पुनः एक वहसियाना,पाशविक व हमारे देश में आम
आदमी,विशेषकर नारी, की
स्वतंत्रता व उसकी अस्मिता,मानमर्यादा पर, संविधान अंतर्गत आम नागरिक को प्रदत्त सभी मौलिक अधिकारों व
राज्यप्रशासन की कानून और शासनव्यवस्था की धज्जी उड़ाते, एक
हिंसक प्रहार व इसका क्रूर हनन करती,मानवता को लज्जित
करती शर्मनाक घटना ।
मुंबई में दो दिन पूर्व घटित , एक युवा फोटो जर्नेलिस्ट का सुनसान
जगह पर हिंसक दरिंदों द्वारा वहसियाना व पाशविक तरीके से बलात्कार व हिंसा की घटना , उसी प्रकार दिल को दहलाने वाली घटना
है, जैसी घटना कुछ माह
पूर्व दिल्ली में हुई थी जिसमें
वहसी दरिंदों के हिंसा व बलात्कार की शिकार युवती दामिनी को अपने जीवन से ही हाथ
धोना पड़ा।
ऐसी घटनाओं के पश्चात तो सरकार,प्रशासन व सुरक्षा तंत्र व
कानून व्यवस्था से आम नागरिक को अपने नागरिक अधिकार व सुरक्षा के प्रति किसी
प्रकार के आश्वासन से विश्वास ही उठ जाता है, लगता ही
नहीं कि हम किसी सभ्य व कानून संविधान पालित देश राज्य में रह रहे हैं, गोया यहाँ बस जंगल राज का बोलबाला है,हमारे
चारों ओर हिंसक व वहसी जानवर स्वच्छंद घूम रहे हैं, और
जरा सा भी असावधान हुए कि ये आक्रमण कर हमें अपना शिकार बना सकते हैं ।
ऐसा नहीं कि समाज में पाशविक
प्रवृत्ति के लोगों की कभी भी, किसी भी काल में , एकदम अनुपस्थिति रही हो,
सर्वकाल क्या सतयुग क्या कलयुग , वे
सदैव कमोवेस मौजूद रहे हैं, परंतु एक सभ्य समाज में उनकी
सकृयता दबी और नियंत्रित होती है, अपराध व अराजक घटना होती
भी है तो अपवाद स्वरूप व यदाकदा , उन्हें राज्य,समाज
व कानून का भय होता है जिससे वे अराजकता फैलाने व अपराध करने सौ बार डरते हैं,
और यदि उन्होंने कोई दुस्साहस किया भी तो राज्य व कानून उन्हें
कठोर दंड देकर उनमें भय और अंकुश रखता है ।
आज भी विश्व के किसी भी सभ्य व विकसित
देश का उदाहरण लें तो वहां दुराचारियों का दुस्साहस,और इस प्रकार की अराजक घटना यदा कदा ही होती
है,और यदि हुई भी तो सरकार व कानून इसपर कड़ी कार्यवाही
करते अपराधियों को ऐसा कठोर दंड देता है कि दुराचारियों के हौसले पस्त रहें और
दुबारा ऐसी दुर्घटना न होने पाये ।
इसके विपरीत हमारे देश में ऐसे दुराचार करने वाले
अपराधियों व दुराचारियों के विरुद्ध राज्य व कानून कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं
करता, सारी राज्य
व्यवस्था स्वयं अराजक व्यवहार-ग्रसित व अस्तव्यस्त पड़ी है, यहाँ तक कि अपराधियों व
दुराचारियों का ही सरकार, प्रशासन व कानून, न्याय व्यवस्था में खुले आम हस्तक्षेप व बोलबाला है। जिन दुराचारियों को बेड़ियां पहनाकर
जेल के शिकंजों के पीछे होना चाहिए, वही उल्टे हमारे संविधान के नियंता, विधान
निर्माता और कानून के रक्षक कहलाते हमारे सरकार बने बैठे हैं ।वे स्वच्छंद बिना
रोकटोक के सारे दुराचार स्वयं कर रहे हैं व अन्य दुराचारियों को भी प्रश्रय देते
हैं ।आज जघन्य से जघन्य अपराधी व दुराचारी को अंदर से पूरा विश्वास और बल होता है
कि वह चाहे जो भी दुराचार, अपराध, हिंसा करे, उसको कोई न कोई राजनैतिक अथवा
प्रशासनिक आका व संरक्षक मिल ही जायेगा, जो उसे किसी भी
प्रकार की सजा अथवा दंड से बचा ही लेगा ।
यह राजनेता इतने धूर्त हैं कि जनता की आँख में धूल झोंकने के लिये देश के संविधान के मंदिर में बैठकर लच्छेदार व भारीभरकम कानून बनाते हैं, जैसा कि दिखावे के लिए दिल्ली में दामिनी कांड के बाद इन्होंने बलात्कार के विरुद्ध नये कानून का झुनझुना जनता को दिखाकर किया था, फिर जब उसी कानून के तहत किसी अपराधी को सजा देने की बारी आती है, तो यही राजनेता जाति, धर्म व समुदाय का वितंडा फैला कर इन्हीं जघन्य अपराधियों की पैरोकारी करते व उन्हें अपना शरणागत बनाते उनको किसी प्रकार की कानूनी कार्यवाही और सजा से बचा लेते हैं और इस प्रकार से राजनेताओं द्वारा जघन्य अपराधियों को अभयदान मिलता है ।
