Sunday, August 4, 2013

कचरा ट्रक से बचाव का सिद्धांत

कृपया बचें ! कुंठित,क्रुद्ध व निराश व्यक्ति भी किसी कचरे की ट्रक से कम नहीं  ....

मेरे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक सहपाठी व घनिष्ठ मित्र वेंकट,जो चेन्नई में रहते हैं, से फेसबुक की कृपा से कई वर्षों के अंतराल के बाद वापस संपर्क बन पाया , फिलहाल हम दोनों फेसबुक पर नियमित और कभी कभार मोबाइल फोन पर विचारों का आदान प्रदान, गप-शप कर लेते हैं। अभी हाल ही में उन्होंने फेसबुक पर अपने एक अन्य घनिष्ठ मित्र मुरली मुरगेसन की एक इमेल साझा की जिसका विषय है – कचरा ट्रक से बचाव का सिद्धांत ।

सच पूछें तो अपने मित्र के इस लेख को मैं अब तक कई बार पढ़ चुका हूँ और मन इस बात को बार बार दुहरा रहा है कि आखिर इतनी साधारण सी बात हमारे जीवन में अगर उतर जाये तो हमारा जीवन और पूरा परिवेश ही बदल जाय और हमारा वाह्यांतर दोनों खुशियों व आनंद से भर उठे ।

मेरे मित्र के इमेल का प्रकरण उनका कोलकाता में एक टैक्सी की यात्रा के निजी अनुभव व एक गहरी सीख पर आधारित है । प्रकरण का विवरण उनके ही शब्दों में कुछ इस प्रकार है –

