Saturday, January 24, 2015

जीवन यात्रा ...... एक सरित प्रवाह


उठते सुबह का उनींदापन और आलस्य,
या शाम के थके पाँव
कराते अनुभव निराशा और उत्साह हीनता का
रुकते , ठहरते , धीमे पड़ते , मना करते से
जीवन पथ पर आगे बढ़ने से ,
करते मन को जोशहीन , उलाहना से देते कि
बहुत हो चुका , बहुत चल चुके , बहुत कर चुके
वही पुराने काम और  घिसी-पिटी सी बातें और जरूरतें
रोज रोज की , कितनी नीरस ,  उत्साह हीन सी
वही पुरानी बात , चकल्लस , लोग पुराने
नया नहीं कुछ करने को , कहने को ,
मिलने को , आगे बढ़ने को !

फिर विवेक के कोने से ,
मन में जगता एक रिमाइंडर कि
देखो ! सूरज भी तो उगता है प्रतिदिन
निश्चित समय और जगह से ,
चलता रहता एक गति से , एक ही पथ से
प्रतिदिन , प्रतिपल , बिना थके वह , बिना निराशा
निश्चित पथ पर अविचल , अविकल
बिन गति खोये , सदा युक्तश्री
स्वयं धरा यह , प्रकृति पूर्ण यह
निज गति में और निहित कर्म को नियमित करते
पथ पर हैं वे आगे बढ़ते , अपने अपने निर्धारित पर ।

यही धर्म है , यही कर्म है , जीवन है यह ही
कि अपने अपने निर्धारित जीवन- पथ पर
बिना निराशा, उकताये बिन ,
निज शक्ति , संकल्प संग ले ,
बढ़ते रहना , चलते रहना ।
गति ही देता नवीनता , नूतनता जीवन में ,
सरित-प्रवाह ही जीवन है ।
© देवेंद्र