Wednesday, March 11, 2015

The Great Leaders: They Talk Great and they walk it greatly.

1.  A leader who reads the situation and his team well and pulls through even an impossible walk -

' The pitch was a little different from other pitches , that we played earlier. The pacers struggled to find the right length initially , but I saw that spinners would get more purchase, and my spinners got that. Good thing about my team and the bowling unit is that they have responded to whatever decisions and changes I have intended to make. There have never been a case of any player or bowler feeling down when I have taken out of a field place or the bowling attack. They know its for the team and they have taken it in the right spirit. It has made my job easier. '
- Mahendra Singh Dhoni , Skipper , Indian Cricket Team

2. A leader who keeps his team and the nation first , and his personal pain only second :

' You have to bear the pain if you want to perform for your country. But the pain goes away when you do well and the team wins..... like against England. '
- Mashrafe Mortaza , Skipper , Babgladesh Cricket Team

3. A leader having burnt his boats and  ready to take on any big gun, with no any fear :

'  I have told the boys there are no more second chances for us in the remaining matches , and we go in every match having burnt our boats and with a fearless attitude. We are ready to play any team in quartefinals , Australia, New Zeeland or who so ever. '
- Misbah-ul- Haq , Skipper , Pakistan Cricket Team

4. A Gautam Buddha like leader , who delivers from the front and keeps it for his team standing ever back.
- Kumar Sangakara, Skipper , Sri Lanka Cricket Team

Tuesday, March 10, 2015

हे हरि ! संहारो शीघ्र मुफ्ती भष्मासुर को ....

मुफ्ती जैसे भष्मासुर का किसी भगवान विष्णु के कुशल कूटनीति से शीघ्र संहार देशहित में अत्यंत आवश्यक है ।

बेहतर तो नामो और अमित शाह को अपने पार्टी के राजनीतिक विस्तार की अति-महात्वाकांक्षा को तरजीह देने की जल्दबाजी करने के बजाय वह अपने व अपनी पार्टी के राष्ट्रीयता के  सिद्धांत , व जेएण्डके व भारत देश की अखंडता को तरजीह देते , और उन्हें मुफ्ती जैसे पूर्वसिद्ध शातिर, चालबाज , पाकिस्तान-परस्त व अलगाववादी समर्थक नेता व उसकी पीडीपी पार्टी से किसी प्रकार के राजनीतिक गठजोड़ से बचना चाहिये था । वह बीजेपी की ही सहायता से मुख्यमंत्री बनकर अब अपने पाकिस्तानपरस्ती व अलगाववादी समर्थक होने का एजेंडा साध रहा है और नामो और भाजपा के लिये भष्मासुर सिद्ध हो रहा है ।

अब नामो और भाजपा को भी मुफ्ती से पार पाने के लिये किसी विष्णुभगवान की चतुराई व कूटनीति की आवश्यकता है , जो मुफ्ती नामक इस राक्षस का शीघ्रनाश कर सके और जम्मूकश्मीर राज्य व भारत देश को उससे छुटकारा दिला सके ।

Monday, March 9, 2015

सहज. निरंतर जो है उड़ता , पंछी वही गगन तय करता.....

किसी परिस्थिति , घटना और वक्त को उसके स्वाभाविक तरीके व गति से होने व गुजरने देना चाहिये , न तो उनसे मुँह चुराना और टालमटोल उचित होता है और न ही उनके साथ कोई हड़बड़ी और जल्दबाजी , अलबत्ता यह दोनों ही अतिगामी अंदाज किसी अच्छे व अपेक्षित नतीजे के लिहाज से घातक सिद्ध हो सकते हैं । सुगढ़ व स्वस्थ नदी वही होती है जो अपने स्वाभाविकता के साथ प्रवाह करती हैं , अन्यथा उनका अतिरंजित प्रवाह , ज्यादा ही धीमा अथवा ज्यादा ही तीव्र , उनके स्वरूप व आकार को अनगढ़ व छिन्नभिन्न कर देता है । अतः परिस्थिति व घटना के सामान्य गति व प्रवाह के साथ सहजता से आगे बढ़ना ही उनके साथ मर्यादित निर्वहन और अपेक्षित परिणाम को सुनिश्चित करता है ।

Sunday, March 8, 2015

नारी , एक आधुनिक अधिकारसंपन्न समर्थ नागरिक और उसकी जाती चुनौतियाँ ....

