कनेर के फूल....
(स्केच नंबर - ६)
याद आ गया आज अचानक, बचपन में
गांव में घर के शिव मंदिर के पास,
हमारे स्कूल के आने-जाने के रास्ते में
खामोश खड़ा पीले कनेर फूलों का पेड़।
सुबह सजा, पीले पीले फूलों से वह लकदक था दिखता,
और मंदिर में पूजा करने को शिवभक्त कई
तोड़ रहे होते थे उन पीले फूलों को अति श्रद्धा से,
फूलों को चुन रखते फूलों की पूजा डोलची में।
वह कनेर का पेड़ दमकता दर्प लिए, मुख
खिला, विहसता, खुशी-खुशी और कुछ गुमान से, सबको बांट रहा होता था पीले ताजे फूलों को,
मानों मूल्यवान आभूषण राजा कोई दान दे रहा विप्रवरों को,
क्यों न भला मन हो उसका अति उल्लासित,
जब उसे पता कि उसके पीले पुष्प चढेंगे आदर से शिव के माथे पर।
दिन ढलते जब स्कूल से लौटते हम उसको तकते,
तो अपने पीले फूलों से खाली, वह खड़ा वही दिखता कितना निस्पृह, खाली-खाली सा,
मानों कोई नृप सारी निधि स्वयं लुटा बन गया हो संन्यासी और बैठा हो एकांत, शांत और ध्यानलीन सा।
मन उदास हो जाता था देख उसको मौन और गंभीर इस तरह,
बोझिल मन, अपने नन्हे डग भरते हम गुजरते जब शिव मंदिर से ,
मन ही मन शिवजी से यही प्रार्थना करते कि —
हे शिवजी! कनेर का पेड़ फिर हँस पाये , उसके पीले सुंदर फूल उसे वापस मिल जायें।
सोते सोते यही सोचते होते क्या फिर से खुश हो पायेगा कनेर का पेड़ ,उसे वापस अपने पीले सुंदर फूल मिलेंगे?
और शिव जी बड़े दयालु, जैसे कि हैं जाने जाते,
वास्तव जादू हो जाता , शिवजी हर रात दया कर देते थे,
और सुबह हम जब स्कूल उसी रास्ते से जाते होते,
वह कनेर का पेड़ पुनः ताजे पीले फूलों से लकदक था दिखता,
और बांट रहा होता था फिर से उदारमन, उल्लासित चेहरे से
अंजुलि भरभर अपने पीले फूल उन्हीं शिवभक्तों को ।
ऐसा लगता वह हम बच्चों को विद्यालय आते जाते
यही सीख देता था कि—
जितना तुम बांटोगे औरों को अपनी निधियां, अपने धन
उनसे कई गुना वापस पाओगे, वे वापस आयेंगी तेरी ही झोली में।
जो स्वाभाविक गुण,सम्पदा तुमको मिलती हैं प्रकृतिदत्त,
चमत्कार, जादू होता है उनको औरों को देने में, साझा करने में।
Devendra Dutta Mishra
फोटो श्री Dinesh Kumar Singh द्वारा
No comments:
Post a Comment