Tuesday, August 27, 2013

हमारे माननीय नेता और मंत्री -जनहित में काम नहीं करते तो कम से कम बोलने में तो संयम रखें!



यह सिर्फ नारी के साथ ही नही देश की आत्मा के साथ बलात्कार है .

विगत सप्ताह मुंबई में एक युवा महिला पत्रकार के साथ बलात्कार की घटना अति जघन्य व शर्मनाक है , किंतु इस घटना पर महाराष्ट्र के गृहमंत्री श्री आर आर पाटिल का दिया बयान कि महिलाओं को अपने काम के सिलसिले में किसी सुनसान अथवा विषम स्थान पर जाने से पहले पुलिस की अनुमति व इस्कोर्ट लेनी चाहिए, इस घटना से भी ज्यादा शर्मनाक व निराशा जनक है ।
याद आता है कि घटना के एक दिन बाद हमारे देश के एक प्रमुख नेता व माननीय सांसद श्री लालू प्रसाद यादव जी व उनके राजनीतिक बंधु बिहार राज्य के मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार ने भी कुछ इसी प्रकार का बयान दिया था । इसी प्रकार घटना के एक दो दिन बाद टीवी पर किसी चर्चा में भाग लेते समाजवादी पार्टी के एक नेता व माननीय सांसद श्री नरेश अग्रवाल को यह कहते सुना कि देश में बढ़ते बलात्कार की घटनाओं हेतु फिल्मों व टीवी में दिखाई जाने वाली हिंसा और लड़कियों, महिलाओं द्वारा पाश्चात्य व आधुनिक फैसन में उत्तेजक परिधान धारण करना है ।
इसी प्रकार स्मरण आता है कि कुछ वर्ष पूर्व दिल्ली में एक युवती, जो आधी रात्रि के समय अकेली कार से किसी सुनसान रास्ते से अपने ऑफिस से घर वापस जा रही थी, की बलात्कार व हत्या की घटना पर वहां की मुख्यमंत्री, जो कि स्वयं महिला हैं, का बयान था कि महिलाओं को असमय रात को और अकेले घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए ।
प्रश्न यह उठता है कि हमारी सरकार,इसके मंत्री और हमारे चुने जनप्रतिनिधि जनता के जानमाल व मौलिक अधिकारों की रक्षा, जनता के हित में काम करने हेतु जनता द्वारा चयनित और नियुक्त होते हैं अथवा जनता को मात्र उपदेश देने और उसे अपना नैतिक ज्ञान बघारने हेतु?
यह अति दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि दिल्ली और मुंबई जैसे हमारे देश के प्रधान शहरों में भी किसी युवती के साथ सरेआम बलात्कार व हत्या जैसी घटना के उपरांत वहाँ की सरकार के मुखिया, मंत्री कानून और व्यवस्था की विफलता की नैतिक जिम्मेदारी लेने व स्वयं को ऐसे जघन्य अपराधों हेतु नैतिक रूप से जिम्मेदार मानने के बजाय उल्टा अराजकता की शिकार महिलाओं व आम जनता को ही अपना उपदेश व नसीहत का पाठ पढ़ाना शुरू कर देते हैं कि युवा महिलाओं के साथ बलात्कार जैसी घटनाओं हेतु उनकी अपनी उत्तेजक भेषभूषा, घर से उनका असमय व अकेले बाहर निकलना या स्थानीय पुलिस को अपने आने जाने की सूचना न देना ,इत्यादि इत्यादि है,यानि उनके कहने का लब्बोलुआब यह कि महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना व हादसा हेतु महिलायें स्वयं ही दोषी हैं ।
कई बार तो अति तब हो जाती है जब हमारे कुछ महान नेता "पाप से घृणा करो पापी से नहीं" की तर्ज पर जनता को अपना संत उपदेश देते यहाँ तक कहते सुने जा सकते हैं कि बेचारे बलात्कारी तो अबोध बालक हैं, वे तो बस टीवी और फिल्मों में हिंसा देखकर गुमराह और भटक जाते हैं और बलात्कार व हत्या की साधारण सी नादानी कर देते हैं ।
 
