Friday, July 13, 2012

क्या यही उत्सर्ग है?



धारणा है दृश्य इतना बन चुका
कि सत्य ही है बनगया अदृश्य है।
तलाशते थे प्रश्न जिनको युगयुगों से,
बन गये उत्तर वहीं अब पृक्ष्य हैं।1

भाव जो अभिव्यक्त थे अतिमुखर होकर,
शब्द एकांगी बने और अर्थ उनके मौन हैं।
कल बुलंदी पर चढ़ी जिनकी जवानी
आज  बनते वे कहीं छिन्नमय अबशेष हैं 2

निज करों से प्रकृति का , है मनुज  संहार करता,
करते धरा की माँग उजड़ी क्या यही उत्सर्ग है?
विभाज्य अनदेखा हुआ बस भाग्यफल की फिक्र है,
इस विभाजन के अनंतर क्या बचा अवशेष है ?3

अमृत कलस मिल बाँट पीते देव-दानव हिलमिले।
होता रहा है धरा का बस गरल से अभिषेक है।
आइने में ढूढ़ता था वजूद दिखता हमशक्ल सा,
समझता था जिसे अपना वह अक्स भी अब गैर है।4

हवा भी खामोश दिखती,शांत सब तरुवर खड़े,
खग दिखे विचलित, क्या यह तूफान का संदेश है?
मित्र उनको समझते  हम शांति-पद रचते रहे ,
लूटे गये अनजान रहते कि युद्ध का छलभेष है।5

Saturday, July 7, 2012

टीम की जीत

  
'टीम की जीत का उत्सव
विगत सप्ताह सम्पन्न हुये यूरो-2012 कप को स्पेन की टीम ने जीता। यह एक-दो सुपर हीरो स्टार खिलाड़ी के चमत्कारी खेल प्रदर्शनजैसा कि प्राय: इस तरह के मैच में अपेक्षित व निर्णायक सिद्ध होता है, के बजाय एक टीम की जीत थी। 

इस जीत पर दुनिया भर से फुटबाल खेल विशेषज्ञों व खेल-प्रेमियों ने अपनी खास टिप्पड़ी दीं किंतु मुझे सबसे प्रभावित करने वाली टिप्पड़ी लगी अमरीकी नेनल फुटबाल टीम के प्रधान कोच व जर्मनी के भूतपूर्व प्रसिद्ध फुटबाल खिलाड़ी जुर्गान क्लिंसमान की, जिन्होंने स्पेन की इस अद्भुत जीत पर इन शब्दों में प्रतिक्रिया व्यक्त की-

'यह (जीत) एक उत्कृष्ट दर्जे की व जीत के प्रति भूख व तीव्र इच्छाशक्ति के संगम का बेजोड़ नजीर है। जीत के लिये(प्रत्येक खिलाड़ी की) टीम के प्रति पूर्ण समर्पण की आवश्यकता होती है।कठिन क्षणों में जज्बे को बनाये रखना व व्यक्तिगत अहंभाव को किनारे रख लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पण की आवश्यकता होती है।विगत कुछ वर्षों में जिस तरह का प्रदर्शन उनका ( स्पेन की टीम) रहा है,जैसे कि बिना रेगुलर स्ट्राइकर के इस कप में खेलना,जो विरोधी टीमों में भ्रम की स्थिति,स्वयं के लिये नये अवसर और इस प्रकार विरोधी को एक प्रकार से असहाय बना देता है।मेरे विचार से यह शताब्दी की फुटबाल टीम है।'

एक महान खिलाड़ी की इस टीम की जीत पर  ऐसी सटीक प्रक्रिया जीत के किसी मंत्र से कम नहीं । 

विचार करें तो यह सिर्फ फुटबाल के मैच में ही नहीं अपितु जीवन के हर क्षेत्र- चाहे व्यावसायिक क्षेत्र हो अथवा प्रशासनिक क्षेत्र, चाहे  अनुसंधान का क्षेत्र हो या जन सेवा का क्षेत्र, में सटीक लागू होती है।

हालाँकि किसी भी टीम की जीत में उसके कुशल नेतृत्व ,सदस्यों के व्यक्तिगत कौशल व प्रेरणादायी प्रदर्शन के महत्व को कमतर कर आँका नहीं जा सकता,किंतु इसमें कोई दो मत नहीं कि अंतत: तो एक टीम ही जीतती है।एक टीम में भले ही व्यक्ति विशेष का प्रदर्शन उत्कृष्ट व लाजबाब हो परंतु  यदि टीम एक टीम की तरह नहीं खेल पायी, तो जीत प्राय: हाथ से खिसक जाती है। इस बात को स्पष्ट करने हेतु  भारतीय क्रिकेट टीम से अच्छा उदाहरण भला और क्या हो सकता है? चाहे 1983 का लॉर्ड्स के मैदान में वेस्टइंडीज के विरुद्ध कपिलदेव के कप्तानी में भारतीय टीम की प्रुडेंसियल विश्वकप की जीत हो अथवा सन् 2011 में वानखेड़े ग्राउंड पर श्रीलंका की जबरदस्त टीम के विरुद्ध धोनी की अगुआई में आई सी सी वर्ल्डकप की जीत,यह टीम की ही तो जीत थी। वरना तो ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जब कुछ एक खिलाड़ियोंके जबरदस्त प्रदर्शन के बावजूद भी, टीम की विफलता के कारण भारतीय क्रिकेट टीम के हाथ से जीत के अनेकों सुनहरे अवसर निकल गये व टीम फिसड्डी साबित हुई