मेरे एक कॉलेज मित्र ने व्हाट्सअप ग्रुप में नारी के जीवन , उसके जीवन में विभिन्न रिश्तों की भूमिका की निहित चुनौतियों की चर्चा करते एक सुंदर कविता लिखी है , और अंत में उन्होंने नारी के प्रति व्याप्त सामाजिक अन्याय व पीड़ा की चर्चा करते उनके प्रति दृष्टिकोण में बदलाव और  सम्मान और आदर के लिये सबका आह्नान किया है ।

इस बाबत मैंने अपने मित्र के साथ निम्न विचार साझा किये जो एक मित्र के साथ विचार विमर्श के मद्देनजर थोड़ा-बहुत मनोविनोद सम्मिलित भीे है , जो आशा है कि कोई पाठक अन्यथा नहीं लेंगे ।  :-)

' मेरे प्रिय दोस्त , जहाँ तक मेरा व्यक्तिगत अनुभव है , हमारे तुम्हारे जैसे इस ग्रुप के सदस्य तो नारी का सम्मान करते ही हैं , न सिर्फ सम्मा़न करते हैंं बल्कि घर में उनकी डांट-डपट और नसीहत भी नियमतः और बराबर नतमस्तक चुपचाप सुन लेते हैं । :-)

जहाँ तक उनके (नारी ) प्रति किसी सामाजिक विपरीतता , भेदभाव या चुनौतियों का प्रश्न है , तो पूर्व में अवश्य लड़कियों की शिक्षा और नौकरी को लेकर सुविधा व अवसर की कमी की भारी विवशता व कठिनाई थी , मगर हमारी पीढ़ी के साथ यह कमी काफी हद तक दूर हुई है और हम सभी अपनी बेटियों को बेटे के बराबर ही उनकी  परवरिस पर ध्यान व उनको शिक्षा दीक्षा का सुयोग्य अवसर दे रहे हैं । इस प्रकार नारी के प्रति किसी सामाजिक पूर्वाग्रह , भेदभाव व असहयोगात्मक दृष्टिकोण में काफी व प्रभावी बदलाव व सुधार प्रत्यक्ष दिखता है ।

मुझे लगता है कि वर्तमान में  नारी के सामने किसी सामाजिक कठिनाई व चुनौती के बनिस्बत उसके निर्भयता व सुरक्षा संबंधी गंभीर मसले व समस्यायें हैं , खासतौर पर जब उनको अब अपने शिक्षा और कामकाज के बाबत देर सबेर घर से बाहर अकेले आने जाने की अनिवार्यता व आवश्यकता है , और यह समस्या हमारे देश में खराब कानून व्यवस्था , पुलिस व सुरक्षातंत्र के बुरी तरह से नाकारेपन से जुड़ी है , और जिससे न मात्र नारी समुदाय को अपनी मर्यादा व अस्मिता संबंधित  विशेष  कठिनाई  व चुनौती का सामना तो करना पड़ ही रहा है , बल्कि देश का एक साधारण नागरिक भी वर्तमान  पुलिस की भ्रष्ट व्यवस्था , नाकारेपन  व विफल लॉ ऑर्डर की स्थिति से बुरी तरह प्रभावित , भयग्रस्त और लाचारी से जूझ रहा असहाय सा दिखता है।