यह जनता और देश के साथ कैसा मजाक है? क्या हमारे जनप्रतिनिधियों, जिम्मेदारी के शीर्ष पद पर आसीन मंत्रियों को इस साधारण सत्य का कतई भान नहीं कि देश का संविधान जनता का धरोहर है, संविधान के अंतर्गत सरकार का चयन करते एवं स्वयं भी संविधान का अनुपालन करने हेतु कानून से प्रतिबद्ध, जनता अपनी आत्मरक्षा व सुरक्षा के सारे अधिकार सरकार को इसी विश्वास के साथ सुपुर्द कर देती है कि सरकार उसके जानमाल,इज्जत आबरु, उसके मौलिक अधिकारों की रक्षा करेगी , अतः सरकार की यह न सिर्फ नैतिक अपितु यह उसकी वैधानिक जिम्मेदारी है कि वह राज्य के प्रत्येक नागरिक के जान माल व मौलिक अधिकारों की रखवाली व पूरी तरह रक्षा करे, न कि जनता को मात्र कानून का पाठ पढ़ाये और जनता के साथ किसी अन्याय व अपराध की स्थिति में इनपर किसी प्रकार की रोकथाम व प्रभावी कार्यवाही करने के बजाय उल्टा जनता के आचरण व व्यवहार में मीनमेख निकाल उसे नैतिकता का उपदेश बघारे।
हमारे जनप्रतिनिधियों को अपने पाखंडपूर्ण व्यवहार को त्याग जनता व देश के प्रति अपनी नैतिक व वैधानिक जिम्मेदारी पर गंभीरता व ईमानदारी से ध्यान देना चाहिए ।उन्हें यह समझना चाहिए कि हमारी स्वतंत्रता का अर्थ है आम नागरिक को स्वतंत्र बोलने की आजादी, स्वतंत्र खाने, पहनने की आजादी, स्वतंत्र घूमने, आने जाने, अपना कार्य व्यवहार की आजादी,आम नागरिक को अपने हर प्रकार के दैनिक कार्यव्यवहार की आजादी,और इस प्रकार की अति साधारण आजादी की अनुपस्थिति में हमारी स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं ।
आम नागरिक हेतु इस दैनिक कार्य व्यवहार की आजादी व इसकी गारंटी उपलब्ध कराना हमारी सरकार व हमारे चयनित जनप्रतिनिधियों की नैतिक व वैधानिक जिम्मेदारी है ।और विडंबना यह कि हमारे सरकार के मंत्री व जनप्रतिनिधि अपनी इस नैतिक व वैधानिक जिम्मेदारी निर्वहण में पूरी तरह विफल, उल्टा राज्य मे व्याप्त अराजकता, बिगड़ती कानून व्यवस्था व इसकी शिकार व त्रस्त जनता को नैतिकता का उपदेश व नसीहत सुनाते हैं ।
सरकार की ढुलमुल नीति, और देश भर में बिगड़ती कानून व्यवस्था और हाल ही मुंबई व हरियाना राज्य में घटित बलात्कार की शर्मनाक घटनाओं पर चिंता जताते हमारी सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार, केंद्रसरकार व सभी राज्य सरकारों,  को कड़ी फटकार लगायी है, उसका कहना है -
"Something has seriously gone wrong in the society. Something appears to have broken down in society and in the law enforcing machinery. It doesn’t appear we are living in a state ruled by law . The authorities need to explain."
अर्थात् हमारे समाज में कहीं कुछ गंभीर रूप से ग़ड़बड़ चल रहा है, हमारी सामाजिक  व कानून व्यवस्था में गम्भीर रूप से बिखऱ गयी है।लगता ही नहीं कि हम किसी कानून संचालित राज्य में रह रहे हैं। सरकार इस हेतु जबाबदेह है ।
अरे महोदय आप अपनी वैधानिक जिम्मेदारी, जनता का हित उसकी सुरक्षा का दायित्व,ठीक से निभा नहीं सकते तो कम से कम बकवास तो न करें, कम से कम थोड़ी शालीनता व मर्यादा का ध्यान रख अपना मुँह तो बंद रख सकते हैं !

Saturday, August 24, 2013

क्या हम एक सभ्य और सुरक्षित समाज व देश में रह रहे हैं ?

शर्मनाक हादसा की गवाह- शक्ति मिल मुंबई
 हर सुनसान स्थान खतरे से भरा है नारी के लिये

पुनः एक वहसियाना,पाशविक व हमारे देश में आम आदमी,विशेषकर नारी, की स्वतंत्रता व उसकी अस्मिता,मानमर्यादा पर, संविधान अंतर्गत आम नागरिक को प्रदत्त सभी मौलिक अधिकारों व राज्यप्रशासन की कानून और शासनव्यवस्था की धज्जी उड़ाते, एक हिंसक प्रहार व इसका क्रूर हनन करती,मानवता को लज्जित करती शर्मनाक घटना ।

मुंबई में दो दिन पूर्व घटित , एक युवा फोटो जर्नेलिस्ट का सुनसान जगह पर हिंसक दरिंदों द्वारा वहसियाना व पाशविक तरीके से बलात्कार व हिंसा की घटना , उसी प्रकार दिल को दहलाने वाली घटना है, जैसी घटना कुछ माह पूर्व दिल्ली मे हुई थी जिसमें वहसी दरिंदों के हिंसा व बलात्कार की शिकार युवती दामिनी को अपने जीवन से ही हाथ धोना पड़ा।