हमारे व्यावसायिक जीवन व कार्यक्षेत्र में भी ऐसे उदाहरण प्रायः ही हमें देखने व अनुभव करने को मिल जाते हैं कि व्यक्तिगत कौशल व प्रतिभा की भरमार होने के बावजूद टीम-भावना की कमी व परस्पर बिखराव के कारण कितने ही संस्थान या व्यावसायिक कंपनियाँ बुरी तरह से असफलता के शिकार होते हैं, और अंततः इतिहास के अंधेरे में कहीं गुमनाम हो जाते हैं।कितने ही सफल संस्थान व कंपनी जो कभी सफलता की पराकाष्ठा पर रहे, किंतु जैसे ही उनकी टीम बिखरी, पूरा संस्थान ही बिखर कर धूल में मिल गया।

हमारे सरकारी विभागों की कार्यप्रणाली में भी दुर्भाग्य से टीम भावना का प्रायः भारी अभाव होता है, जिस कारण सारे संसाधनों व सुअवसरों की मौजूदगी के बावजूद वे उन उपलब्धियों व लक्ष्यों को प्राप्त कर सकने से प्रायः चूक जाते हैं, जो उन्हें सहजता से उपलब्ध करना चाहिये था।शहरी व्यवस्था व रखरखाव हेतु जिम्मेदार विभिन्न संस्थानों व विभागों में परस्पर समन्वय व टीमभावना की भारी कमी स्पष्ट दिखाई देती है, नतीजतन हमारा शहरी प्रबंधन हर मोर्चे पर बुरी तरह फेल रहा है और हमारे शहर प्रायः भारी दुर्दशा व कुव्यवस्था के शिकार हैं। यही हाल अन्य जन सेवा सुविधा प्रदान करने वाले विभागों व संस्थानो – वह चाहे जनपरिवहन हो अथवा कोई अन्य महत्वपूर्ण जनसुविधा, का भी है, जहाँ विभिन्न विभाग व संस्थान परस्पर समन्वय व टीमवर्क से कोसों दूर एकांगी  सिलो में कार्य करते हैं, और नतीजतन अपने उद्देश्य की पूर्ति में बुरी तरह फेल होते हैं।

टीम के महत्व व इसकी बेजोड़ ताकत को इसी कहावत से अच्छी तरह समझा जा सकता हैं कि एक और एक मिलकर ग्यारह हो जाते हैं, जबकि एक बिखरी हुई हजारों की सेना की वास्तविक ताकत मात्र एक सिपाही की निजी ताकत होती है। इतनी छोटी सी चींटी किंतु वह समूह बनाकर व अपने  सामूहिक प्रयास से  एक अप्रत्यासित ऊँचे टीले का निर्माण कर सकने में सक्षम होती हैं, वहीं आपसी बिखराव व असहमति के कारण शेर जैसा विशाल व शक्तिशाली जानवर बुढ़ापे अथवा घायल अवस्था में होने पर अपने समुदाय में पारस्परिक सहयोग के अभाव के कारण भूखा-प्यासा दम तोड़ देता है।इसी तरह की असहमति व बिखराव मनुष्य को भी शारीरिक व आर्थिक असमर्थता की स्थिति में प्रायः कतई कमजोर ,लाचार व दीनहीन  बना देती है।

अंडा सेता व्हूपिंग क्रेन पक्षी
यदि ध्यान दे तो पशु पक्षियों में प्रायः हमें आपसी एका व टीम-भावना के बड़े ही जीवंत व प्रभावी उदाहरण देखने को मिल जायेंगे।काली क्रेन (whooping crane) पक्षी टीम-भावना का सबसे अच्छा उदाहरण है।नर व मादा दोनों बारी-बारी से सिफ्ट में अंडा सेते हैं। इसी तरह अपने नन्हे बच्चों की परवरिस की जिम्मेदारी दोनों बराबरी से निभाते हैं।व्यवसायिक कार्यजगत के परिपेक्ष्य में इसे इसतरह समक्ष सकते हैं कि यदि एक टीम-सदस्य किसी कारणवश अनुपस्थित हो तो दूसरा उस जिम्मेदारी को सहजतापूर्वक उठा लेता है।

