(स्केच नंबर - 4)
हे नाजुक, कोमल पुष्प!
मेरे अंकों में जब हुए प्रस्फुटित तुम जिस क्षण
बनकर मेरे आत्मज, सार्थक हुई मेरी ममता, रोम-रोम हुआ आह्लादित, अंग का हर कण!
तेरी कोमल पंखुड़ियों से करके स्पर्श
मेरे शरीर का रोम रोम रोमांचित है हो उठता,
तनिक पवन जो गुजरे भी मेरे अंकों से,
तुम हिलते,कुछ सहमे से रोमांचित हो उठते
मेरे अंकों में लिपट चिपट हो जाते
मैं भर तुमको अपने अंकों में, लेकर तेरी सभी बलायें
करता तुमको आश्वस्त, तुम्हें मन ही मन देता यह दुआ सदा कि
लगे तुम्हें यह उम्र मेरी यह, बढ़े, पले तू खूब, लाल तुम जुगजुग जीये
जो भी कोई तेज धूप की किरणें दिखतीं तुमको छूते
मैं राहों में छाया बनते तुम्हें बचाऊं कुम्हलाने से
मगर हृदय में एक हूक यह भी उठ जाती यदाकदा
डर जाता यह कि तुम कितने कोमल हो, नाजुक हो कितने!
समय ढल रहा, क्रमश:मेरे पांव और अंक थकते हैं,
जब वे होंगे शक्तिहीन कैसे कर पाऊंगा मैं तेरा रक्षण
लेते प्रतिपल तेरे सिर की सभी बलायें
मन हो जाता कभी व्यग्र और हो अति व्याकुल
प्रिय तेरी चिंता में, तेरे भविष्य की आशंका में
मगर मेरी ममता, स्नेह की शक्ति निहित मेरे अंतर्उर में तेरी खातिर
बनकर मेरी शक्ति हृदय की मन को यह विश्वास सहज दे देती है
कि जिस अमर शक्ति की परम कृपा से बनकर अमूल्य वरदान तुम हे लाल! मेरे जीवन में आये
वही शक्ति देगी सदा कृपा और अपना संरक्षण
तुमको चिरायु रखेगी देकर अपना पोषण
यह अदृश्य उस परमशक्ति का विश्वास अटल ही
मुझको तुममें निज भविष्य के संरक्षित होने का अचल आश्वासन है देता।
-देवेंद्र
फोटो - श्री Dinesh Kumar Singh सर द्वारा
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