यह राजनेता इतने धूर्त हैं कि जनता की आँख में धूल झोंकने के लिये देश के संविधान के मंदिर में बैठकर लच्छेदार व भारीभरकम कानून बनाते हैं, जैसा कि दिखावे के लिए दिल्ली में दामिनी कांड के बाद इन्होंने बलात्कार के विरुद्ध नये कानून का झुनझुना जनता को दिखाकर किया था, फिर जब उसी कानून के तहत किसी अपराधी को सजा देने की बारी आती है, तो यही राजनेता जाति, धर्म व समुदाय का वितंडा फैला कर इन्हीं जघन्य अपराधियों की पैरोकारी करते व उन्हें अपना शरणागत बनाते उनको किसी प्रकार की कानूनी कार्यवाही और सजा से बचा लेते हैं और इस प्रकार से राजनेताओं द्वारा जघन्य अपराधियों को अभयदान मिलता है ।
अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने
एक ऐतिहासिक निर्णय में इन धूर्त राजनेताओं की मनमानी व इनकी अराजकता पर अंकुश
लगाने हेतु अपराधियों व कानून की दृष्टि में दोषी व्यक्ति को चुनाव में लड़ने से प्रतिबंधित करने का आदेश दे
दिया जो निश्चय ही अपराधियों का मनोबल तोड़ने व उनपर अंकुश रखने में अति कारगर
सिद्ध होता , तो सभी पार्टियों के नेता , जो जनता को दिखाने
के लिए तो आपस में लड़ने का स्वांग करते हैं, एकजुट होकर
सुप्रीम कोर्ट के इस महत्वपूर्ण निर्णय को संसद में प्रस्ताव लाकर पलट दिये, और इस प्रकार अपने जैसे ही
अन्य व भाईबन्धु शातिर अपराधियों व दुराचारियों हेतु संसद व विधायिका का दरवाजा
निष्कंटक बना दिया है ।
हाय रे देश का दुर्भाग्य कि आज चोर ही
कोतवाल बने बैठे हैं, अपराधी ही न्याय करते और उचित-अनुचित का फैसला सुना रहे हैं ।आश्चर्य व दुख
तो यह होता है कि इनमें जो यदा कदा अच्छे व विचारशील नेता हैं भी , कम से कम वे आततायी और अपराधी
तो नहीं है, तो वे भी
सत्ता लोभ व अपनी कुर्सी बचाये रखने के चक्कर में शातिर व अपराधी राजनेताओं के गुट
के दुष्चक्र व दबाव में फँसकर जनहित के प्रति आँख मूंदकर मूकदर्शक बने उन्हें अपनी
मनमानी करने दे रहे हैं ।
ऐसे चहुँओर असुरक्षित व अराजक परिवेश, जहाँ दिन दहाड़े आमआदमी की बहू बेटियों का जीवन व आबरू खतरे में दिखती है, उसके मन में घोर निराशा व भय जगती है,देश में व्याप्त चारों ओर भ्रष्टाचार व तिकड़म बाजी के कारण उसके मन में पुलिस व न्याय व्यवस्था से भी कोई सुरक्षा व न्याय की उम्मीद नहीं दिखती।
ऐसे चहुँओर असुरक्षित व अराजक परिवेश, जहाँ दिन दहाड़े आमआदमी की बहू बेटियों का जीवन व आबरू खतरे में दिखती है, उसके मन में घोर निराशा व भय जगती है,देश में व्याप्त चारों ओर भ्रष्टाचार व तिकड़म बाजी के कारण उसके मन में पुलिस व न्याय व्यवस्था से भी कोई सुरक्षा व न्याय की उम्मीद नहीं दिखती।
दुर्भाग्य से मिडिया भी, जो जनता की आवाज मानी जाती है,
अपनी व्यावसायिक विवशता व इस पर व्यवसायी वर्ग के नियंत्रण के कारण जनता के
मुद्दे के प्रति कम, अपने व्यावसायिक हित को ज्यादा ध्यान में रखती है ।इस प्रकार की दुर्भाग्य पूर्ण घटनाओं को हमारी
मीडिया शुरूशुरू में तो खूब सनसनीखेज बनाकर जनता में अपनी बिक्री बढ़ाने हेतु जोर
शोर से उछालती है, पर जैसे ही मामला पुराना हुआ,
या कोई नया ज्यादा बिकने वाला मुद्दा मिला, पुराने को कूड़े दान में डाल देते हैं,और
इसप्रकार हर मुद्दा अंततः अपनी ही मौत मर जाता है ।
वैसे भी अपराधियों पर कानूनी
