चांद की राह, कुछ फूलों की कुछ खारों की!
(स्केच न. २)
कितना उदास सा होता है,
चांद का यह अकेला सफर!
सब कुछ सोया हुआ,
खामोश गुमनामी में खोया हुआ!
क्या आसमान क्या धरती
क्या पेड़ और क्या पक्षी
क्या नदियां क्या पहाड़
क्या मैदान और क्या बीहड़
मगर चांद जागता है, रात भर चलता है
क्या ठंडी, क्या गर्मी यात्रा पूरी करता है
चाहे अमावस का हो अंधेरा या पूनम का उजाला,
मंदिर का सोया शिखर, या रास्ते में जागती मधुशाला
कभी आहट से, कभी सरपट से
चलता है, कभी इस क्षितिज से कभी उस क्षितिज से
कभी सागर के इस पार, कभी उस पार
रास्ते में क्या फूल और क्या खार
कहता है अपनी खामोशी में, चलने का संकल्प है
क्या फर्क यह कि निर्धारित यह यात्रा दीर्घ या अल्प है।
-देवेंद्र
फोटो - श्री Dinesh Kumar Singh द्वारा
No comments:
Post a Comment