हमारे देश में कानून तोड़ने वाले, किसी प्रकार का क्राइम का अंजाम देने वाले , चोरी , बलात्कार जैसे संगीन अपराधी , बेखौफ होकर गलत काम और अपराध को अंजाम कर सकते और करते रहते हैं क्योंकि एक तो उन्हें देश में किसी नियमकानून व उसके दंड का कोई डरभय नहीं और प्रायः अपराधी , कानून तोड़ने वाले, क्राइम करने वाले ,  किसी न किसी रूप में राजनीतिक क्षेत्र व पुलिसतंत्र में अपना गहरा रसूख रखते हैं , इसलिये भी वे जघन्य से जघन्य अपराध  व गलतकाम करने में बेहिचक व बेखौफ होते हैं ।

तो मेरी समझ में आज के समय में हमारे देश में नारी की समस्यायें व चुनौतियाँ  मात्र सामाजिक कम बल्कि कमजोर व लचर 'लॉ एण्ड ऑर्डर' व सामान्य तौर पर पुलिस व न्यायतंत्र की विफलता व इसमें व्याप्त गहरे भ्रष्टाचार से संबंधित समस्या ज्यादा है , जिसे सही गवर्नेंस,  दक्ष व कुशल पुलिसतंत्र व लॉ एण्ड ऑर्डर के सेटअप से अवश्य प्रभावी रूप से कन्ट्रोल व सुधारा जा सकता है । बस इसके लिये उच्चस्तर पर सही व सच्चे राजनीतिक व प्रशासनिक संकल्प व पारदर्शिता की आवश्यकता है । '
आपका मित्र -
सादर - देवेंद्र

तुम जागृत तो जग हो जागृत.......

( अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर  ' नारी ' के सम्मान में विनम्रतापूर्वक समर्पित )

नारी !
तुम जननी , धात्री  तुम संगिनी ,
आदिगुरु तुम , स्नेहदुलारमूर्ति तुम भगिनी ।
प्रेम , स्नेह , ममता की खातिर ,
कितने कष्ट सहे हैं तुमने ! कितने त्याग किये हैं तुमने!
स्वयं रक्त को दूध बनाकर , जीवन अमृत देती हो पीने !
मगर जगत ने माना तेरी करुणा को तेरी कमजोरी ?
जिसको आँचल छाँव दिया है वही किया तुमसे बरजोरी ?
आज बता दो जग को कि तुम और नहीं हो कोई अबला ,
शंखनाद दे शक्ति सन्निहित बतला दो कि तुम हो सबला ।
तुम सशक्त हो , शक्तिमयी हो ,
तुम समर्थ, परिपूर्णमयी हो ।
माना तुम माँस्वरूप करुणा की सागर,
प्रेम , दया ,ममता की आगर ,
मगर दृष्टि जो कलुष किसी की
पड़ती हो , मर्यादा हरती ,
बन दुर्गा तुम दुर्जन को संहारती ,
काली प्रचंड तुम कलुष नाशती ।
आज समय इस आवाहन का,
तुझको 'निर्भया' होकर जगने का ,
तुम जागृत तो जग हो जागृत
कर दो पशुता का सिर उच्छेदित ।
फिर भी मूल तुम्हारी करुणा ,
प्रेम स्नेह ममता कर वीणा ।
तेरी वृष्टि जगतमय अमृत ,
करो निरंतर सबको पोषित ।

- देवेंद्र दत्त मिश्र

Friday, February 20, 2015

खाँसी और जनसंवेदना....