घोसले में स्वयं का सील कर अंडा सेती मादा को भोजन कराता  नर हॉर्नबिल पक्षी 
इसी प्रकार हार्नबिल पक्षी नर-मादा दोनों अपने घोसले में स्वयं को बंद कर घोसले के प्रवेशमुख को मिट्टी व पत्तों से बंद कर साथ-साथ अंडे को सेते हैं, जबकि उनके अन्य साथी नर-मादा हार्नबिल पक्षी भोजन की तलाश व इकट्ठा कर घोसले के अंदर बैठे अंडा सेते अपने साथी पक्षी-जोड़े के लिये तब तक भोजन का इंतजाम करते हैं जब तक अंडे से बच्चे बाहर न आ जायें।हमारे टीमवर्क के परिपेक्ष्य में यह इस बात का प्रतीक है कि किसे खास प्रोजेक्टकार्य की अवधि सभी टीमसदस्य एक जुट हो बिना बाहरी लोगों से कोई बात लीक किये परस्पर संवाद व सहयोग करके प्रोजेक्ट का सफलतापूर्वक पूरा होना सुनिश्चित करते हैं।

इसी प्रकार युगल जोड़े में रहने वाले अन्य पक्षी, विशेष तौर से क्रेन प्रजाति के पक्षी, में दोनों ही घोसले बनाने, अंडे सेने में बराबरी का सहयोग करने, व एक की शारीरिक असमर्थता में दूसरे द्वारा भोजन की व्यवस्था करने व अपने साथी का बराबर खयाल रखने का उदाहरण प्रायः देखने को मिलता है। व्यवसायिक परिपेक्ष्य में इस उदाहरण का यह महत्व है कि टीम के सभी सदस्य समान  महत्व रखते हैं और प्रोजेक्ट के सफलतापूर्वक पूर्ण होने में सबकी भागीदारी बराबर महत्व की होती हैं।

भेद-भाव रहित वात्सल्य
इसी प्रकार देखा गया है कि हाथी के झुंड में हर स्तनपान कराने वाली मादा हाथी एक दूसरे के  छोटे बछड़े हाथी को , बिना अपना-पराया बच्चे का भेद किये, स्तनपान कराती है ।टीम के परिपेक्ष्य में इस बात का यह महत्व दिखता है कि चाहे जिसने भी प्रोजेक्ट की शुरुआत की हो ,किंतु इसके दायित्व व इसको सम्पन्न करने हेतु हर सदस्य बराबर का समर्पण व जिम्मेदारी दिखाता है व इसका गौरव अनुभव करता है।

इस प्रकार टीम का महत्व सर्वोपरि है और अंततः टीम की ही जीत होती है।


Tuesday, July 3, 2012

कौन हूँ मैं....



काम से मैं दग्ध हूँ जलता कभी,
तृणमान सा पथहीन मैं उड़ता कभी,
दश दिशायें मुट्ठियों मे भींचता मैं।
करता कभी अति स्थूल अनुभव,
और कभी अति सूक्ष्म हूँ मैं !
कौन हूँ मैं? (1)

उदधि का गह्वर अतल जल मापता मैं,
अनंत का विस्तृत महातल चूमता मैं,
इस क्षितिज से उस क्षितिज विस्तारमय हूँ।
अवसाद की गुरुता हूँ ,
या प्रसन्नता का वितान हूँ मैं !
कौन हूँ मैं? (2)

सत्य जिनको मानकर जीत सभी,
मृग-पिपासा सा आभाषित जीवन अभी,
कल्पना-आकाशगंगा स्थित मोती ढ़ूढ़ता हूँ
पा रहा वरदानपूरीत निधि अनेकों ,
या खो रहा सब अभिशाप मय मैं !
कौन हूँ मैं? (3)

ऊषाक्षितिज पर सूर्य का आह्वान करता,
संध्याझितिज पर रात्रि का यशगान भरता,
राग के रथ पर नियत मैं सारथी हूँ।
ब्रह्म की अभिव्यक्ति बनता शब्द-अनुस्वर,
या शब्द की अभिसाधना परब्रह्म हूँ मैं !
कौन हूँ मैं? (4)

निज आत्मा को व्योम का दर्पण दिखाता,
दिशाओं के अमित विस्तार में उत्कर्ष पाता,
प्रतिबिंब और परछाइयों के रहस्य का संधान हूँ।
प्रकाश से आलोकित हुआ यह दृश्य हूँ,
या दृश्य का आभाष-जनित प्रकाश हूँ मैं !
कौन हूँ मैं? (5)

कल्पना के मंत्र से गीत-सुर आह्वान करता,
छंद सेजों को सजाता,शब्द के पट ओढ़ता,
बाँह भर कविता-अधर रस चूमता हूँ ।
राग से पूरित मधुरमय  गीत हूँ,
या गीत से उद्भवमयी  राग हूँ मैं!
कौन हूँ मैं ? (6)

हूँ अंतर्क्षितिज की दूरियों को मापता,
चंद्रमा के कोष से अमि-कलस लाता,
अविरल निरंतर चल रहा  जन्मांतरों से।
पथिक को निर्देश करता सहज पथ हूँ,
या पथ की साधना करता एक पथिक हूँ मैं!
कौन हूँ मैं? (7)

ब्रह्मा-सृजन के इष्ट का पर्याय हूँ,
प्रकृति की पुस्तक का एक अध्याय हूँ,
रचना निरंतर हो रही निर्माण मैं हूँ।
ब्रह्मांडकोश अंतर्निषेचित जीव हूँ,
या जीव का अधिपति यह ब्रह्मांड हूँ मैं !
कौन हूँ में? (8)