ऐसी घटनाओं के पश्चात तो सरकार,प्रशासन व सुरक्षा तंत्र व कानून व्यवस्था से आम नागरिक को अपने नागरिक अधिकार व सुरक्षा के प्रति किसी प्रकार के आश्वासन से विश्वास ही उठ जाता है, लगता ही नहीं कि हम किसी सभ्य व कानून संविधान पालित देश राज्य में रह रहे हैं, गोया यहाँ बस जंगल राज का बोलबाला है,हमारे चारों ओर हिंसक व वहसी जानवर स्वच्छंद घूम रहे हैं, और जरा सा भी असावधान हुए कि ये आक्रमण कर हमें अपना शिकार बना सकते हैं ।

ऐसा नहीं कि समाज में पाशविक प्रवृत्ति के लोगों की कभी भी, किसी भी काल में , एकदम अनुपस्थिति रही हो, सर्वकाल क्या सतयुग क्या कलयुग , वे सदैव कमोवेस मौजूद रहे हैं, परंतु एक सभ्य समाज में उनकी सकृयता दबी और नियंत्रित होती है, अपराध व अराजक घटना होती भी है तो अपवाद स्वरूप व दाकदा , उन्हें राज्य,समाज व कानून का भय होता है जिससे वे अराजकता फैलाने व अपराध करने सौ बार डरते हैं, और यदि उन्होंने कोई दुस्साहस किया भी तो राज्य व कानून उन्हें कठोर दंड देकर उनमें भय और अंकुश रखता है ।

आज भी विश्व के किसी भी सभ्य व विकसित देश का उदाहरण लें तो वहां दुराचारियों का दुस्साहस,और इस प्रकार की अराजक घटना यदा कदा ही होती है,और यदि हुई भी तो सरकार व कानून इसपर कड़ी कार्यवाही करते अपराधियों को ऐसा कठोर दंड देता है कि दुराचारियों के हौसले पस्त रहें और दुबारा ऐसी दुर्घटना न होने पाये ।

सके विपरीत हमारे देश में ऐसे दुराचार करने वाले अपराधियों व दुराचारियों के विरुद्ध राज्य व कानून कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं करता, सारी राज्य व्यवस्था स्वयं अराजक व्यवहार-ग्रसित व अस्तव्यस्त पड़ी है, यहाँ तक कि अपराधियों व दुराचारियों का ही सरकार, प्रशासन व कानून, न्याय व्यवस्था में खुले आम हस्तक्षेप व बोलबाला है। जिन दुराचारियों को बेड़ियां पहनाकर जेल के शिकंजों के पीछे होना चाहिए, वही उल्टे हमारे संविधान के नियंता, विधान निर्माता और कानून के रक्षक कहलाते हमारे सरकार बने बैठे हैं ।वे स्वच्छंद बिना रोकटोक के सारे दुराचार स्वयं कर रहे हैं व अन्य दुराचारियों को भी प्रश्रय देते हैं ।आज जघन्य से जघन्य अपराधी व दुराचारी को अंदर से पूरा विश्वास और बल होता है कि वह चाहे जो भी दुराचार, अपराध, हिंसा करे, उसको कोई न कोई राजनैतिक अथवा प्रशासनिक आका व संरक्षक मिल ही जायेगा, जो उसे किसी भी प्रकार की सजा अथवा दंड से बचा ही लेगा ।

यह राजनेता इतने धूर्त हैं कि जनता की आँख में धूल झोंकने के लिये देश के संविधान के मंदिर में बैठकर लच्छेदार व भारीभरकम कानून बनाते हैं, जैसा कि दिखावे के लिए दिल्ली में दामिनी कांड के बाद इन्होंने बलात्कार के विरुद्ध नये कानून का झुनझुना जनता को दिखाकर किया था, फिर जब उसी कानून के तहत किसी अपराधी को सजा देने की बारी आती है, तो यही राजनेता जाति, धर्म व समुदाय का वितंडा फैला कर इन्हीं जघन्य अपराधियों की पैरोकारी करते व उन्हें अपना शरणागत बनाते उनको किसी प्रकार की कानूनी कार्यवाही और सजा से बचा लेते हैं और इस प्रकार से राजनेताओं द्वारा जघन्य अपराधियों को अभयदान मिलता है ।

अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक निर्णय में इन धूर्त राजनेताओं की मनमानी व इनकी अराजकता पर अंकुश लगाने हेतु अपराधियों व कानून की दृष्टि में दोषी व्यक्ति क चुनाव में लड़ने से प्रतिबंधित करने का आदेश दे दिया जो निश्चय ही अपराधियों का मनोबल तोड़ने व उनपर अंकुश रखने में अति कारगर सिद्ध होता , तो सभी पार्टियों के नेता , जो जनता को दिखाने के लिए तो आपस में लड़ने का स्वांग करते हैं, एकजुट होकर सुप्रीम कोर्ट के इस महत्वपूर्ण निर्णय को संसद में प्रस्ताव लाकर पलट दिय, और इस प्रकार अपने जैसे ही अन्य व भाईबन्धु शातिर अपराधियों व दुराचारियों हेतु संसद व विधायिका का दरवाजा निष्कंटक बना दिया है ।

हाय रे देश का दुर्भाग्य कि आज चोर ही कोतवाल बने बैठे हैं, अपराधी ही न्याय करते और उचित-अनुचित का फैसला सुना रहे हैं ।आश्चर्य व दुख तो यह होता है कि इनमें जो यदा कदा अच्छे व विचारशील नेता हैं भी , कम से कम वे आततायी और अपराधी तो नहीं है, तो वे भी सत्ता लोभ व अपनी कुर्सी बचाये रखने के चक्कर में शातिर व अपराधी राजनेताओं के गुट के दुष्चक्र व दबाव में फँसकर जनहित के प्रति आँख मूंदकर मूकदर्शक बने उन्हें अपनी मनमानी करने दे रहे हैं ।

ऐसे चहुँओर असुरक्षित व अराजक परिवेश, जहाँ दिन दहाड़े आमआदमी की बहू बेटियों का जीवन व आबरू खतरे में दिखती है, उसके मन में घोर निराशा व भय जगती है,देश में व्याप्त चारों ओर भ्रष्टाचार व तिकड़म बाजी के कारण उसके मन में पुलिस व न्याय व्यवस्था से भी कोई सुरक्षा व न्याय की उम्मीद नहीं दिखती।


दुर्भाग्य से मिडिया भी, जो जनता की आवाज मानी जाती है, अपनी व्यावसायिक विवशता व इस पर व्यवसायी वर्ग के नियंत्रण के कारण जनता के मुद्दे के प्रति कम, अपने व्यावसायिक हित को ज्यादा ध्यान में रखती है ।इस प्रकार क दुर्भाग्य पूर्ण घटनाओं को हमारी मीडिया शुरूशुरू में तो खूब सनसनीखेज बनाकर जनता में अपनी बिक्री बढ़ाने हेतु जोर शोर से उछालत है, पर जैसे ही मामला पुराना हुआ, या कोई नया ज्यादा बिकने वाला मुद्दा मिला, पुराने को कूड़े दान में डाल देते हैं,और इसप्रकार हर मुद्दा अंततः अपनी ही मौत मर जाता है ।

वैसे भी अपराधियों पर कानूनी कार्रवाई व दंडप्रक्रिया में मीडिया की अपनी सीमायें हैं, अंततः तो बड़े से बड़े व जघन्य से जघन्य अपराध में भी पीड़ीत को न्याय व अपराधी को दंड  तो पुलिस व प्रशासन की दक्षता व कुशलता ,सत्यनिष्ठा व उनकी स्वतंत्र रूप से काम करने की क्षमता, सही साक्ष्य को जुटाने, कानूनी औपचारिकताओं को पूरा कर पाने पर ही निर्भर करता है ।और दुर्भाग्य से यह देखा गया है कि हमारे देश में अपराधी और दोषी कानूनी तिकड़म बाजी और इसकी जटिल औपचारिकताओं में पुलिस व प्रशासन पर भारी पड़ते हैं, और प्रायः बड़े से बड़ा अपराधी व गुनहगार भी कानूनी तिकड़म व अपने राजनीतिक आकाओं की मदद से अपने जघन्य से जघन्य अपराध के लिए भी बिना कोई सजा पाये न्यायालयों द्वारा निर्दोष बरी हो जाता है ।

ऐसी निराशाजनक व जटिल परिस्थितियों में यह अनिवार्य व आवश्यक हो गया है कि हमारे पुलिस व प्रशासन प्रणाली एवं न्याय व दंड प्रणाली में संस्थागत बदलाव लाते उनकी कार्यप्रणाली ज्यादा कुशल, दक्ष व पारदर्शी बनायी जाय,तभी आम आदमी का कानून व प्रशासन व्यवस्था तंत्र में विश्वास वापस व कायम हो सकता है, तभी हम स्वयं व अपने बच्चों को एक सभ्य समाज व वैधानिक राज्य के स्वतंत्र नागरिक होने का आश्वासन व विश्वास दे सकते हैं ।