कार्रवाई व दंडप्रक्रिया में मीडिया की अपनी सीमायें हैं, अंततः तो बड़े से बड़े व जघन्य से जघन्य अपराध में भी पीड़ीत को न्याय व अपराधी को दंड तो पुलिस
व प्रशासन की दक्षता व कुशलता ,सत्यनिष्ठा व उनकी स्वतंत्र रूप से काम करने की क्षमता, सही साक्ष्य को जुटाने, कानूनी औपचारिकताओं को
पूरा कर पाने पर ही निर्भर करता है ।और दुर्भाग्य से यह देखा गया है कि हमारे देश
में अपराधी और दोषी कानूनी तिकड़म बाजी और इसकी जटिल औपचारिकताओं में पुलिस व
प्रशासन पर भारी पड़ते हैं, और प्रायः बड़े से बड़ा
अपराधी व गुनहगार भी कानूनी तिकड़म व अपने राजनीतिक आकाओं की मदद से अपने जघन्य से
जघन्य अपराध के लिए भी बिना कोई सजा पाये न्यायालयों द्वारा निर्दोष बरी हो जाता
है ।
ऐसी निराशाजनक व जटिल परिस्थितियों में यह अनिवार्य व आवश्यक हो गया है कि हमारे पुलिस व प्रशासन प्रणाली एवं न्याय व दंड प्रणाली में संस्थागत बदलाव लाते उनकी कार्यप्रणाली ज्यादा कुशल, दक्ष व पारदर्शी बनायी जाय,तभी आम आदमी का कानून व प्रशासन व्यवस्था तंत्र में विश्वास वापस व कायम हो सकता है, तभी हम स्वयं व अपने बच्चों को एक सभ्य समाज व वैधानिक राज्य के स्वतंत्र नागरिक होने का आश्वासन व विश्वास दे सकते हैं ।
ऐसी निराशाजनक व जटिल परिस्थितियों में यह अनिवार्य व आवश्यक हो गया है कि हमारे पुलिस व प्रशासन प्रणाली एवं न्याय व दंड प्रणाली में संस्थागत बदलाव लाते उनकी कार्यप्रणाली ज्यादा कुशल, दक्ष व पारदर्शी बनायी जाय,तभी आम आदमी का कानून व प्रशासन व्यवस्था तंत्र में विश्वास वापस व कायम हो सकता है, तभी हम स्वयं व अपने बच्चों को एक सभ्य समाज व वैधानिक राज्य के स्वतंत्र नागरिक होने का आश्वासन व विश्वास दे सकते हैं ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार- 25/08/2013 को
ReplyDeleteवो शहीद कहलाते हैं ,,हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः5 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
निराशाजनक परिस्थिति
ReplyDeleteदुखद ही कहा जायेगा, बर्बर लुटेरों की मानसिकता अभी तक नहीं गयी है मन से इन नराधमों के।
ReplyDeleteजब तक हम सामाजिक समस्याओं का हल समाज स्तर पर नहीं सोचेंगे तब तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचेंगे। पूर्व में समाज हमारा पहरेदार था, इसलिए ऐसी घटनाएं कम होती थी लेकिन आज समाज और परिवार दोनों ही नहीं हैं और व्यक्ति निरंकुश हो गया है। महानगरों में रह रहे लाखों लोग आज किसी भी परिवार और समाज से जुड़े हुए नहीं हैं इसलिए वे असभ्य होते जा रहे हैं। इस असभ्यता को रोका नहीं गया तो यह देश घिनौना रूप ले लेगा।
ReplyDeleteयथार्थ कथन ।आभार
Deleteपरिवार खत्म हो गए हैं और समाज नष्ट हो गया है.…… नतीजा सबके सामने है. बेपरवाह निरंकुश सत्ता। किसी भी घटना पर राष्ट्र एक जुट खड़ा नहीं होता। क्यों ? क्योंकि सामाजिक मूल्य ही नहीं रहे. जब मूल्य ही नहीं रहे तो मूल्यवान समाज कहाँ से आएगा। जब नैतिकता ख़त्म … तो यही सब लूटखसोट, व्यभिचार, भ्रष्टाचार शुरू हो जाएँगे। सबसे घ्रणित बात यह है की इतनी बड़ी घटना हो गई और लोग एकजुट होकर सामने नहीं आ रहे हैं. सिर्फ चंद लोग मोमबत्तियां जला रहे हैं और बयां बाजी कर रहे हैं. आम आदमी जो लुट रहा है परेशां हो रहा है वो सोया हुआ है. युवा को गजगोर करना चाहिए था वो चेन्नई एक्सप्रेस पे सवार है.……
ReplyDeleteइतनी विचार पूर्ण टिप्पणी हेतु हार्दिक आभार
ReplyDeleteसेफ्टी फर्स्ट
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