मैं एक महत्वपूर्ण क्लाइंट मीटिंग में पहुँचने की जल्दी में था और फटाफट एक खाली दिखती आती टैक्सी को हाथ देकर रोका और टैक्सीड्राइवर को साल्टलेक चलने की हिदायत देते टैक्सी के अंदर हड़बड़ी में बैठ गया ।हमारी टैक्सी अपनी सही लेन में सामान्य गति से जा रही थी कि अचानक एक काले रंग की कार हमारी लेन की बगल की पार्किंग स्पेस से झटके से मुड़ती हमारी टैक्सी के ठीक सामने अचानक प्रकट हुई । मेरे टैक्सी ड्राइवर ने जल्दी व जोर से ब्रेक लगाते ,कार की पहिया स्किड होती हुई, टैक्सी को उस कार से टक्कर खाने से किसी तरह बाल-बाल बचा पाया, मैं भी इस झटके से लगे ब्रेक के कारण अपनी सीट से आगे गिरते किसी प्रकार चोट खाने से किसी प्रकार बचा ।
उस कार का चालक, जो हमारी टैक्सी से खतरनाक टक्कर की स्थिति का कारक व इस बालबाल बची दुर्घटना के लिये सीधे तौर पर जिम्मेदार था , बिना किसी शर्मिंदगी अथवा क्षमा भाव के उल्टे अपनी कार की खिड़की से बेहूदे ढंग से अपना सिर बाहर निकाले हमें जोर जोर से भद्दी भद्दी गालियाँ दे रहा था। मुझे उस कार-चालक का ऎसा वहसियाना व्यवहार हतप्रभ कर रहा था ।
किंतु मेरे हैरानी की सीमा न थी जब मेरा टैक्सी ड्राइवर उस कारचालक पर कोई प्रतिक्रियात्मक क्रोध दिखाते और गाली गलौज में उलझते, इसके विपरीत सहृदयता से मुस्कराते दोस्ताना लहजे में इस उद्दंड कारचालक की ओर सौम्यता से मित्रतापूर्वक हाथ हिला रहा था । कारवाला भी इस टैक्सीड्राइवर के अप्रत्यासित व्यवहार पर भ्रमित सा दिखते शांत हो गया और जल्दी से अपनी कार को गति देते आगे बढ़ गया।
मैं हैरान सा अपने टैक्सी ड्राइवर से यह पूछने से स्वयं को नही रोक पाया कि जबकि उस कार चालक की ही सरासर गलती से एक बड़ी दुर्घटना होने वाली थी और ऊपर से वह ऐसा वहसियाना ढंग से व्यवहार कर रहा था, ऐसे में उसको पलट कर उसी की भाषा में कोई जबाब देने अथवा उसको कोई सबक सिखाने के बजाय, उल्टे वह उसके साथ ऐसे मुस्कराकर व शालीनता से हाथ हिला रहा था जैसे वह उसका कोई खास दोस्त हो,क्या वह उसे पहले से जानता है ?
मेरे प्रश्न पर मेरा टैक्सी ड्राइवर हौले से मुस्कराते मुझे आश्वस्त करते कि उस कार चालक से उसकी पहले की कोई जानपहचान नहीं है, उसने कचरा ट्रक से बचाव के सिद्धांतके रूप में बड़े ही साधारण तरीके से  किंतु एक बड़ी ही अर्थपूर्ण शिक्षा मुझे इन शब्दों में दी –
सर जी कई व्यक्ति कचरा ट्रक की भाँति होते हैं,वे कचरा से पूरी तरह भरे इधर-उधर भागते रहते हैं, अपने अंदर और बाहर तमाम प्रकार की कुंठा,निराशा व क्रोध से पूरी तरह भरे हुये । ऐसे व्यक्ति जहाँ भी उन्हें जगह और अवसर मिला , अपने अंदर के भरे कचरे को वहीं अनलोड कर देते हैं।और वह मौका और स्थान यदि उन्हें आप स्वयं ही प्रदान कर रहे हैं, तो वे फौरन ही आपके ऊपर अपने अंदर का सारा कचरा उड़ेल देते हैं । इसीलिये सर मेरी सबक तो यह है कि आप ऐसे कचरे से भरे व्यक्ति की बात व व्यवहार को कतई व्यक्तिगत न लेते, बिना उनसे किसी प्रकार उलझे , उनसे सहृदयता से व मित्रतापूर्वक मुस्कराते , उनको शुभकामना देते हुये आगे बढ़ जायें । साहब मेरा तो यह निजी अनुभव है कि इससे मुझे हमेशा बड़ा शकून और आनंद मिलता है और मेरे जीवन की शांति कभी अनावश्यक भंग नहीं होती है।
तो यह था मेरे टैक्सी ड्राइवर द्वारा बताया व स्वयं व्यवहार में सफलतापूर्वक अमल में लाया अति साधारण दिखता किंतु अद्भुत कचरा ट्रक से बचने का सिद्धांत । मैं फौरन ही इस चिंतन में खो गया कि हम तो प्रायः ही इस प्रकार के कचरा ट्रक व्यक्तियों को स्वेच्छा से अपने आप से टकराने, उन्हें अपना सारा अंदर का कचरा हमारे उपर व चारों ओर खाली करने की बेधड़क छूट देते रहते हैं, इतना ही नहीं अपने उपर गिरे इसी कचरे का कुछ हिस्सा हम आगे अपने परिवार , पत्नी बच्चों,सहकर्मियों इत्यादि में बाँटते फिरते हैं और इस प्रकार न सिर्फ स्वयं का बल्कि अपने परिजनों व परिवेश में अन्य लोगों का जीवन भी दुखी व अशांत करते रहते हैं।
इसी क्षण मैंने यह मन में संकल्प लिया कि मैं यह गलती अब कभी नहीं दुहराऊँगा, अब जब भी किसी कचरे से भरे व्यक्ति से सामना होगा,और समझूँगा कि वे अपना कचरा मेरे उपर खाली करने को तैयार हैं, मैं अपने टैक्सीड्राइवर की ही तरह ,उनके दुर्व्यवहार , दुर्बातों व गुस्सा को बिना व्यक्तिगत लेते , उनकी तरफ सहृदयता से मुस्कराते, मित्रतापूर्वक हाथ हिलाते , आगे बढ़ जाऊँगा ।

