(स्केच नंबर ९)
कच्चे ताजे अमरूद रहे हैं साथी अपने बचपन से,पसंद हम सबके,
चाहे घर के बागीचे में मां के रोपे हुए पेड़ की टहनी पर वे हों लदके,
या स्कूल के रास्ते में बुढ़िया दादी के घर के बागीचे में वे हों लटके,
या स्कूल के प्रांगण में अपने रेसस के टाइम कच्चे अमरूदों को पेड़ों से हम तोड़ा करते,
या फिर रेलवे के अपने बंगलें के बागीचे के पेड़ों पर कच्चे हरे सजीले दिखते।
उम्र हो गई, फिर भी जो देखें फुटपाथों पर ठेले पर सजे हुए इनको हरे हरे और ताजे,
मुंह में पानी आ जाता, खुद को रोक न पाते, दो-चार छांटते खरीदते खाते,
इनको फांकों में काट, लगाकर नमक मशाले, जो इनको खाते
लाजबाब यह लगते, इनके स्वाद की तुलना क्या है कोई और कर पाते?
कच्चे यह अमरूद होते हैं बड़े कसैले, जो दांतों से काटें खायें,
मगर चबाते बड़े रसीले लगते हैं जितने खट्टे उतने ही हैं मीठे होयें,
मानो वह खुद के अंदर जीवन का दर्शन सारा हो लिये समेटे
कि जीवनपथ पर ऊंचनीच के अनुभव, होते हैं प्रथम बहुत कड़वे और कसैले,
मगर वही अनुभव कल बनते, आगे चलकर अपने सच्चे साथी, मीठे फल देने वाले,
सही सबक हैं देते , विश्वास, आत्मबल, और जीवन में मनोबल बढ़ाने वाले।
-देवेंद्र दत्त मिश्र
फोटोग्राफ श्री दिनेश कुमार सिंह द्वारा
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