे अपने प्रश्न का
उत्तर न पाकर अपनी उपेक्षा का अनुभव हुआ और पहले से
ही वे बीमार
और शारीरिक रूप से
परेशान उनका मानसिक दुख और भी बढ़ गया ।
खैर फौरन ही हम दोनों को एक दूसरे के प्रति समवेदना
का अहसास हुआ और बिना बात
को और बढ़ाये हम दोनों शीघ्र शांत हो गये, वे सो गयीं
जिससे मैं भी आश्वस्त हुआ ।फिर शांत मस्तिष्क से विचार करते मेरे मन में यह चिंतन जागृत हुआ कि आखिर क्या कारण है कि
सामान्य तौर से जीवन के सुख-दुख, उतार-चढ़ाव,सहूलियत-परेशानियों के बीच हम धैर्य व
विवेक रखते संतुलन व शांति बनाकर चलते हैं परंतु कभी-कभार हम छोटी-मोटी बात पर ही अपना
धीरज खोते, झुँझलाते, परेशान अथवा दुखी हो जाते हैं ।आखिर यह कभी-कभार हमारा
अंतर्निहित विवेक व धीरज कहाँ कमजोर और विलुप्त हो जाता है कि हम इन दुख-विषाद के
चक्रवातों में अनावश्यक उलझ जाते हैं?
देखें तो दिमाग जो अपने आप में एक जटिल तंत्र व प्रक्रिया होता
है,वह एक विश्वसनीय विद्युत सर्किट की भाँति समुचित व लगातार कार्य करता रहता है,
किंतु किसी अकस्मात स्पाइक अथवा इम्पल्स के कारण जैसे विद्युत सर्किट ट्रिप कर
जाता है उसी भाँति हमारा दिमाग का सर्किट ब्रेकर भी अचानक किसी छोटी सी बात पर
ट्रिप हो जाता है । प्रश्न तो यही है कि क्यों
होता है दिमाग़ का सर्किट ब्रेकर ट्रिप ?
वे शीघ्र पूरी तरह स्वस्थ हो जायं अभी तो बस यही शुभेच्छा है !
ReplyDeleteसर्किट ब्रेकर तो लगते रहेंगे शायद मन में उपजी खीज के कारण, पर पूर्णरूपेण स्वस्थ्य होना अधिक आवश्यक है. इश्वर से यही प्रार्थना है.
ReplyDeleteपता ही नहीं चलता है कि कौन सा विचार कितना उपद्रव मचाने की सामर्थ्य रखता है, मन की कार्यशैली सच में बड़ी विचित्र है। आपको तो टाइम बता कर ही सोना था! प्रायश्चित करें, अतिशीघ्र।
ReplyDeleteअक्सर ऐसा होता है कि छोटी सी बात बहुत बड़ा तूफ़ान खड़ा कर देती है ।
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