जैसे ही हमारा हवाई जहाज बंगलौर हवाई अड्डे की धरती को छोड़ आसमान की ऊँचाई हासिल करता बादलों के बीच पहुँचा, मेरी पत्नी जी ,जो खिड़की के बाहर के दृश्य को निहारने में खोई थीं जबकि मैं अखबार पढ़ने में मशगूल था, मेरे हाथ से अखबार को परे हटाते खिड़की से बाहर के दृश्य को देखने हेतु उत्प्रेरित किया ।
जैसे ही मेरी दृष्टि खिड़की के शीशे से बाहर गयी, वह दृश्य अलौकिक था, सामने फैला सफेद रूई का विस्तृत पटल, उसपर उभरी व गतिमान विभिन्न आकृतियां, कहीं पशुओं का झुंड, कुछ शांत से घास चरते से, कुछ आपस में रगड़ते,भिड़ते,केलि,द्वंद्व,विनोद करते, सींग और माथा लड़ाते, अपने थुथुन लड़ाते, सूँघते से, कहीं मदमस्त गजराजों का झुंड जंगल को रौंदता तेज़ी से आगे बढ़ता सा, कहीं अपने साम्राज्य पर आधिपत्य की हुँकार देता सिंह सा स्वरूप ,कहीं सूर्य रश्मियों में दमकता सप्तअश्वों से जुता व तेज भागता रजत रथ,कहीं मानसरोवर जैसे विस्तृत नील स्वच्छ जलराशि, उनमें तैरते मँडराते से धवल राजहंसों के समूह, इस प्रकार भाँति भाँति के अद्भुत दृश्य ।
इसी बीच इस दृश्य को निहारते पत्नी जी की यह प्रतिकृया सुनाई दी कि बादलों की भी अपनी दुनिया है ।जी यही यथार्थ इस समय साकार व सामने दिख रहा था, हमारी धरती की दुनिया की ही तरह, बल्कि इससे भी ज्यादा अद्भुत और दिव्य है यह बादलों की दुनिया।धरती पर फैले विभिन्न प्राकृतिक रचना और विस्तार नदी, झील, झरने, पहाड़, हिमशिखर, वन, पशु, पक्षी,सड़क,रास्ते के सदृश बादलों के इस लोक में विभिन्न कृतियाँ वर्तमान हैं, विस्तृत धवल हिमशिखर, नदी, घाटी, पहाड़, झरने, नील मानसरोवर सदृश विस्तृत झीलें, जल सरोवर, पशु पक्षियों का स्वच्छंद विचरण व आनंदपूर्ण साहचर्य सब कुछ वर्तमान है इन बादलों के लोक में ।
इन बादलों के लोक में के दृश्यावलोकन में खोया मेरा ध्यान विमान पायलट के इस सुरक्षा संबंधी उद्घोषणा से भंग हुआ कि विमान शीघ्र ही दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरने वाला है।तब तक बादलों का लोक भी धीरे धीरे विलीन हो रहा था और अब उसके स्थान पर दृष्टिगोचर होने लगा था धरती का स्वरूप, मटमैले कंक्रीट के जंगल सदृश मकान व फ्लैट्स की तितर-बितर कतारें, अजगर जैसी लेटी सड़कें, व उनपर गोजर सदृश गतिमान वाहनों के झुंड, फिर से वापस हम लौट आये थे धरातल और इसके वास्तविक दृश्य पर।
बादलों के लोक का वह अद्भुत दृश्य आँखों से तो ओझल हो गया परंतु मानस पटल पर उस चलचित्र के दृश्य बरबस ताजा व गतिमान हैं ।
बादलों की अपनी बहुत सुंदर दुनिया होती है,,,
ReplyDeleteRECENT POST : जिन्दगी.
वायुयान से बादलों के दृश्य कल्पनाशीलता को कुरेदते हैं!
ReplyDeleteमन के आकाश पर तिरते बादल.
ReplyDelete" मेघदूत " में कालिदास ने बादल को नितान्त क़रीब से देखा है और उसे अपना सखा बनाकर अन्तर्मन की कोमल भावनाओं को भी न सिर्फ उसके साथ साझा किया है अपितु अपनी प्रेयसी का संदेश-वाहक भी उसे ही बनाया है । सुन्दर सामयिक सृजन ।
ReplyDeleteआप बादलों के भी ऊपर, यात्रा सकुशल रहे।
ReplyDeleteबादलों की अपनी अनोखी दुनिया होती है..
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