हमारे देश के एक आमपरिवार में एक आमआदमी के घर में एक आमबालक ने कभी जन्म लिया , पढ़नेलिखने में अत्यंत मेहनती , अध्यवसायी और प्रतिभावान और अपनी इस योग्यता के बदौलत देश के योग्यतम शिक्षणसंस्थान से शिक्षा प्राप्त कर देश की उच्चतम सेवा प्रतियोगिता योग्यता से उत्तीर्ण करके देश की उच्च प्रशासनिक सेवा में तैनात हुआ ।

कुछ कारणवश उसे यह सरकारी नौकरी रास नहीं आुई , और वह कुछ वर्षों पश्चात् अपनी इस उच्च व सम्मानित नौकरी और पद का त्याग करते समाज और जन सेवा कार्य में स्वयं को समर्पित कर दिया , उसने आमजनता के सरकारी कामकाज में होने वाली धाँधली और हीला हवाली के खिलाफ , सरकारी कामकाज व फाइल की आम आदमी को सूचना व जानकारी के अधिकार के लिये जनआंदोलन चलाये , जिसके आगे सरकार व तंत्र को भी झुकना और कानून बनाना पड़ा , जिस खातिर उसको देशविदेश में नाम , ख्याति और प्रसिद्धि और पुरस्कार अर्जित हुये।

इन शुरुआती सफलताओं से उसका जनआंदोलन में आत्मविश्वास बढ़ता गया ।  अब उसका अगला लक्ष्य था नये जन आंदोलन , नयी प्रसिद्धि की प्राप्ति। इसी बीच उसकी दृष्टि एक ऐसे जनांदोलन और उसके अगुआ बुजुर्ग युगपुरुष पर पड़ी जो सरकारी कामकाज में व्याप्त भ्रष्टाचार के खात्मा हेतु सरकार के विरुद्ध जन-आंदोलन शुरू किया था , वह बुजुर्ग भ्रष्टाचार के विरुद्ध सरकार द्वारा कड़े कानून की माँग लेकर देश में जगह जगह . विशेषकर देश की राजधानी में , आमरण अनशन कर रहा था जिसको देश की जनता का , विशेषकर देश की नव महात्वाकांक्षी युवावर्ग , का भारी समर्थन मिल रहा था। उसे यह उपयुक्ततम् अवसर लगा और वह फौरन इस आंदोलन व आंदोलन के अगुआ युगपुरुष की छतरी के प्रश्रय में आ गया ।

जनआंदोलन में मिली उसकी प्रसिद्धि और  उत्कंठा अब धीरे धीरे उसकी राजनीतिक प्रसिद्धि व उसकी सत्ता की महात्वाकांक्षा  और उत्कंठा में परिणित होने लगी ।  उसने झटपट खुद की एक राजनीतिक पार्टी गठित कर ली ,पार्टी का प्रतीक चिह्म भी झाड़ू रखा , जिससे कि सामाजिक और आर्थिक रुप से हासिये पर ऱह रहे आम और गरीब जनमानस से वह प्रतीकात्मक रूप से सीधे जुड़ सके और उनकी सहानुभूति और समर्थन पा सके , और वह इसमें बहुत शीघ्र और तेज सफल रहा ।

स्वयं को मिल रहे भारी जनसमर्थन और लोकप्रियता के कारण वह अपने बुजुर्ग पैट्रन युगपुरुष के साये से बाहर निकलकर अब स्वयं ही जनता के बीच युगपुरुष बन गया , और इस देशव्यापी भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनांदोलन की राजनीतिक अगुआई करने लगा।

उसकी बढ़ती लोकप्रियता के साथ साथ उसके शारीरिक भावभंगिमा व व्यवहार में भी कुछ खास परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगे । वह जैसे ही किसी जनसंवेदना या समस्या को अनुभव करता , या  वह  किसी जनमुद्दे या समस्या पर कोई परिचर्चा शुरू करता उसे खाँसी आनी शुरु हो जाती । वह खाँसी के बढ़ते प्रकोप का कारण चढ़ती उतरती सर्दी गरमी के मद्देनजर सिर पर कागज की टोपी और गले और कान पर हमेशा  मफलर लपेटे रहता । उसके जनआंदोलन  की बढ़ती लोकप्रियता के साथ साथ उसकी बात बात में खाँसी , सिर पर कागज की टोपी और गले और कान पर लपेटा मफलर भी जनांदोलन का प्रचलित ट्रेडमार्क और फैसन बन गया ।जब कभी कोई उससे उसके बात बात में खाँसी का कारण व उसके निदान के उसके किसी प्रयास की चर्चा करता तो वह यही उत्तर देता कि वह बहुत उपचार करा लिया , बहुत से नामी गिरामी डॉक्टरों को दिखाया परंतु खाँसी ठीक ही नहीं होती । 

