Youtube पर ही एक दिन ‘शिवसंकल्पसूक्त’ की
क्लिप मिली जो किसी प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक की
आवाज में थी, तो इन मंत्रों को सुन मन मंत्रमुग्ध हो
गया। फिर कुछ ऐसा आभाष हुआ कि इन मंत्रों को तो पहले भी सुना है।
विचारों के अश्व भूतकाल की तलहटी में दौड़ पड़े व कुछ-कुछ यह समझ में
आया कि यह तो बचपन में मेरे पैत्रिक-घर के शिव-मंदिर में श्रावण में होने वाले
वार्षिक रुद्राभिषेक पाठ में ब्राह्मणपुजारी के द्वारा उच्चरित मंत्र हैं।सारे
दृश्य आँख के सामने तैर से गये- श्रावणपूर्णिमा के कुछ दिन पूर्व मंदिर की
रंगाई-पुताई में अपने बड़े बाबूजी (ताऊ जी) की सहायता करना,पूजा के दिन बेलपत्रादि,मंदार
इत्यादि के पुष्प इकट्ठा करना व पुरोहित जी व अन्य ब्राह्मण पुजारियों द्वारा
रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों व श्लोकों के स्वच्छ व प्रवाहमय उच्चारण के साथ बड़े
बाबूजी द्वारा पाँच-छः घंटे की लम्बी अवधि तक श्रृंगी की सहायता से गो-दुग्ध द्वारा
शिवलिंग का रुद्राभिषेक करना।हालाँकि मंत्रों के गूढ़ अर्थों
से कोई परिचय नहीं होता था, किंतु वे कानों में ध्वनिस्वरूप प्रविष्ट कर हमेशा के
लिये परिचित अवश्य बन गये।
अब इतने अंतराल के पश्चात् जब ये परिचित-ध्वनि श्लोक सुनने को मिले तो
मन में इनका अर्थ जानने की उत्सुकता जगी।संयोगवश घर में आध्यात्मिक पुस्तकों के मेरे
लघुसंकलन में गीता प्रेस प्रकाशित रुद्राष्टाध्यायी पुस्तक उपलब्ध थी और सुखद
संयोगवश यह पुस्तक संस्कृत श्लोकों के हिंदी अर्थ व व्याख्या सहित है,मेरे मन की जिज्ञाषा की पिपाषा को शांत करने में यह
पुस्तक बड़ी ही सार्थक सिद्ध हुई।
रुद्राष्टाध्यायी पुस्तक शुक्ल यजुर्वेद के विशिष्ट प्रधान सूक्तों व
मंत्रों- जैसे शिवसंकल्प सूक्त,पुरुषसूक्त,आदित्यसूक्त,वज्रसूक्त,रूद्रसूक्त
इत्यादि सहित दस ध्यायों का अद्भुत संकलन है। रुद्राष्टाध्यायी के प्रथम अध्याय ,
जिसमें कुल 10 श्लोक हैं, के अंतिम छः श्लोक ही शिव संकल्पसूक्त हैं, जो शुक्ल
यजुर्वेद के 34वें अध्याय का अंश है।
शिव संकल्पसूक्त हमारे मन में शुभ व पवित्र विचारों की स्थापना हेतु
आवाहन करता है। मन हमारी इंद्रियों का स्वामी है।एक तरफ हमारीं इन्द्रियाँ जहाँ भौतिक विषयवस्तु की तथ्यसूचना प्राप्त करने का कार्य करती हैं, वहीं हमारा मन
इन इंद्रियों में ज्ञानरुपी प्रकाश बनकर इन तथ्यों का विश्लेषण कर व उनको निर्देश
प्रदान कर हमारे विचारों के रुप में हमें
यथोचित कर्म करने हेतु उत्प्रेरित करता है ।इस प्रकार हमारा मन जितना शुभसंकल्प
युक्त है, हमारा जीवन व इसका अभीष्ट कर्म उतना ही शुभ, सुंदर, पवित्र व कल्याणमय
होता है।
पाठकों की सुविधा हेतु मैंने रुद्राष्टाध्यायी
पुस्तक व इंटरनेट पर प्राप्त हुई जानकारी के आधार पर शिवसंकल्प सूक्त के इन छः
अद्भुत संस्कृत श्लोकों व इनके हिंदी में अर्थ यहाँ प्रस्तुत किया है-
शिवसंकल्प सूक्त
यज्जाग्रतो दूरमुदैति
दैवं तदु
सुप्तस्य
तथैवैति
।
दूरंगमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे
मनः
शिवसङ्कल्पमस्तु
॥१॥
वह दिव्य ज्योतिमय शक्ति (मन) जो हमारे जागने की अवस्था में बहुत दूर तक चला जाता है, और हमारी निद्रावस्था में हमारे पास आकर आत्मा
में विलीन हो जाता है,वह प्रकाशमान श्रोत जो हमारी इंद्रियों को प्रकाशित करता है, मेरा वह मन शुभसंकल्प युक्त
( सुंदर व पवित्र विचारों से युक्त) हो।
येन कर्माण्यपसो मनीषिणो यज्ञे कृण्वन्ति विदथेषु
धीराः
।
यदपूर्वं यक्षमन्तः प्रजानां तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥२॥
जिस मन की सहायता से
ज्ञानीजन(ऋषिमुनि इत्यादि)कर्मयोग की साधना में लीन यज्ञ,जप,तप करते हैं,वह(मन)
जो सभी जनों के शरीर में विलक्षण रुप से
स्थित है, मेरा वह मन शुभसंकल्प युक्त ( सुंदर व पवित्र विचारों से युक्त) हो।
यत् प्रज्ञानमुत चेतो
धृतिश्च यज्ज्योतिरन्तरमृतं प्रजासु
।
यस्मान्न ऋते किञ्चन
कर्म
क्रियते
तन्मे
मनः
शिवसङ्कल्पमस्तु ॥३॥
जो मन ज्ञान, चित्त , व धैर्य स्वरूप ,
अविनाशी आत्मा से सुक्त इन समस्त प्राणियों के भीतर ज्योति सवरुप विद्यमान है, वह
मेरा मन शुभसंकल्प युक्त ( सुंदर व पवित्र विचारों से युक्त) हो।
येनेदं भूतं भुवनं
भविष्यत्परिगृहीतममृतेन
सर्वम्
।
येन यज्ञस्तायते सप्तहोता तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥४॥
जिस शाश्वत मन द्वारा
भूत,भविष्य व वर्तमान काल की सारी वस्तुयें सब ओर से ज्ञात होती हैं,और जिस मन के
द्वारा सप्तहोत्रिय यज्ञ(सात ब्राह्मणों द्वारा किया जाने वाला यज्ञ) किया जाता
है, मेरा वह मन
शुभसंकल्प युक्त ( सुंदर व पवित्र विचारों से युक्त) हो।
यस्मिन्नृचः साम यजूंषि
यस्मिन् प्रतिष्ठिता
रथनाभाविवाराः
।
यस्मिंश्चित्तं सर्वमोतं
प्रजानां तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥५॥
जिस
मन में ऋग्वेद की ऋचाये व सामवेद व यजुर्वेद के मंत्र उसी प्रकार स्थापित हैं,
जैसे रथ के पहिये की धुरी से तीलियाँ जुड़ी होती हैं, जिसमें सभी प्राणियों का
ज्ञान कपड़े के तंतुओं की तरह बुना होता है, मेरा वह मन शुभसंकल्प युक्त
( सुंदर व पवित्र विचारों से युक्त) हो।
सुषारथिरश्वानिव यन्मनुष्यान् नेनीयतेऽभीशुभिर्वाजिन इव ।
हृत्प्रतिष्ठं यदजिरं
जविष्ठं तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥६॥
जो मन हर मनुष्य को
इंद्रियों का लगाम द्वारा उसी प्रकार घुमाता है, तिस प्रकार एक कुशल सारथी लगाम
द्वारा रथ के वेगवान अश्वों को नियंत्रितकरता व उन्हें दौड़ाता है,
आयुरहित(अजर)तथा अति वेगवान व प्रणियों के हृदय में स्थित मेरा वह मन शुभसंकल्प युक्त ( सुंदर व पवित्र विचारों से
युक्त) हो।
शिवसंकल्प सूक्त की Mp3 file का लिंक नीचे दिया है। मुझे विश्वास है आप अवश्य इसे सुनकर मेरी ही
तरह इन मंत्रों में कुछ क्षणों हेतु खो ही जायेंगे।
अंत में इसी कामना के साथ यहां इति की
अनुमति चाहता हूँ कि मेरा वह मन शुभसंकल्प युक्त ( सुंदर व पवित्र विचारों से युक्त) हो –
तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु।
आत्मा का आरोह अवरोह...हम बस दृष्टा...