यह साधारण सा दिखता किंतु एक अद्भुत सिद्धांत निश्चय ही हमारा पूरा जीवन बदलने में समर्थ है। मैंने जब से अपने मित्र का भेजा हुआ यह लेख पढ़ा है, मेरा मन भी अपने मित्र की भाँति एक गहरे चिंतन में खो गया है। मुझे यह अनुभव हो रहा है कि प्रायः हम किसी अपने अथवा पराये – जैसे पति अथवा पत्नी, बच्चे, रिश्तेदार,पड़ोसी, सहकर्मी, बॉस,मातहत,आटो या टैक्सी ड्राइवर,सड़क पर किसी अन्य वाहन चालक, किसी सब्जी दुकानदार वगैरह वगैरह , के अप्रिय व अवांछित व्यवहार अथवा कथन से भड़क उठते हैं व इस चक्कर में न सिर्फ अपना पूरा दिन खराब कर लेते हैं बल्कि कई बार अपना भारी नुकसान भी कर लेते है।

तो अब यही सोचता हूँ कि आज और अभी से यदि मैं भी अपने दैनिक जीवन में सामने मिलने वाले किसी कचरा ट्रक जैसे व्यक्ति से बिना सीधे टकराये उन्हें अगर सहजता से गुजर जाने देता हूँ तो निश्चय ही मेरी जिंदगी कितनी बेहतर, सुखी व शांतिमय हो सकती है। यह अब अंदर से अनुभव हो रहा है कि हमारी जिंदगी रोज सुबह उठकर मात्र पिछले दिन के झगड़े व मतभेद के लिये खेद जताने व मुँह फुलाकर जीते रहने के लिये कितनी छोटी है। कितना बेहतर हो कि जो हमें प्यार करते हैं उनको हम भरपूर प्यार दे सकें, और जो हमें प्यार नहीं करते अथवा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नापसंद करते हैं , हम उन्हें व उनके दुर्व्यवहार को भूलते हुये उनकी ओर सहृदयता व सलीके से मुस्कराते,अपने जीवन पथ पर आगे बढ़ जायें ।


मुझे पूरा विश्वास है कि इस सिद्धांत को अपनाते जीवन काफी सुखमय व शांतिमय हो सकता है।वैसे भी इस सिद्धांत के चिर-सत्यता की पुष्टि इस तथ्य से भी स्पष्ट हो जाती कि हर सफल और महान व्यक्ति  अपने निर्धारित लक्ष्य से भटकाने वाली किसी बात या परिस्थिति से अपने को कितनी शीघ्रता से विमुख करते अपना पूरा ध्यान व प्रयास मात्र अपने लक्ष्य पर फोकस रखते हैं।
                              ------------

6 comments:

  1. सरल सा सिद्धान्त है पर अपनाने में इतना कठिन क्यों, समझ नहीं आता।

    ReplyDelete
  2. Kyonki hamne yeh bhi seekha hai "jaise ko taisa". Asal mein koi ek siddhant hamesha laagu ho nahi paata. Vivek ka istemaal fir bhi karna padega.

    However, forgiveness is the greatest virtue.

    ReplyDelete
  3. इस सिद्धांत का पालन किया जा रहा है सचमुच अनुकरणीय

    ReplyDelete
  4. Hamne bhi likha tha bahut pahle is par:

    http://saptrang.wordpress.com/2008/05/02/garbage-truck-theory/

    ReplyDelete
  5. ग्रहण करने योग्य सिद्धान्त है,और इतना आसान कि बिना ध्यान दिए सामने से निकल जाए !

    ReplyDelete
  6. हम तो बहुत दिनों से इसकी प्रेक्टिस कर रहे हैं..

    ReplyDelete