आखिरकार उसका राजनीतिक आंदोलन बढ़ता, निखरता और प्रसिद्ध होता चला गया , वह जनता के बीच एक युगपुरुष का अवतार , भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक मुखर आवाज और भ्रष्ट सरकारी तंत्र से त्रस्त  जनता के लिये एक जनमसीहा और उम्मीद बनकर देश की राजधानी के राजनीतिक आकाशपटल पर धूमकेतु के मानिंद छा गया । वह देश , शहर , समाज में व्याप्त जनसमस्याओं की चर्चा करता , उनके कारण और जड़ में भ्रष्ट राजनेताओं को दोषारोपित करता और स्वयं को जनता की उम्मीद बताकर ,जनता द्वारा स्वयं को पाँच साल की सत्ता  का अवसर दिये जाने पर जनता के लिये काम करने और उनकी सारी समस्याओं के निवारण , सबको मुफ्त बिजली , पानी , मँहगाई से मुक्ति इत्यादि के आश्नासन देता । उसके आश्वासनों के कारण , व अन्य राजनीतिक दलों के नाकारेपन से निराश हो चुकी , जनता के बीच वह दिन दूना और रात चौगुना जनप्रिय होता गया ।

जनता के मन में उसकी भारी लोकप्रियता के समक्ष सभी राजनीतिक धुरंधर और शक्तियाँ माचिस की तीली के बने किले की मानिंद बिखर गये और वह देश की राजधानी राज्य के चुुनाव में  जनता द्वारा सर्वविजयी और सर्वोपरि बनाते राजसत्ता के सिंहासन पर आरूढ़ और पदासीन हो गया ।

स्वयं राजा बनने के बाद उसके खुद के ही शासन और सत्ता में उसके लिये अब एक नयी दुनिया प्रस्तुत थी । अभी तक तो वह जनता को सपनों का प्रलोभन व आश्वासन देता आया था , अब उन्हीं सपनों को साकार करने की उसके सामने चुनौती थी । जिन समस्याओं - गरीबी , बेरोजगारी , बिजली , पानी , मँहगाई , भ्रष्टाचार की आवाज और नारे देकर वह अपने विपक्षी राजनीतिक दलों पर प्रहार करता था और जनता की तालियाँ और उनके समर्थन की हुँकार अर्जित करता था अब उन्हीं समस्याओं को खुद सुलझाने व समाधान देने की उसकी ही बारी और जिम्मेदारी थी । जो जनता कल तक उसके पीछे पीछे चलते उसके राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ नारे देते घूमती थी , अब वही जनता की भीड़ उसके दफ्तर और घर के सामने अपने समस्या की गुहार और फरियाद लेकर भीड़ जमा करने लगी । वह जनता की गुहार और फरियाद सुनता मगर कुछ समाधान और राहत नहीं दे पाता । वह समस्याओं के निराकरण हेतु कुछ भी प्रभावी न कर पाने की निराशा अपने कल तक की अंधभक्त समर्थक जनता के चेहरे पर स्पष्ट देख सकता था ।  कल तक जिन समस्याओं को स्वयं जनता के बीच गिनाते वह इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाया करता था , अब जनता द्वारा उन्हीं समस्याओं की चरचा और फरियाद सुनते बहाने बनाता , उनके न हो सकने के पक्ष में तर्क करता या उनको नजरंदाज कर देता ।