ReplyDeleteअद्भुत,धन्यवाद लिन्क के लिए
ReplyDeleteअद्भुत,धन्यवाद लिन्क के लिए
ReplyDeleteWhere is link.
Deleteअद्भुत,धन्यवाद लिन्क के लिए
ReplyDeleteVery cool post. I like the way you present ..informative blog...
ReplyDeleteShiva Rudra abhishek online
dhanyavaad
ReplyDeleteWant to listen chanting
ReplyDeleteआप जैसा ही मेरा अनुभव रहा है.मैने भी पितामह एवं पिताजी से रुद्राष्टाध्यायी का पाठ कइ बार सुना था तभी तो कर्णप्रिय लगने से सुनने पर मात्र आनंद प्राप्त होता था बाद में जब थोडी समझ बढी तब अर्थ पता चला । अद्भुत है हमारे पूर्वज ।
ReplyDeleteशिव सरल ,सबल,सकल ।
ReplyDeleteशिव मेरे संकल्प हर पल।।
साधुवाद ।
Plz resend link
ReplyDeleteकृपया एमपी3 की लिंक भेजे मित्र।
ReplyDeleteकोटि कोटि नमन।।
https://youtu.be/Yf3R3tzV2zA
Deleteधन्यवाद!
ReplyDeleteहरि ॐ तत्सत्त॥
स यत्कृतर्भवति तत्कर्म कुरुते, यत्कर्म कुरुते तदभिसम्पद्यते
ReplyDelete~~~~~~~~तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ।~~~~~~~~
पुरुष जैसा संकल्प करने लगता है, वैसा ही आचरण करता है और जैसा आचरण करता है, फिर वैसा ही बन जाता है । उनके अनुसार कर्म का आधार मन में उठने वाले विचार है । भारतीय वाङ्गमय में मन एवं उसके निग्रह पर मनीषियों ने बहुत कुछ कहा है ।!! शिवसंकल्प!! का संबंध भी `मन` से है । ईश्वर से की गई अपनी प्रार्थनाओं में वैदिक ऋषि कहते हैं कि वह उन्हें शारीरिक तथा वाचिक ही नहीं अपितु मानसिक पापों से भी दूर रखें । उनके मन में उठने वाले संकल्प सदैव शुभ व श्रेयस्कर हों । मनुष्य का मन अपूर्व क्षमतावान् है, उसमें जो संकल्प जाग जाएं, उनसे उसे विमुख करना बहुत कठिन कार्य है । इसीलिए ऋषि मन को शुभ व श्रेष्ठ संकल्पों से युक्त रखने की प्रार्थना करत्ते हैं ।
Thanks ji
Deleteom namah shivay
ReplyDeletehttps://youtu.be/Yf3R3tzV2zA
ReplyDeleteबहुत सुंदर धन्यवाद
ReplyDeleteधन्यवाद कम पड़ेगा।आप अपना मो नम्बर दे सकते हैं करता? ...7781818601
ReplyDelete