वह कुछ भी प्रभावी न कर पाने से स्वयं भी बड़ा निराश सा दिखने लगा था परंतु साथ ही साथ उसकी शारीरिक भावभंगिमा में भी काफी रोचक व चमत्कारिक परिवर्तन आने लगे । अपनी कागज की टोपी तो वह सत्तासीन होने के दिन ही परित्याग कर दिया था परंतु कुछ दिन तक उसकी बातबात में खाँसी और मफलर लपेटने की आदत और स्टाइल चालू रही । मगर वह जैसे जैसे जनता की समस्याओं को नजरंदाज करने लगा उसकी खाँसी में चमत्कारिक सुधार होने लगा , सत्तासिंघासन पर बैठे बमुश्किल महीेने भर हुये कि उसकी खाँसी लगभग बिल्कुल ठीक हो गयी , जहाँ उसको पहले दिन में भी सर्दी लगती और कान और गले पर मफलर लपेटकर रहना होता , अब तो वह प्रायः बिना  मफलर बाँधे ही रहता और उसकी कनपटी पर पसीने की चुहचुहाहट व सफेद बूँदें दिखती । इस प्रकार वह अद्भुत युगपुरुष भी सिंहासन पर बैठने के चंद सप्ताह के अंदर ही बिना खाँसता , बिना मफलर लपेटे एक सहज और साधारण आभिजात्य राजनेता व राजपुरुष की तरह दिखने लगा ।

अब वह युगपुरुष अपनी भक्त जनता को देखकर जोश में आकर न तो ' इंकलाब जिंदाबाद ' के नारे ही लगाता और न ही अपनी बेसुरी आवाज में पह़ले की भाँति कोई देशभक्ति के गाने ही गाता । अब तो उसके आम जन समर्थकों को भी उसमें और अन्य साधारण राजनेताओं में अंतर और फर्क करने में कठिनाई अनुभव होती ।

वह युगपुरुष जनता व जनसमर्थन की सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते व उनका इस्तेलाम करते अब पहले के एक आम जननेता से परिवर्तित होकर स्वयं भी अपने विरोधी सहराजनेताओं की ही तरह एक अभिजात्य व सधा जनसंनेदनहीन राजनेता बन गया ।

Saturday, January 24, 2015

जीवन यात्रा ...... एक सरित प्रवाह


उठते सुबह का उनींदापन और आलस्य,
या शाम के थके पाँव
कराते अनुभव निराशा और उत्साह हीनता का
रुकते , ठहरते , धीमे पड़ते , मना करते से
जीवन पथ पर आगे बढ़ने से ,
करते मन को जोशहीन , उलाहना से देते कि
बहुत हो चुका , बहुत चल चुके , बहुत कर चुके
वही पुराने काम और  घिसी-पिटी सी बातें और जरूरतें
रोज रोज की , कितनी नीरस ,  उत्साह हीन सी
वही पुरानी बात , चकल्लस , लोग पुराने
नया नहीं कुछ करने को , कहने को ,
मिलने को , आगे बढ़ने को !

फिर विवेक के कोने से ,
मन में जगता एक रिमाइंडर कि
देखो ! सूरज भी तो उगता है प्रतिदिन
निश्चित समय और जगह से ,
चलता रहता एक गति से , एक ही पथ से
प्रतिदिन , प्रतिपल , बिना थके वह , बिना निराशा
निश्चित पथ पर अविचल , अविकल
बिन गति खोये , सदा युक्तश्री
स्वयं धरा यह , प्रकृति पूर्ण यह
निज गति में और निहित कर्म को नियमित करते
पथ पर हैं वे आगे बढ़ते , अपने अपने निर्धारित पर ।

यही धर्म है , यही कर्म है , जीवन है यह ही
कि अपने अपने निर्धारित जीवन- पथ पर
बिना निराशा, उकताये बिन ,
निज शक्ति , संकल्प संग ले ,
बढ़ते रहना , चलते रहना ।
गति ही देता नवीनता , नूतनता जीवन में ,
सरित-प्रवाह ही जीवन है ।
© देवेंद्र